Sunday, 25 December 2011

बौखलाहट में अन्ना पर शाब्दिक हमले फिर खोखले साबित हुए


अन्ना भी नाना के साथ तो दिग्गी भी नाना के साथ, तो बूझो कौन है आरएसएस ?
  कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर से भ्रष्टाचार विरोधी गांधीवादी कार्यकर्ता अन्ना हजारे पर हमला किया और कहा कि कभी वह आरएसएस नेता नानाजी देशमुख के साथ सचिव के रूप में काम करते थे। सिंह ने आज ट्विटर पर लिखा 'अन्ना हजारे ने आरएसएस नेता नानाजी देशमुख के साथ सचिव के रूप में काम किया और वर्ष 1983 में गोंडा में प्रशिक्षण लिया (संघ की गतिविधियों) । आज दिल्ली में 'नई दुनिया' समाचार पत्र का पहला पन्ना देखिये।'
   इस बार टीम अन्ना ने उन्हें ईंट का जवाब पत्थर से दिया है। दिग्विजय ने एक अखबार के हवाले से कहा कि अन्ना हजारे आरएसएस नेता नानाजी देशमुख के सेक्रेटरी थे। इसके जवाब में टीम अन्ना की सदस्य किरन बेदी ने दिग्विजय की एक ऐसी फोटो जारी कर दी, जिसमें वह खुद नानाजी देखमुख के साथ बैठे नजर आ रहे हैं।
दिग्विजय ने रविवार सुबह ट्वीट किया, 'अन्ना हजारे आरएसएस लीडर नानाजी देशमुख के सेक्रेटरी रहे थे। उन्हें 1983 में गोंडा में ट्रेनिंग मिली थी। आज एक हिंदी अखबार के फ्रंट पेज में इस बारे में बताया गया है। लेकिन, अन्ना आरएसएस से अपने संबंधों की बात से इनकार करते हैं। अब हम किस पर यकीन करें? तस्वीरों के साथ जो फैक्ट हैं या फिर अन्ना और आरएसएस के दावों पर? मैं एक बार फिर सही साबित हुआ हूं। ' दिग्विजय ने टीम अन्ना को क्रिसमस की बधाई भी दी, लेकिन एक ताने के साथ। दिग्विजय ने लिखा, 'टीम अन्ना को मेरी क्रिसमस और मुंबई में फंड जुटाने के लिए शुभकामनाएं। दिल्ली से मुंबई वह सिर्फ ज्यादा फंड जुटाने के लिए गए हैं।'
इस बार किरन बेदी ने इस फोटो के जरिए गेंद दिग्विजय सिंह की पाली में डाल दी है। दिग्विजय को या तो इस तस्वीर को फर्जी साबित करना होगा, या उन्हें यह मानना होगा कि तस्वीर में साथ दिख जाने से वह आरएसएस के वैचारिक मित्र या उसके एजेंट नहीं हो जाते। और अगर वह नहीं होते, तो जाहिर अन्ना पर भी यह आरोप नहीं लगा सकते। साभार-एनबीटी

Friday, 2 December 2011

आखिर है क्या कोलावेरी..

 पूरे भारत में धूम मचाने के बाद लोगों का एक ही सवाल है कि आखिर कोलावेरी डी है क्या। दरअसल तमिल भाषा में "कोलावेरी डी" का मतलब होता है जानलेवा गुस्सा। इसमें टिंग्लिश के शब्द हैं यानी तमिल और तमिल लहजे की अंग्रेजी। इस गाने के बोलों के अलावा इसमें सबसे बड़ी खूबी है कि साउथ फिल्मों के दो दिग्गज सितारे रजनी और कमल हासन के दामाद और पुत्री इसमें नजर आएंगे।
इसे रचा है सुपरस्टार रजनीकांत के दामाद हैं धनुष ने, उन्होंने ही ये गीत लिखा है और इसकी धुन भी बनाई है। यह गाना उनकी आने वाली फिल्म "थ्री" में होगा। इस फिल्म की डायरेक्टर हैं धनुष की पत्नी और रजनीकांत की बेटी ऐश्वर्या। इसमें धनुष के अपोजिट हैं श्रुति हसन।
  धनुष का कहना है कि अगर शाब्दिक अर्थ की बात की जाए तो इस शब्द का कोई खास मतलब नहीं है, यह तो सिर्फ धुन बनाते हुए इस्तेमाल किया गया है। धनुष बेहद खुश है कि यह लोगों को इतना पसंद आ रहा है। इसकी सफलता का राज बताते हुए वे कहते हैं कि शायद इसकी मधुर धुन ने ही इसे इतना लोकप्रिय बना दिया।
खबर तो यह भी है कि रजनी को यह गाना इतना पसंद आया है कि वह अपनी बेटी की फिल्म में छोटी सी भूमिका भी करना चाहते हैं। कहा जा रहा है कि इस गीत को मात्र 20 मिनट में तैयार किया गया है।
  धनुष कहते हैं, ईमानदारी से बताऊं तो मैंने सोचा भी नहीं था कियह गाना इतना बड़ा हिट साबित होगा। साधारण संगीत और बोल ही इस गाने की खासियत हैं। क्या है कोलावेरी का मतलब? तमिल शब्द कोलावेरी का आशय प्रेमिका द्वारा ठुकराए जाने पर पैदा होने वाली खीझ और गुस्से से है। इसमें प्रेमी पूछ रहा है आखिर उसने उसके साथ ऐसा क्यों किया? गाने में वह खुद को कोसता है और अपने गम को भुलाना चाहता है।
फिल्म से जुड़ी टीम चाहती थी कि धनुष इस फिल्म के लिए गीत लिखें। धनुष ने ऐसे ही इंग्लिश मिली तमिल में कुछ लिखा। घर पर वे पत्नी से इसकी चर्चा कर रहे थे और अचानक गुनगुनाने लगे। उनकी बीवी को उनका यह गुनगुनाना बहुत पसंद आया और यही इस गीत की धुन भी बन गया। (साभार- वेबदुनिया, जागरण)

Wednesday, 16 November 2011

माया की बंटवारे की गणित

  उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले मुख्‍यमंत्री मायावती ने जो सियासी कार्ड खेला है, फिलहाल उसपर अमल हो ना हो मगर राजनीतिक गलियारे में सरगर्मी तेज हो गई है। राज्‍य स्‍तरीय दलों सहित केंद्र में राज कर रही कांग्रेस और मुख्‍य विपक्षी दल भाजपा भी मजबूरी में माया के इस प्रस्‍ताव के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने मायावती के राज्य के बंटवारे का विरोध करना तय किया है। मुलायम सिंह ने कहा है कि वे किसी भी हालत में राज्य का बंटवारा नहीं होने देंगे। मायावती ने यूपी को बांट कर चार राज्‍यों पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश बनाने की वकालत की है।
मायावती के इस एलान के समय प्रस्‍तावित राज्यों में विभिन्‍न राजनीतिक दलों का राजनीतिक समीकरण कुछ ऐसा है-
१- पूर्वांचल ( कुल सीटें-187)। इनमें बसपा (102), कांग्रेस(12),भाजपा (20), सपा (47),अन्‍य (06)।
२- अवध प्रदेश ( कुल सीटें हैं-79)। इनमें बसपा (43), कांग्रेस (03), भाजपा ( 09), सपा (23), अन्‍य (01)।
३- बुंदेलखंड ( कुल सीटें हैं-21)। बसपा (15) ,कांग्रेस ( 02), भाजपा (00), सपा( 04), अन्‍य (00)।
४- पश्चिम प्रदेश ( कुल सीटें हैं-116)। बसपा (61), कांग्रेस ( 03), भाजपा (19), सपा (14), अन्‍य (19)।

 
अब अगर यूपी को विभाजित कर बनने वाले चार नये राज्‍यों के राजनीतिक समीकरण पर चर्चा करें तो जो भी नये राज्‍य होंगे उनमें बसपा की सीटें अन्‍य पार्टियों से कहीं ज्‍यादा हैं। अलग होने के बाद उन चार राज्‍यों में चुनाव होने पर बसपा बढ़त में रहेगी। यानी चारों नये राज्‍यों की सत्‍ता पर बसपा काबिज हो सकती है। ऐसे में एक और संभावना है कि माया इन राज्‍यों में अपने नुमाइंदों को बैठाकर खुद 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये सीढ़ी तैयार कर रही हों।

आखिर क्‍या वजह है कि माया के एक वार से ही सभी राजनीतिक दल बैकफुट पर आ गये। दरअसल यह प्रस्‍ताव माया का नहीं बल्कि जनता की मांग है। मायावती इस प्रस्‍ताव को साढ़े चार सालों से रोक कर चुनाव से ठीक पहले पेश करने की जुगत में थी। तमाम स्‍थानीय दल जैसे कि अजीत सिंह की रालोद और कल्‍याण की जनक्रांति सहित तमाम पार्टियां बंटवारे के इस प्रस्‍ताव पर ही राजनीति कर रही थी। अब ये पार्टियां माया के इस प्रस्‍ताव का विरोध करने के बजाये सीधे उनका दामन थाम लिया है।

यूपी में सत्‍ता में वापसी की छटपटाहट में बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा जनता की भावनाओं को भांपते हुए माया के समर्थन में आ खड़े हुए हैं। माया के इस प्रस्‍ताव का समर्थन करना भाजपा की मजबूरी बन गई है। भाजपा ने इससे पहले यूपी से तोड़कर उत्‍तराचंल को अलग किया था, जो बाद में उत्‍तराखंड बना। बीजेपी ने उस समय भी राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से ही यूपी से निकाल नया राज्‍य बनाया था जहां आज भी वहीं काबिज है। दूसरी तरफ कांग्रेस तेलंगाना को भले ही अलग राज्‍य बनाने की मंजूरी ना दे रही हो, लेकिन यूपी में वह माया से सहमत नजर आ रही है।

  कांग्रेस को भी पता है कि वह इतने बड़े राज्‍य में वापसी नहीं कर पायेगी, जिसका इंतजार उसे पिछले 22 साल से है। चाह कर भी कांग्रेस माया के दलित वोट बैंक पर डाका नहीं डाल पाई है। अब बंटवारे के बाद भौगोलिक स्‍तर पर हुए बदलाव का फायदा मिलने की उम्‍मीद कांग्रेस भी इस प्रस्‍ताव से लगाए बैठी होगी। इतना ही नहीं कांग्रेस हमेशा से कहती रही है कि अगर राज्‍य सरकार से यूपी को बांटने का प्रस्‍ताव आता है तो वह उसका समर्थन करेगी। अब चुनावों से ठीक पहले वह अपने वायदे से मुकर जनता का विरोध नहीं झेलना चाहती।

चुनावी स्टंट
  समाजवादी पार्टी (सपा) ने इस प्रस्ताव का विरोध करने का एलान किया है तो कांग्रेस ने राज्य के प्रस्तावित विभाजन को एक संवेदनशील मुद्दा बताया और कहा कि इस पर निर्णय केवल विस्तृत चर्चा के बाद ही लिया जा सकता है.समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा कि उनकी पार्टी राज्य के विभाजन का विरोध करेगी.उन्होंने कहा कि मायावती चुनावों में हार की डर से इस तरह की घोषणाएं कर रही हैं.
मुलायम ने कहा कि मायावती भ्रष्टाचार एवं अपनी असफलताओं से लोगों का ध्यान भटकाने का प्रयास कर रही हैं. मुलायम सिंह यादव ने कहा कि राज्य की मुख्यमंत्री मायावती का यह कदम जनता को बेवकूफ बनाने वाला चुनावी स्टंट और राजनीतिक साजिश है.
  सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह यादव ने कुशीनगर में कहा कि राज्य के विभाजन से विकास सम्बंधी किसी भी उद्देश्य का समाधान नहीं होगा.

कांग्रेस के वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि मायावती ने जो कुछ भी किया है वह केवल राजनीतिक है और उनका केवल एक ही एजेंडा है और यह उत्तरप्रदेश का 2012 का विधानसभा चुनाव है.द्वितीय राज्य पुनर्गठन आयोग की पुरजोर वकालत करते हुए सिंह ने कहा कि राज्यों का बंटवारा काफी जटिल मुद्दा है. कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष जनार्दन द्विवेदी ने नई दिल्ली में कहा कि पार्टी सिर्फ चुनावी लाभ को देखकर लिए गए निर्णय को स्वीकार नहीं करेगी.

केंद्रीय पेट्रोलियम राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने भी विभाजन को चुनावी हथकंडा बताया और कहा कि राज्य को विभाजित करने जैसा बड़ा निर्णय कोई एक राजनीतिक दल नहीं कर सकता. इसके लिए राजनीतिक सहमति एवं संसद की अनुमति चाहिए.

   भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि अपनी सरकार के साढ़े चार वर्ष बीतने के बाद मायावती को राज्य को विभाजित करने की बात याद कैसे आ गई?  मायावती पर आरोप लगाते हुए हुसैन ने कहा कि चुनाव आ गए हैं और साढ़े चार वर्ष बीतने के बाद मायावती को अगड़ी जातियों की याद आ गई. उन्हें राज्य के विभाजन की भी बात याद आ गई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कहा कि यह घोषणा सिर्फ 'चुनाव के समय लोगों को मूर्ख बनाने' के लिए है. भाजपा नेता उमा भारती ने कहा कि मायावती ने घोषण चुनाव से ठीक पहले की है और इसमें स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में नहीं रखा है.
    सपा के पूर्व नेता एवं राष्ट्रीय लोक मंच के प्रमुख अमर सिंह ने कहा कि वह समझ नहीं पा रहे हैं कि सपा विभाजन का विरोध क्यों कर रही है.
साभार- http://hindi.oneindia.in/news/2011/11/16/mayawati-making-ladder-centre-dividing-uttar-pradesh-aid0129.html
http://www.samaylive.com/nation-news-in-hindi/133693/uttar-pradesh-division-mayawati-government-proposal-state-politi.html

Friday, 4 November 2011

सावधान ! आपकी निगरानी कर रहा है कोई.....

   अगर आप अविष्कारों के दुरुपयोग से वाकिफ नहीं होंगे तो समझ लीजिए कि आप के साथ कुछ भी हो सकता है और आप को भनक तक नहीं लगेगी। आजकल ज्यादातर जगहों पर सुरक्षा कारणों से क्लोज सर्किट टीवी ( जिसे सीसीटीवी कहते हैं ) और गुप्त कैमरे लगाए जा चुके हैं। किसी बड़े परिसर या शापिंग की जगह में अब यह सब सुविधा का होना जरुरी भी हो गया है। किसी ट्रायल रूम में लगे गुप्त कैमरे और शीशे से आपकी हर गतिविधि बाहर नियंत्रण कक्ष में बैठा शख्स देखता रहता है। महिला ट्रायल रूम में भी ऐसे शीशे और कैमरे लगे रहते हैं। इन सुरक्षा उपायों पर रोक नहीं लगायी जा सकती क्यों कि ऐसी जगहों का इस्तेमाल आतंकवादी भी बम वगैरह छिपाने में करते हैं। इन कैमरों व शीशों को अगर आप पहचान लें तो शायद सावधान होकर रह सकते हैं। आइए जानते हैं कि कैसे इनके बारे में जाना जा सकता है।
  गुप्त कैमरे को कैसे जानें ?
 पहले आप ट्रायल रूम के सामने ( बाहर ही ) जाएं और अपनी मोबाइल से फोन करके देख लें कि आपका
फोन पूरा काम कर रहा है और कहीं फोन करने पर फोन जा भी रहा है। अब आप ट्रायल रूम में अंदर जाएं और अपनी मोबाइल फोन से फोन करें। अगर आपकी फोन काल जा रही है तो आप निश्चिंत रहें कि ट्रायल रूम में कोई गुप्त कैमरा नहीं लगा है। इसके ठीक उलट अगर आपकी फोन काल नहीं जा रही है तो सावधान हो जाएं। इसका मतलब कि ट्रायल रूम में गुप्त कैमरा है और आपकी निगरानी की जा रही है। कैमरा होने पर फोन काल इस लिए नहीं जाती है क्यों कि उसके लिए बिछाई गई फाइबर आप्टिक केबिल व्यवधान पैदा करती है।
  यह आशंका भी कई बार जताई जाती है कि बड़े व अत्याधुनिक शापिंग वाले परिसर के कपड़े बदलने वाले महिलाओं के कमरे में लगे पिनहोल कैमरे से वस्त्र बदलने वाली महिलाओं या लड़कियों के एमएमएस बना लिए जाते हैं। या फिर उनकी कहीं और देखी जाती है। आप ऐसी जगहों पर सावधान होकर रहें।

सावधान रहें ट्रायल रूम के शीशे से भी .........
ट्रायल रूम में दो तरह के शीशे लगाए जाते हैं। एक साधारण किस्म का होता है और उससे डरने की जरूरत नहीं है। दूसरा वह होता है जो आपकी तस्वीर को ट्रायल रूम से बाहर किसी खास जगह पर भेजता है। इसे टू वे मिरर कहते हैं। इस शीशे से निगरानी करने वाला आपको देख सकता है मगर आप उसे नहीं देख सकते। आशंका जताई जाती है कि ये टू वे मिरर चेंजिंग रूम, बाथरूम या बेडरूम में लगाए जाते हैं। होटलों व भीड़ वाली शापिंग की जगहों में पूरी निगरानी के लिए ऐसा किया जाता है। ऐसे शीशों को साधारण तरीके से पहचानना बेहद मुश्किल होता है। आइए हम बताते हैं कि कैसे पहचानें इन शीशों को।
  पहचानने के लिए शीशे पर अपनी उंगली का नाखून रखिए। अगर आपकी उंगली के नाखून और उसी छवि ( इमेज) के बीच अंतराल ( गैप) हो तो यह शीशा साधारण ही होगा।
  अगर आपका नाखून और उसकी छवि के बीच अंतराल न हो यानी नाखून व उसकी छवि एक दूसरे को छू रही हो तो यह टू वे मिरर है। सावधान, कोई बाहर से आपको देख रहा है। आप ऐसी जगहों पर शीशे के इस नाखून टेस्ट को अवश्य करके शीशे की पहचान कर लीजिएगा। वरना........।
  दोनो शीशों में फर्क उसके निर्माण में प्रयुक्त सिलवर
अलग तरीके से प्रयोग के कारण होता है। साधारण शीशे में यह सिलवर शीशे के पीछे लगा होता है। जबकि टू वे मिरर में यह शीशे की सतह पर होता है। सिलवर के कारण ही शीशे में चमक होती है और आप अपनी छवि देख पाते हैं। तो शीशे की पहचान करना कभी न भूलिए।
संदर्भ- यह जानकारी पवन चौहान ने जीप्लस पर अंग्रेजी में जारी की है। यह उसका अनुवाद है। पवन ने गुजारिश की है कि इस जानकारी को ज्यादातर लोगों तक पहुंचाएं।





Sunday, 23 October 2011

पत्रकारों को दीपावली का तोहफा की तैयारी, मंगलवार को कैबिनेट बैठक में उठेगा वेतनबोर्ड मुद्दा


   केंद्रीय श्रम मंत्री मल्लिकार्जन खड़गे ने कहा कि पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों के लिए गठित मजीठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशों को लागू करने का मुद्दा मंगलवार , 25 अक्तूबर को होने वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में उठेगा। संभव है कि सरकार का पत्रकारों को दीपावली पर यह तोहफा हो। बुधवार को दीपावली से ठीक पहले कैबिनेट की इस बैठक पर पत्रकारों की भी उम्मीदभरी नजरें टिकी हुई हैं।

एक कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं के साथ हुई बातचीत में यह ध्यान दिलाए जाने पर कि यह मुद्दा काफी समय से लंबित है, खड़गे ने कहा-हमें उम्मीद है कि अब यह सुलझ जाएगा। मालूम हो कि मजीठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशें सरकार को पिछले साल दिसंबर में सौंप दी गई थीं।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 अक्तूबर को विभिन्न समाचारपत्रों के प्रबंधन के अनुरोध को खारिज करते हुए वेतनबोर्ड की सिफारिशों के बारे में केंद्र सरकार पर कोई भी फैसला करने से रोक लगाने से इनकार कर दिया था।( कन्नूर , 23 अक्तूबर (भाषा)।

Tuesday, 11 October 2011

सरकार पत्रकारों व गैरपत्रकारों के लिए मजीठिया वेजबोर्ड की सिफरिशें अगली सुनवाई से पहले लागू करे -सुप्रीम कोर्ट

  केंद्र सरकार पत्रकारों व गैरपत्रकारों के लिए मजीठिया वेजबोर्ड की सिफरिशों को लागू करने की अधिसूचना जारी करने के लिए स्वतंत्र है। यही बात सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में भी कही थी मगर कुछ संगठनों व अखबार संस्थानों के दबाव में सरकार अब तक अधिसूचना नहीं जारी की है। अब सुप्रीम कोर्ट ने आज उसी मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अगली सुनवाई सात दिसंबर को होने के पहले केंद्रीय कैबिनेट पहले अधिसूचना जारी करे तभी आगे विवादित मुद्दों पर सुनवाई होगी। अखबार प्रबंधन ने वेजबोर्ड की वैधता पर भी सवाल उठाया है। कोर्ट का कहना है कि सरकार पहले इसे लागू करे इसके बाद विवादित मुद्दों पर कोर्ट सुनवाई करेगा। प्रबंधन की आपत्तियों पर कोर्ट ने सरकार से भी अपना पक्ष पेश करने को कहा है।
  मालूम हो कि कुछ अखबार प्रबंधनों ने केंद्रीय श्रम सचिव को चिट्ठी लिखकर यह अपील की थी कि सरकार कोर्ट का फैसला आने से पहले वेतनमान लागू करने पर कोई फैसला न ले। सुनवाई कर रहे दो जजों दलबार भंडारी व दीपक मिश्र की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अखबार मालिकों के इस रवैए को गंभीरता से लिया और अनुचित बताते हुए अखबार मालिकों के वकील फाली नरीमन व केके वेणुगोपाल को पत्र को फौरन वापस लेने का आदेश दिया। इस पत्र की तरफ कोर्ट का ध्यान अतिरिक्त सालिसिटर जनरल पराग त्रिपाठी ने दिलाया था।
 अभी कल ही अखबार संगठनों ने अधिसूचना जारी होने में देरी के विरोध में १४ अक्तूबर को पूरे देश में धरना देने का एलान किया। जबकि आज ही केरल के पत्रकारों ने कोच्चि में जुलूस निकाला और नारे लगाए।
 ( विस्तार के लिए पीटीआई की पूरी खबर देखें)।
SC-WAGEBOARD
Cabinet free to act on scribes' wage board recommendations: SC
New Delhi, Oct 11 (PTI) The Supreme Court today yet again
refused to restrain the Union Cabinet from taking any decision
on the Majithia Wage Board's recommendations for journalists
and non-journalists, turning down pleas by various media to do
so.
"Propriety demands that when the matter is before the
Union Cabinet, we should not pass any order. However, any
decision taken by the Union Cabinet will be subject to the
final orders passed by this court," a bench of justices
Dalveer Bhandari and Dipak Misra said.
The bench made the observation following repeated pleas
of various newspaper managements to restrain the Union Cabinet
from taking any decision on the wage board recommendations on
the ground that the matter is pending before the apex court.
The bench took serious note of newspaper managements
writing a controversial letter to the Union Labour Secretary
asking him not to take any decision on the recommendations
till the matter was decided by the apex court.
Additional Solicitor General Parag Tripathi had drawn the
attention of the bench about the letter.
"It is very, very unfair on your part to write such a
letter," said the bench, prompting senior counsel Fali Nariman
and K K Venugopal for newspaper managements to immediately
withdraw the letter.
While recording in its order, the managements' act of
withdrawing its letter to the labour secretary, the bench
asked the Union government to file its counter affidavit on
the batch of petitions by the managements challenging the Wage
Board recommendations.
The court was hearing a bunch of petitions by various
newspaper managements and media houses including Anand Bazar
Patrika Pvt Ltd (ABP), Bennett Coleman Co.Ltd and news agency
United News of India (UNI), which had challenged the Majithia
Wage Board's recommendations. (MORE) PTI AAC RB AKI RAX
VMN
10111638

SC-WAGEBOARD 2 LAST (RPT)
(Rpting with correction in second last para)
The court said any decision by the Cabinet will be
subject to its scrutiny on the validity and other aspects.
"We have not held the (the Working Journalist and Other
Newspapers Employees) Act as ultra vires. So where is the
question of restraining the government. If you have any
objections on the provisions, you can challenge it. May be,
some of the recommendations could also be in your favour, so
let us wait," the bench said when it was contended that the
Wage Board itself was constituted in an illegal manner.
The counsel submitted that though the Act envisaged
constituting the Board with independent members, the
government had handpicked its own people thus not providing
any level-playing field to the managements.
They contended that the composition of Board members was
loaded in favour of the employees.
"Government has manipulated the whole process to make the
newspaper managements subservient to it," Venugopal told the
bench, adding "it is not Wage Board in the eyes of the law."
The bench said these issues can be taken up by the
petitioners after the Cabinet takes a decision. It posted the
matter for further hearing on December 7 rpt 7.
The court earlier on September 21 too had refused to stop
the Cabinet from taking any decision on the wage board's
recommendations. PTI AAC RB AKI RAX VMN
DEP
10111732

WAGEBOARD-KERALA(MES2)
KUWJ-KNEF workers picket BSNL exchange
Kochi, Oct 11 (PTI) Hundreds of activists belonging to the
Kerala Union of Working Journalists (KUWJ) and Kerala
Newspaper Employees Federation (KNEF) took out a march and
picketted the BSNL telephone exchange here today demanding
early notification of Justice Majithia Wageboard
recommendations for journalists and non-journalists.
Holding banners in support of their demand, the activists
raised slogans condemning the delay in the issuing of the
notification by the central government.
The picketing was inaugurated by media critic and former
MP Sebastian Paul.
Police arrested few activists and removed them.
Today's picketing was part of the second day's 'blockade'
agitation by KUWJ and KNEF. Yesterday, the picketing was held
before the income tax office at Kozhikode.
The two unions are organising a three-day agitation at
Kozhikode, Kochi and Thiruvananthapuram demanding early
implementation of the recommendations of Justice G R Majithia
wageboard for Journalists and Non-Journalists of Newspaper and
News Agencies. PTI UD ARP
BS
10111245

Monday, 10 October 2011

पत्रकारों का धैर्य टूटा, १४ को करेंगे राजधानी दिल्ली व देश भर में प्रदर्शन

 चुनाव वाले पांच राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ अभियान की धमकी

  सुप्रीम कोर्ट के सरकार को अधिसूचना जारी करने की छूट देने के बावजूद पत्रकारों व गैरपत्रकारों के लिए मजीठिया आयोग की सिफारिशें लागू करने की अधिसूचना न जारी करने पर संभवतः अब पत्रकारों का धैर्य भी टूट रहा है। पत्रकारों की यूनियनों ने अब १४ अक्तूबर को देश भर में न सिर्फ धरना देना तय किया है बल्कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और युवा नेता व कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी से इस मामले में दखल देने की अपील की है। दिल्ली में सोमवार को पत्रकारों के राष्ट्रीय संगठन (सीएनएनएईओ) कान्फेडरेशन आफ न्यूजपेपर एंड न्यूज एजंसी इंप्लाईज आर्गनाइजेशंस ने दिल्ली में कांग्रेस दफ्तर के सामने और पूरे देश में प्रदर्शन करने का फैसला लिया।
  बैठक में पत्रकारों ने यह चेतावनी भी दी कि अगर अधिसूचना जारी करनें में और देरी की गई तो पत्रकार आगामी पांच राज्यों के होने वाले चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ अभियान चलाने को मजबूर होंगे। पत्रकारों ने विपक्षी दल भाजपा व अन्य पर चुप्पी साध लेने का आरोप लगाते हुए मांग की कि विपक्षी दल सरकार पर अधिसूचना जारी करने का दबाव डालें। सरकार पर भी अखबार मालिकों के प्रभाव में आने का आरोप लगाया। ( पत्रकारों के प्रदर्शन की इस पूरी खबर को  समाचार एजंसी पीटीआई ने दिया है। आप भी देखें )-------
WAGEBOARD
Scribes to hold protest against govt for denying wage revision
New Delhi, Oct 10 (PTI) Employees of newspapers and news
agencies today decided to organise nation-wide protest dharnas
on October 14 against the Centre's "failure" to notify the
recommendation of wageboard for journalists and
non-journalists.
The decision to hold protest dharna in front of Congress
office in Delhi and in the state capitals on coming Friday was
taken by Confederation of Newspaper and News Agency Employees'
Organisations (CNNAEO) at a meeting here.
Besides, CNNAEO General Secretary M S Yadav, others who
attended the meeting included AINEF leader Santosh Kumar and
Madan Talwar, NUJI M D Gangwar and Rajendra Prabhu, IJU Madan
Singh, UNI Workers Union leaders M L Joshi and A L Gawade, PTI
Federation leaders Ajay Tyagi, Sanjay Sinha and Rajbir Singh,
IFWJ Parmanand Pandey, Times of India Employees Union Roop
Chand, Indian Express Employees Union leader C S Naidu and DUJ
S K Pande.
"Prime Minister Manmohan Singh had assured the media
employees that he would do his duty (by implementing
recommendations of G R Majithia wage boards recommendations...
why he is going back on his words," Yadav said.
"Cabinet can always consider the issue. No one is
preventing you to take decision," a Bench of justices Dalveer
Bhandari and Deepak Verma had said during last hearing on
September 21 after it was mentioned that the Cabinet has not
been able to take a decision because of the pendency of the
case before the apex court.
"So what prevents the government from doing its duty,"
the CNNAEO leaders questioned.
Yadav accused the UPA government of being under influence
of the owners of media organisations who are working overtime
to deny hike in salary to journalists and non-journalists
despite shooting inflation rate.
He warned the Congress party that if it continued with its
"anti-workers" attitude, mediapersons would not hesitate to
campaign against the party in the forthcoming assembly
elections in the five states.
The CNNAEO General Secretary urged UPA chief Sonia Gandhi
and AICC General Secretary Rahul Gandhi to come forward to
safeguard the interests of journalists and non-journalists.
He also accused the opposition BJP and others of merely
"paying lip service" to the cause of mediapersons and demanded
them to pressurise the government to notify the wage boards
report without any further delay. PTI SNS ALM VSC
ALM
10101706

रोमिंग चार्ज से मिलेगा छुटकारा

  संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने सोमवार को दूरसंचार नीति 2011 का ड्राफ्ट जारी किया।
ड्राफ्ट में मोबाइल फोन धारकों के लिए रोमिंग चार्ज खत्म करने की बात कही गई है. अगर इस ड्राफ्ट को कैबिनेट से मंज़ूरी मिल जाती है तो मोबाइल फोन ग्राहकों को बड़ी राहत मिलेगी।

इस ड्राफ्ट में मोबाइल धारकों के लिए एक और बड़ी सुविधा का प्रावधान दिया गया है. जहां एक ओर लोगों को रोमिंग चार्ज से मुक्ति मिलेगी वहीं देशभर में कहीं भी वही नंबर रखते हुए कंपनी बदलने के सुविधा भी मिल सकेगी. इस सुविधा को इंटर सर्किल मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) कहा जाता है. सिब्बल ने कहा नीति के मसौद में पूरे देश के लिए एक लाइसेंस, पूर्ण एमएनपी और मुफ्त रोमिंग सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य है।

कपिल सिब्बल ने ड्राफ्ट की घोषणा करते हुए कहा कि टेलीडेन्सिटी मेंम 74 फीसदी का विकास हुआ है. उन्होंने यह भी कहा कि वर्ष 2020 तक शत प्रतिशत आबादी को फोनधारक बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
मंत्री ने कहा कि दूरसंचार नीति में स्पेक्ट्रम को लाइसेंस से अलग बाजार मूल्य पर बेचा जाएगा।

सिब्बल ने कहा सरकार 2017 तक 300 मेगाहर्ट्ज़ और 2020 तक और 200 मेगाहर्ट्ज़ स्पेक्ट्रम उपलब्ध कराएगी. उन्होंने यह भी कहा कि नए लाइसेंसों, पुरानी कंपनियों को नए लाइसेंस व्यवस्था में शामिल करने की अनुमति देने और बाजार से बाहर निकलने की छूट देने की नीति पर ट्राई से सुझाव मांगा जाएगा।

Thursday, 22 September 2011

पत्रकार व गैर पत्रकार संगठनों ने की मजीठिया वेतन बोर्ड की अधिसूचना जल्द जारी करने की मांग

 अखबारों के पत्रकार व गैर पत्रकार संगठनों ने सरकार से मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने की अधिसूचना तत्काल जारी करने की अपील की है। संगठनों ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के बुधवार के आदेश के बाद अब इस मामले में एक दिन की भी देर सही नहीं है।

कंफेडरेशन आफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज एजंसीज एंप्लाइज आर्गनाइजेशंस में शामिल संगठनों के प्रतिनिधियों की गुरुवार को यहां हुई बैठक में अदालत के आदेश पर संतोष जताया गया और सरकार से वेतन बोर्ड की सिफारिशें जल्द अधिसूचित करने की अपील की गई। कंफेडरेशन के महासचिव एमएस यादव ने बैठक के बाद कहा, सुप्रीम कोर्ट के बुधवार के आदेश के बाद अब सरकार को हमारे वेतन बोर्ड की सिफारिशों को तुरंत अधिसूचित करना चाहिए। सरकार के वकील ने भी न्यायालय में कहा था कि सरकार अधिसूचना जारी करने के लिए तैयार है उसे न्यायालय की हरी झंडी का इंतजार है। अब वह हरी झंडी मिल चुकी है। हमें उम्मीद है कि अब सरकार की ओर से देरी नहीं होगी।

यादव ने कहा कि मणिसाना वेतन बोर्ड की सिफारिशों के लागू होने के बाद 13 साल हो चुके हैं और मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों के आए भी नौ महीने बीत चुके हैं। अखबारी कर्मचारियों को महंगाई के इस दौर में नए वेतनमान लागू किए जाने का बेसब्री से इंतजार है।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की पीठ ने बुधवार को कहा कि सरकार पत्रकार व गैर पत्रकार कर्मियों के वेतन बोर्ड की सिफारिशों को अधिसूचित करने के लिए स्वतंत्र है। पीठ ने सरकार के वकील से कहा, कैबिनेट इस विषय पर विचार कर सकती है। आपको फैसला लेने से कोई रोक नहीं रहा है।

आज की बैठक में एनयूजे के डा एनके त्रिखा और राजेंद्र प्रभु, आईजेयू के सुरेश अखौरी, एआईएनईएफ के रूपचंद, यूएनआई वर्कर्स यूनियन के मोहन लाल जोशी और आईएफडब्ल्यूजे के महासचिव परमानंद पांडे और अन्य प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। ( नई दिल्ली, 22 सितंबर ( भाषा)। )

Wednesday, 21 September 2011

सुप्रीम कोर्ट ने दी पत्रकारों के पक्ष में राय, श्रममंत्री ने कहा- जल्द जारी होगी अधिसूचना


    कोलकाता के बांग्ला समाचार पत्र समूह आनंदबाजार पत्रिका की ओर से जस्टिस मजीठिया की पत्रकारों व गैर पत्रकारों के वेतनमान की सिफारिशों के खिलाफ दायर याचिका पर बुधवार 21 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर सरकार को अधिसूचना जारी करने की अनुमति दे दी। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी थी जिस पर सरकार की तरफ कहा गया था कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई है इस लिए सरकार अधिसूचना जारी करने में असमर्थ है। आज वह बाधा खुद सुप्रीम कोर्ट ने हटा ली। इसके बाद फोन पर द हिंदू के संवाददाता जे बालाजी को केंद्रीय श्रममंत्री मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि सरकार जल्द ही अधिसूचना जारी करेगी।

 मजीठिया वेतन बोर्ड को लागू करने का फैसला
 कर सकती है सरकार: अदालत
 सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने का फैसला कर सकती है। यह वेतन बोर्ड सरकार ने पत्रकारों और गैर पत्रकारों के वेतन तय करने के लिए बनाया था। न्यायमूर्ति दलबीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की एक खंडपीठ ने बुधवार को मीडिया घरानों की वेतन बोर्ड सिफारिशों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। याचिकाओं में वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू न करने की मांग की गई है।
अदालत को पत्रकार संगठनों के वकील ने जानकारी दी कि केंद्रीय मंत्रिमंडल वेतन बोर्ड की सिफारिशों पर कोई फैसला नहीं कर पा रहा है क्योंकि मामला अदालत के विचाराधीन है। जवाब में जजों ने कहा कि मंत्रिमंडल इस मामले में विचार कर सकता है। सरकार को फैसला लेने से कोई रोक नहीं रहा है।
इससे पहले अदालत ने 18 जुलाई को इस मामले में केंद्र सरकार को दो हफ्ते तक कोई फैसला न करने की हिदायत दी थी। पर सरकार ने दो हफ्ते बीत जाने के बाद भी मामले को अदालत के विचाराधीन मान कर कोई फैसला नहीं किया। वेतन बोर्ड की सिफारिशों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका सबसे पहले आनंद बाजार पत्र समूह ने दायर की थी। इस याचिका पर इस साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी उसका जवाब मांगा था।

 Decision on wage board soon: Kharge
J. BALAJI
http://www.thehindu.com/news/national/article2473678.ece

Sunday, 18 September 2011

भूकंप से हिला पूर्वी व उत्‍तरी भारत, केंद्र सिक्किम


  आज शाम ६ बजे के आसपास तेज भूकंप ने पूर्वी व उत्‍तरी भारत में दस्‍तक दी। पूर्वी भारत में यह भूकंप सिक्किम, असम व पश्चिम बंगाल में महसूस किया गया।

कोलकाता में एक मकान में दरार पड़ने और पटना में एक- दो मकान के ढहने की खबर है। अभी तक किसी जानमाल के नुकसान की खबर नहीं है। मैं भी भूकंप के वक्त लोकल ट्रेन में था इसलिए मुझे तो पता नहीं चला मगर कोलकाता ( धर्मतला ) स्थित अपने आफिस पहुंचा तो लोग दहशत में थे। लोगबाग आफिसछोड़कर बाहर भाग खड़े हुए।

उत्‍तर भारत के बिहार, उत्‍तर प्रदेश, दिल्‍ली व नेपाल बॉर्डर के इलाकों में इसके झटके महसूस किए गए। इस भूकंप का केंद्र सिक्किम की राजधानी गंगटोक है। इसका केंद्र जमीन के 10 किलोमीटर अंदर बताया जा रहा है। रिएक्‍टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 6.8 थी। यह भूकंप लगभग 30 सेकेंड तक का था।

सिक्किम से प्राप्‍त जानकारियों के मुताबिक वहां इस भूकंप का झटका इतना तेज था कि पूरे गंगटोक की बिजली गुल हो गई। हालांकि अभी तक किसी तरह के जान माल के नुकसान की खबर नहीं आई है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में भी इसके तेज झटके महसूस हुए। इसके अलावा असम में कई इलाकों से होकर यह भूकंप गुजरा।

दिल्‍ली व एनसीआर के इलाकों मे इसके हल्‍के झटके महसूस किए गए। उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भूकंप के झटके लगभग 1 मिनट तक महसूस हुए। इसके अलावा यह भूकंप उत्‍तर प्रदेश के वाराणसी में भी आया। बिहार के पटना व आसपास के इलाकों से होकर यह भूकंप गुजरा। हालांकि इन इलाकों में इसकी तीव्रता कुछ कम थी। झारखंड में भी इसके हल्‍के झटके महसूस किए गए।

Monday, 12 September 2011

पत्रकारों के वेतनमान के मामले में बुधवार से सुनवाई करेगी सुप्रीम कोर्ट



 सुप्रीम कोर्ट बुधवार से पत्रकारों व गैर पत्रकारों के वेतनमान की अधिसूचना के मुद्दे पर बुधवार से सुनवाई करेगी। आज कोर्ट ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद यह तय किया। मालूम हो कि आनंदबाजार पत्रिका की अपील के बाद कोर्ट ने सरकार को अधिसूचना जारी करने से रोका है और 12 सितंबर इसकी सुनवाई की तारीख तय की थी। आज उसी क्रम में कोर्ट ने बुधवार से सुनवाई करना तय किया है।


 पीटीआई की पूरी खबर अंग्रेजी में यहां देखें।

SC-WAGEBOARD
SC to hear Majithia wageboard issue from Wednesday
New Delhi, Sep 12 (PTI) The Supreme Court today decided
to hear from Wednesday the issue of implementation of the
recommendations of Majithia Wage Board for journalists and
non-journalists.
A bench comprising justices Dalveer Bhandari and Deepak
Verma said that after hearing the contesting parties it will
take "some decision".
During the brief hearing, Additional Solicitor General
Parag Tripathi, submitted that the Centre was unable to take a
decision on the issue of issuing notification for the
implementation of the award of the wageboard as the matter has
been pending in the apex court.
He told the bench that the wageboard issue was on the
agenda of the Cabinet meeting but had to be deferred since the
matter is pending before it.
The apex court on July 18 had asked the Government to
refrain from taking any decision on the implementation of the
recommendations of the Wage Board for two weeks.
At the outset, senior advocate K K Venugopal, appearing
for the Indian Newspaper Society (INS) said he was filing a
petition on behalf of the INS and the main arguments would be
advanced by senior advocate Fali Nariman on behalf of the
the ABP (Anand Bazar Patrika) Pvt Ltd, which first challenged
the recommendation of the wage board.
After ABP, several other media houses including Bennett
Coleman Co.Ltd, publisher of The Times of India and news
agency United News of India (UNI), filed the petitions
opposing the Award of the wageboard.
The court issued notices on their petitions.
An advocate appearing for the ABP Pvt Ltd said there was
no reply from the government on the merits of the petition
filed by it.
However, this submission was opposed by the ASG, who said
the Centre has filed its reply on the merits and termed the
ABP's petition as "totally premature".
Tripathi said there was no notification for the
implementation of the wageboard and as such no cause of action
has arisen to oppose the wageboard award.
He  said the petition was not maintainable and therefore
the government should be allowed to go ahead to issue
notification for its implementation.
The ASG's submission was supported by senior advocate
Colin Gonsalves, who, appearing for five federations
representing journalists and non-journalists, said that the
whole premises of the petition filed by ABP and others against
the implementation of the wageboard was wrong.
Gonsalves said in the past also wages have been fixed
according to the awards of the wageboards and those covered
under the Act are entitled for the wages according the fresh
recommendations.
Senior advocate Harish Salve, appearing for Bennett,
Coleman and Co. Ltd, opposed the wageboard award, saying that
the Act governing it was outdated and it also does not include
electronic media.
During the last hearing the government had insisted on
the implementation of the recommendations during the pendency
of case.
Tripathi had said the report should be allowed to be
implemented subject to the outcome of the final decision of
the matter.
  The apex court had issued notice in May to the Union
Government on a petition challenging the recommendations of
Majithia Wage Board, without granting any injunction.
        A petition filed by ABP Pvt Ltd, publishers of
prominent English and Bengali dailies, had sought a
declaration that the Wage Board Award and its recommendations
submitted to the government in December last be declared as
arbitrary and illegal.
        The petitioner urged the apex court to declare
constitution of the Wage Board as ultra vires and grant an
injunction restraining the Union of India and others from
giving any effect to the Award and recommendations made
therein.
        However, the apex court issued notice to the Union
Government after it was informed that the government has not
come out with the notification for implementation of the
recommendations.
        The ABP has named the Indian Federation of Working
Journalists, the National Union of Journalists, the Indian
Journalists Union, the All India Newspaper Employees
Federation, the National Federation of Newspaper Employees as
respondents.

Thursday, 18 August 2011

इतिहास इसे भी याद रखेगा


   १६ अगस्त को जब अन्ना हजारे अनशन पर बैठने से पहले गिरफ्तार कर लिए गए तो उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया। वहीं भारी हुजूम जमा हो गया। सभी समाचार चैनल अपने-अपने तरीके से इस घटनाक्रम को प्रसारित कर रहे थे। उसी समय स्टार न्यूज के दीपक चौरसिया यह पता करने की कोशिश कर रहे थे कि कितने लोगों को पता हैं कि लोकपाल बिल क्या है और जनलोकपाल बिल उससे क्या भिन्न है। मोटे तौर पर तो सभी जान रहे थे कि सरकारी लोकपाल बिल जनहित में नहीं है मगर क्या भिन्न है, यह बताने में वे सभी लोग असमर्थ रहे जिनसे चौरसिया ने दोनों में अंतर पूछा था। कई ने तो अंतर बताने की बजाए देशभक्ति गीत गाए। सवाल यह नही है कि लोग कितना जानते हैं बल्कि सवाल यह है कि दीपक चौरसिया किस तकनाकी ज्ञान की अपेक्षा उन सामान्य लोगों से कर रहे थे जो यह मानकर आए थे कि अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं। और सरकार से भ्रष्टाचार रोकने की गारंटी का कानून लाने की मांग कर रहे हैं। समर्थन के लिए आई जनता को क्या इतना जानना काफी नहीं ? शायद दीपक चौरसिया इससे ज्यादा की अपेक्षा रख रहे थे। तो क्या सारी जनता किसी आंदोलन में शामिल होने से पहले अध्ययन में जुट जाए। क्या यह संभव है? मेरा दावा है कि अगर अचानक इस देश के तमाम सांसदों व विधायकों से भी पूछा जाए तो वे भी इतनी बारीकी से दोनों लोकपाल विधेयकों का फर्क नहीं बता पाएंगे।
 चौरसिया शायद बताना चाह रहे थे कि यह भेड़ों वाली भीड़ है और किसी को भ्रष्टाचार या लोकपाल से कोई लेनादेना नहीं है। अगर इस पूछताछ के बाद खुद चौरसिया यह स्पष्ट करते कि यह भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता है जो अन्ना ते समर्थन में जुटी है। अगर इन्हे तकनीकी फर्क नहीं भी मालूम है तो क्या ये भ्रष्टाचार को समाप्त होते देखना चाहते हैं। मगर उन्होंने जानबूझकर ऐसा करके लोगों में गलतफहमी फैलाने की कोशिश की। एक कार्यकर्ता यह देख रहा था और उसने आकर स्पष्ट किया कि सभी को तकनीकी जानकारी रखना संभव नहीं मगर भ्रष्टाचार के मायने सभी जानते हैं। मीडिया का यह रोल भी किसा भ्रषटाचार से कम नहीं। इतिहास इसे भी याद रखेगा।
  आलइंडिया ब्लागर एसोसिएशन ने एक पोस्ट डाली है जिसमें दोनों लोकपाल बिल में मुख्य फर्क को बताया है। मैं यहां उसके पीडीएफ को डाल रहा हूं ताकि आप भी इन बारीकियों को जान लें और फिर कभी कोई दीपक चौरसिया गुमराह करे तो करारा जवाब दे सकें। मित्रों भ्रष्टाचार की जड़े बड़ी गहरी हैं और कहां कहां समाई हुई हैं कह पाना मुश्किल है। भले जड़ से मिटाने पर सवाल खड़ा हो रहा है तो क्या प्रयास ही नहीं किए जाने चाहिए। भ्रष्टों की मंडली तो साथ नहीं देगी मगर सचमुच में जो त्रस्त है उसे तो लड़ना ही पड़ेगा। अब दीपक चौरसिया से सीख लीजिए और खुद को जवाब देने लायक भी बनाकर रखिए। इस लिहाज हम दीपक के आभारी भी हैं उन्होंने हमारी इस कमी परह सवाल उठाया। निंदक नियरे राखिए.................।

Thursday, 4 August 2011

एक ब्लागर मित्र ने ब्लाग लेखन को अनिश्चित काल के लिए अलविदा कहा !


  ब्लागर महेश कुमार वर्मा के आखिरी संदेश को देखिए। क्या कोई मित्र उनकी मदद कर सकता है ?---


महेशजी का संदेश-------

from ???? ????? ????? : Mahesh Kumar Verma vermamahesh7@gmail.com via blogger.bounces.google.com
to drmandhata@gmail.com
date 3 August 2011 21:11
subject [दिल की आवाज़] अनिश्चित समय के लिए विदा
mailed-by blogger.bounces.google.com
Important mainly because of the people in the conversation.
hide details 21:11 (3 hours ago)
आज-कल मैं अपने ब्लॉग पर नहीं आ रहा हूँ व न ही मैं अन्य किसी के ब्लॉग पर ही जा पा रहा हूँ तथा न ही  ब्लॉगर बंधुओं से ही संपर्क हो रहा है.  इन सब बातों के लिए मैं सभी ब्लॉगर बंधुओं से क्षमा चाहता हूँ.  सच में मेरा लेखन कार्य लगभग बंद हो चूका है और इसका सबसे मुख्य कारण है मेरे पास अपना कंप्यूटर व इन्टरनेट का न होना.  अब तक मैं जो भी लेखन कार्य किया वह साइबर कैफे से किया पर बढती मंहगाई में अब साइबर कैफे में बैठकर लिखना मेरे लिए संभव नहीं है.  इसके अलावा मैं इधर कई निजी मामलों में भी परेशान हूँ.  मैं जहां DTDC Courier & Cargo Ltd, Boring Road, Patna में कार्य कर रहा था वहाँ से मुझे कार्य से निकाल दिया गया है और यह मामला अभी डॉ. अपर्णा, श्रम अधीक्षक, पटना के पास लंबित है और उनके कार्रवाई से मैं संतुष्ट भी नहीं हूँ .  इसके अलावा मेरा एक निजी मामला पारिवारिक न्यायालय, सहरसा में है व इसके अलावा घर का मामला भी पड़ा हुआ है.  Courier Office से कार्य पर से हटने व 3 -4 माह में भी  अब  तक  श्रम अधीक्षक के द्वारा मामला न सल्टाए जाने के कारण अब मेरे साथ आर्थिक तंगी ऐसी हो गयी है की अब भुखमरी की स्थिति हो गयी है.  यदि भुखमरी से मेरी मौत होती है तो इसके लिए जिम्मेवार डॉ. अपर्णा, श्रम अधीक्षक, पटना होंगे जिन्होंने मेरे मामला में सही ढंग से कार्रवाई नहीं की व उनके द्वारा की गयी कार्रवाई से यह स्पष्ट है  की उनका नियोजक से सांठ-गांठ हो गया है..............अभी यहाँ विशेष क्या लिखूं?   यह भी साइबर कैफे से लिख रहा हूँ.........................

विशेष क्या कहूँ? ............................ अब शायद मेरा लेखन कार्य तब तक प्रारंभ नहीं होगा जब तक की मेरे पास अपना सिस्टम नहीं हो जाए....................... अतः अब आपलोगों से मैं कब मिल पाऊंगा यह मुझे भी नहीं मालुम है.  अतः अब मैं अनिश्चित समय के लिए आपलोगों से विदा चाहता हूँ.

आपलोगों के शुभकामनाओं के साथ.


आपका 
महेश कुमार वर्मा
मोबाइल : 09955239846
Posted By महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma to दिल की आवाज़ at 8/03/2011 09:11:00 PM

मैंने यह संदेश महेशजी को लिखा------
महेशजी नौकरी का जाना तो बहुत दुखद खबर है। ईश्वर से दुआ करूंगा कि आपकी नौकरी फिर बहाल हो जाए। ब्लागिंग तो आपस में जुड़ने , कहने, समझने का बेहतर जरिया था मगर अभी जीवन को पटरी पर लाना उससे ज्यादा आवश्यक है। प्रयासरत रहें, नई नौकरी भी मिल जाएगी। जिस ब्लाग से आपने अभी विदा लेने का संदेश दिया है ईश्वर जल्द ही उसी ब्लाग से हमें आपकी वापसी का संदेश सुनाने का रास्ता दे देगा। इसी उम्मीद के साथ आपका शुभचिंतक---- डा. मान्धाता सिंह----कोलकाता।

Tuesday, 28 June 2011

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मजीठिया बोर्ड का समर्थन किया


कोलकाता में मंगलवार को राईटर्स बिल्डिंग में प्रेस ट्रस्ट यूनियन के प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्रकारों व गैरपत्रकारों के मजीठिया वेतनमान की सिफारिशों को लागू करने के संदर्भ में फौरन अधिसूचना जारी करने की मांग का ग्यापन सौंपा।   
ममता बनर्जी ने पत्रकारों से कहा - बीते दिनों में भी मैं आपके संघर्षों में साथ रही हूं और आगे भी रहूंगी..........
   पत्रकारों व गैर पत्रकारों के लिए नए वेतनमान दिए जाने की सिफारिशों का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने समर्थन किया है। उन्होंने आज राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग में उनसे मिलने गए अखबार कर्मियों और समाचार एजंसी के लोगों को कहा कि मैं मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों के कार्यान्वयन के पक्ष में हूं। मुख्यमंत्री को इस बाबत कान्फेडेरेशन आफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज एजंसी इंप्लाइज आर्गेनाईजेशन की ओर से एक ज्ञापन भी दिया गया। मुख्यमंत्री से मिलने वालों में पीटीआई वर्कर्स यूनियन के लोग भी शामिल थे। ममता ने पत्रकारों से कहा कि बीते दिनों में भी मैं आपके संघर्षों में साथ रही हूं और आगे भी रहूंगी। ममता ने अखबारी प्रतिनिधिमंडल से बातचीत के दौरान ही केंद्रीय सूचना व प्रसारण राज्य मंत्री सीएम जटुआ को फोन लगाया और उनसे वेतनमान की ताजा स्थिति की जानकारी ली।
मुख्यमंत्री ने ज्ञापन लेने के बाद पत्रकारों से कहा कि मैं इस बाबत केंद्र से बात करूंगी। मुख्यमंत्री के अलावा यही ज्ञापन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन को भी सौंपा गया है।

 सिफारिशें जल्द अधिसूचित करने के लिए देशभर में धरने

मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशें जल्द अधिसूचित करने के लिए पत्रकारों और गैर-पत्रकारों की मांग को मंगलवार को राजनीतिक दलों से भी समर्थन मिला। विभिन्न दलों के नेताओं ने संसद के मानसून सत्र में इस मुद्दे को उठाने का वादा किया। माकपा, भाकपा और जद (एकी)के वरिष्ठ नेताओं ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह इस मुद्दे पर हिचकिचा रही है क्योंकि वह पत्रकारों की बजाए कॉरपोरेट घरानों के हितों के लिए काम करना चाहती है। कन्फेडरेशन आफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज एजंसी एंप्लॉइज आर्गेनाइजेशन्स के तत्वावधान में जंतर मंतर पर पत्रकारों और गैर-पत्रकारों ने धरना दिया। इसमें कान्फेडरेशन से संबद्ध संगठन फेडरेशन आफ पीटीआई एम्प्लॉयज यूनियन, यूएनआई वर्कर्स यूनियन, आल इंडिया न्यूजपेपर एम्प्लॉयज फेडरेशन, इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन और नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (आई) के सदस्यों ने भी हिस्सा लिया। नई दिल्ली में पत्रकारों और गैर-पत्रकारों ने अपनी मांगों को लेकर दिन भर का धरना दिया। इस मुद्दे पर प्रदेशों की राजधानियों और कई शहरों में भी अखबारी कर्मचारियों ने धरने दिए।

धरने के दौरान माकपा के तपन सेन और नीलोत्पल बसु ने कहा कि उनकी पार्टी संसद के अंदर और संसद के बाहर यह मुद्दा उठाएगी। दोनों नेताओं ने कहा कि वे इस अभियान को अपना पूरा समर्थन देंगे। भाकपा के राष्ट्रीय सचिव डी राजा ने सरकार पर कॉरपोरेट जगत के हितों के लिए काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने से हिचक रही है। राजा ने कहा कि उनकी पार्टी इस मुश्किल दौर में प्रदर्शनकारियों के साथ है। जद (एकी) प्रमुख शरद यादव ने आरोप लगाया कि वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने की सरकार की कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है। उन्होंने कहा हम यह बात संसद में उठाएंगे और सरकार से सवाल करेंगे कि आखिर वह क्यों अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन नहीं कर रही है।

सिफारिशें जल्द लागू करने की मांग करते हुए कन्फेडरेशन आफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज एजंसी एंप्लॉइज आर्गेनाइजेशन्स के महासचिव एमएस यादव ने सरकार को आगाह किया कि अगर पत्रकारों और गैर-पत्रकारों की मांगों को जल्द नहीं माना गया तो विरोध प्रदर्शन को तेज किया जाएगा। मजीठिया वेतनबोर्ड ने पत्रकारों और गैर.पत्रकारों के वेतनमान में संशोधन के संबंध में अपनी सिफारिशें सरकार को 31 दिसंबर 2010 को सौंप दी थीं। लेकिन छह महीने बीत जाने के बाद भी इसे अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है।

उधर लखनऊ में सैकडों पत्रकार एवं गैर पत्रकार कर्मियों ने प्रदर्शन किया और सिफारिशों को फौरन लागू करने की मांग को लेकर राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा। धरने में शामिल मीडिया कर्मी अपने हाथों में ’ मंहगाई की मार है वेज बोर्ड की दरकार है’ लिखी तख्तियां लिए थे। खराब मौसम और बारिश के बावजूद धरने में सैकड़ो की संख्या में पत्रकार शामिल हुए और जिला प्रशासन के जरिये भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को संबोधित ज्ञापन सौपा ,जिसमें वेजबोर्ड की सिफारिशों को फौरन अधिसूचित करने की मांग की गई है। धरने को विधानपरिषद में प्रतिपक्ष के नेता अहमद हसन ने भी संबोधित किया और समाचारकर्मियों के वेतनमान में संशोधन में हो रही देरी के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की। हसन ने कहा कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव वेतन बोर्ड की सिफारिशों को तुरंत लागू करने के लिए न सिर्फ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर अनुरोध करेंगे बल्कि संसद में भी इस मुद्दे को पुरजोर ढंग से उठाया जाएगा। आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष के विक्रमराव ने अफसोस और आक्रोश जताते हुए कहा कि देश में केवल समाचार पत्रों में ही आज भी 1996 का वेतनमान लागू है, जबकि सरकारी एवं गैर सरकारी तमाम संगठनों में उसके बाद से कई बार वेतन पुनरीक्षण हो चुका है और केंद्र की कांग्रेस नीत यूपीए सरकार समाचार पत्रों के मालिकों के दबाव में सिफारिशें लागू नहीं कर रही है। समाचारपत्र कर्मियों के प्रतिनिधिमंडल ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के माध्यम से भी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी को संबोधित ज्ञापन भिजवाया है।

पटना में आर ब्लाक चौराहे के पास पत्रकार संगठनों ने धरना दिया। इस मौके पर बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के अध्यक्ष कमलेश कुमार और महासचिव अरुण कुमार ने जस्टिस मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं को लेकर किए जा रहे इस दुष्प्रचार को गलत बताया कि बोर्ड की अनुशंसाओं को लागू किए जाने से कई अखबार बंद हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस समय कई अखबारों की राजस्व वृद्धि सौ फीसद से ज्यादा है। धरने के बाद पत्रकार संगठनों के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री आवास और राजभवन जाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राज्यपाल देवानंद कुंवर को ज्ञापन सौंपा।

राजस्थान में जयपुर, बीकानेर, हनुमागढ़, चूरू, जोधपुर, नागौर, श्रीगंगानगर समेत कई जिला मुख्यालयों पर समाचार पत्र उद्योग के कर्मचारियों के अलावा राजनीतिक दलों ने भी मांग के समर्थन में धरना दिया।

चेन्नई में 150 से ज्यादा पत्रकारों और गैर-पत्रकारों ने प्रदर्शन किया। जिलाधीश कार्यालय के सामने किए गए इस प्रदर्शन में समाचारपत्रों के अलावा दो संवाद समितियों, पीटीआई और यूएनआई के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस आंदोलन का नेतृत्व हिंदू के कर्मचारियों और नेशनल प्रेस वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष ई गोपाल ने किया। तिरुवनंतपुरम में यूपीए सरकार पर मीडियाकर्मियों को आंदोलन करने के लिए ‘मजबूर’ करने का आरोप लगाते हुए माकपा नेता वीएस अच्युतानंदन ने वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं को तुरंत अधिसूचित करने के मामले में प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग की है। केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता ने आरोप लगाया कि अखबार और संवाद समितियों के पत्रकारों और गैरपत्रकारों के वेतन संशोधन में देरी को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यही वह एकमात्र क्षेत्र है जहां लंबे समय से वेतन स्थिर बने हुए हैं।

भोपाल में धरने में शामिल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव बादल सरोज, प्रदेश कांग्रेस के पूर्व महामंत्री एवं प्रवक्ता मानक अग्रवाल एवं सैय्यद साजिद अली, जनवादी लेखक संघ के नेता रामप्रकाश और मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ अध्यक्ष शलभ भदौरिया ने कहा कि पिछले दस-बारह साल में महंगाई ने आसमान छू लिया है और सरकारी एवं निजी संस्थानों के कर्मचारियों के वेतनमान कई बार संशोधित हो चुके हैं लेकिन पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों को अब भी पुराना वेतनमान ही दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इन वर्षों में अखबारों का ‘टर्नओवर’ और मुनाफा कई करोड़ बढ़ा है, लेकिन अखबार मालिक इस वेतनबोर्ड के खिलाफ दुष्प्रचार कर अपने कर्मचारियों को बेहतर जीवन जीने का अवसर छीनना चाहते हैं।

   कर्नाटक की राजधानी बंगलूर में आयोजित धरने में कर्नाटक श्रमजीवी पत्रकार संगठन, बंगलूर अखबार पत्रकार संगठन, कर्नाटक पत्रकार परिसंघ, फेडरेशन आॅफ पीटीआई एंपलाइज यूनियन और यूएनआई वर्कर्स यूनियन ने भी हिस्सा लिया। गोवा की राजधानी पणजी में गोवा पत्रकार संगठन (जीयूजे) और अखबार एवं समाचार एजंसी कर्मचारी संगठन परिसंघ की अगुवाई में आजाद मैदान में धरना दिया गया। वेतनबोर्ड के प्रस्तावों के क्रियान्वयन के लिए राज्यपाल एसएस सिद्धू, मुख्यमंत्री दिगंबर कामत, मुख्य सचिव संजय श्रीवास्तव और श्रमायुक्त को ज्ञापन सौंपे गए। जीयूजे के अध्यक्ष पांडुरंग गावंकर ने कहा कि केंद्र जानबूझकर वेतनबोर्ड की सिफारिशों को लागू करने में देर कर रहा है। ( साभार - जनसत्ता संवाददाता और एजंसियां )।

Monday, 20 June 2011

आखिर कब तक टोटकों से होते रहेंगे लोगों के इलाज ?

चिकित्सा विग्यान के इतनी प्रगति के बावजूद भारत में अंधविश्वास से रोगों का इलाज बदस्तूर जारी है। कहीं झाड़फूंक तो कहीं टोनेटोटके लोगों के लिए दवाओं से ज्यादा कारगर लगते हैं। यह शायद इसलिए भी क्यों कि मंहगी चिकित्सा व उपयुक्त डाक्टर आम लोगों को अभी भी इस देश के लोगों को उपलब्ध नहीं हैं। देश के अनेक हिस्से में दैविक इलाज को आज भी रामबाण मानने को लोग मजबूर हैं। पश्चिम बंगाल में कई महिलाओं को डायन बताकर मारा जा चुका है। इन डायन के बारें में भ्रांति है कि इसके जादू टोने से की लोग अकाल मौत के शिकार हो जाते हैं। पूरे भारत खास तौर से उत्तर भारत में भूतप्रेत भगाने वाले ओझे कुख्यात हैं। धार्मिक इलाज व चमत्कार के धनी साईं बाबा को तो सभी जानते हैं। बीरभूम के बेली का धर्मराज मंदिर भी इसी तरह का स्थल है जहां की रोगों के इलाज के लिए श्रद्धालु जुटते हैं। चित्र में देखिए इलाज के लिए जुटे लोगों की भीड़।


  

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में १९ जून रविवार को अषाढ़ के पहले दिन बारिश और कीचड़ में एक बीमार को इसलिए लाया गया है क्यों कि ऐसी मान्यता है कि इस धार्मिक उपचार से लोगों के असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। नीचे के चित्र में एक शख्श को उसकी पत्नी व मां कीचड़ पोत रही है। ऐसा बीरभूम जिले के बेलिया के धर्मराज मंदिर में सार्वजनिक तौर पर किया जाता है। दूसरे चित्र में महिलाएं इसी मंदिर में कीचड़ का उपयोग जोड़ों व हड्डी के दर्द से निवारण के लिए के लिए कर रही हैं। संभव है इस टोटके से इनको कुछ राहत मिलती हो मगर क्या इन रोगों का इलाज दवाओं से संभव नहीं ? संभव है और यह इन्हें भी पता है मगर बिना खर्च के इस इलाज को अपनाने में ये लोग कोई हर्ज नहीं समझते। जागरूकता की कमी और मंहगे होते डाक्टर व इलाज भी शायद इसके लिए दोषी है।

Friday, 20 May 2011

शून्य से बंगाल की पहली मुख्यमंत्री तक का ममता का सफर


जुझारू तेवर और सादगी व ईमानदारी की मिशाल बनकर लड़ीं

   जैसे ही घड़ी में दोपहर को घड़ी की सुईयां एक बजकर एक मिनट पर पहुंची ममता बनर्जी भी शपथ ग्रहण के लिए मंच पर पहुंच चुकी थीं। गर्मजोशी से राज्यपाल व शपथग्रहण समारोह में आमंत्रित अतिथियों का अभिवादन करके पश्चिम बंगाल की नई मुख्‍यमंत्री के तौर पर पद और गोपनीयता की शपथ ली। शपथ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन ने दिलाई। ममता ने बांग्ला में शपथ ग्रहण किया। इसके साथ ही ममता राज्य की 11 वीं और पहली महिला मुख्यमंत्री बन गईं। शपथ ग्रहण समारोह राजभवन में आयोजित किया गया। ममता के बाद अमित मित्रा, मनीष गुप्ता, सुब्रत मुखर्जी, अब्दुल करीम चौधरी, उपेंद्र विश्वास, जावेद खान, साधन पांडेय , सावित्री मित्रा, मदन मित्रा और नूर आलम चौधरी सहित 42 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली। इनमें तृणमूल कांग्रेस के ३५ कांग्रेस के ७ विधायक थे। शपथ ग्रहण के बाद शाम करीब 4 बजे ममता बनर्जी ने राजभवन में राज्‍यपाल से मुलाकात की। इसके बाद वह राइटर्स बिल्डिंग पैदल ही रवाना हुईं। उनके साथ करीब 1 हजार समर्थक भी चल रहे थे। इसके बाद ममता ने कोलकाता के राइटर्स बिल्डिंग में नई कैबिनेट की पहली बैठक की।

  पश्चिम बंगाल में 34 साल बाद वामपंथी सरकार को हराकर तृणमूल कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई है। इसके साथ कांग्रेस का भी गठबंधन है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के साथ गृहमंत्री पी चिदंबरम कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। बिमान बोस, रक्षा मंत्री एके एंटनी भी ममता को बधाई देने पहुंचे। दिलचस्प बात यह रही कि कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य भी शामिल हुए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विदेश यात्रा के कारण इस कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर पाए जबकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी किसी और कारण से समारोह में शामिल नहीं हुईं।

जहां हुई थी बेइज्जती वहीं अब शान से पहुंचीं ममता


पश्चिम बंगाल में वामपंथियों का किला ध्वस्त करने के बाद धुन की पक्की ममता बनर्जी शान से शुक्रवार २० मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर रॉयटर्स बिल्डिंग में प्रवेश किया। कभी इसी रॉयटर्स बिल्डिंग में ममता बनर्जी को जीवन की सबसे बड़ी बेइज्जती का सामना करना पड़ा था। पुलिस ने ममता बनर्जी को इस बिल्डिंग से बाल पकड़कर बाहर निकाला था और लॉकअप में बंद कर दिया था। ममता का जुर्म सिर्फ यह था कि वो एक गूंगी बहरी लड़की के बलात्कार के मामले में न्याय चाहती थीं।

पश्चिम बंगाल के नदियाया जिले के फूलिया गांव की रहने वाली गूंगी बहरी लड़की दीपाली बसक का एक सीपीएम कार्यकर्ता ने बलात्कार किया था। ममता बनर्जी ने 1992 के इस मामले को रॉयटर्स बिल्डिंग में उठाने की कोशिश की थी। वो दीपाली को लेकर सचिवालय पहुंची थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु से मिलना चाहती थी। ममता ने ज्योति बसु से मिलने के लिए पहले समय नहीं लिया था इसलिए उन्हें उनसे नहीं मिलने दिया गया बल्कि पुलिस ने ममता के साथ बदतमीजी की। 1992 की इस घटना के बाद ममता कभी भी रॉयटर्स बिल्डिंग में नहीं गईं और न ही उन्होंने कभी अपने बाल ठीक से बांधे।

दीपाली का क्या हुआ
दीपाली का बलात्कार एक सीपीएम कार्यकर्ता ने किया था जो बलात्कार के बाद गांव छोड़कर फरार हो गया। पुलिस ने भी इस मामले में दिलचस्पी नहीं ली। ममता बनर्जी ने मुद्दों को कलकत्ता में तो उठाया लेकिन वो भी कभी उससे मिलने फूलिया नहीं पहुंची। कुछ नेता दीपाली के घर पहुंचे लेकिन बंगाल ने धीरे-धीरे उसे भुला दिया। बलात्कार की शिकार दीपाली गर्भवती हो गई थी। उसने एक बेटी को जन्म दिया जो एक आश्रम में पल रही है। दो साल पहले सांप के काटने से दीपाली की मौत हो गई। दीपाली का परिवार अभी भी न्याय की आस लगाए बैठा है।

क्यों अलग हैं ममता


पश्चिम बंगाल में 34 साल से सत्ता में बने हुए वामपंथियों के ख़िलाफ़ एक बड़ा राजनीतिक युद्ध लड़ने के बाद ममता बनर्जी आगे की योजनाएँ बना रही हैं. कहने को इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी, मायावती, उमा भारती और महबूबा मुफ़्ती से जयललिता तक, भारत में महिला राजनेताओं की बड़ी फ़ेहरिस्त है. लेकिन ममता अलग हैं. इंदिरा गांधी के पीछे जवाहर लाल नेहरु थे, सोनिया के पीछे राजीव गांधी, मायावती के पीछे कांशी राम, उमा भारती के पीछे पहले विजयाराजे सिंधिया और बाद में गोविंदाचार्य, महबूबा मुफ़्ती मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी हैं तो जयललिता एमजीआर की उत्तराधिकारी हैं. लेकिन ममता के पीछे किसी भी ऐसे बड़े पुरुष राजनेता का नाम नहीं लिया जा सकता जिसके बिना वो वहां पहुँच सकती थीं, जहाँ वो आज हैं. आज जब ममता बोलती है तो उनके शत्रु तक ध्यान से सुनते हैं. वो देश में वामपंथ विरोधी आंदोलन का एक मात्र चेहरा हैं."

उग्र स्वभाव, सादे जीवन ने ममता को बनाया बंगाल की दीदी
ममता बनर्जी का जन्म 5 जनवरी 1955 को कोलकाता के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। ममता ने छात्र जीवन के शुरुआती दिनों से ही राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरु कर दी थी और 1970 के दशक में वो कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता बन गई। 1976 में ममता बंगाल महिला कांग्रेस की महासचिव बन गई थीं। जयप्रकाश नारायण की कार के बोनट पर कूदकर ममता सुर्खियों में आई और उसके बाद से बंगाल की राजनीति में अपना स्थान बनाती चली गईं। 1984 के चुनाव में जादवपुर सीट से सोमनाथ चटर्जी को हराकर ममता बनर्जी ने सबसे युवा सांसद बनने का इतिहास रचा।

1989 में कांग्रेस विरोधी माहौल में ममता सांसद का चुनाव हार गई लेकिन 1991 के आमचुनावों में उन्होंने दक्षिण कलकत्ता सीट से जीत दर्ज की। 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 के चुनावों में ममता ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। 1991 में राव सरकार में ममता मानव संसाधन विकास, खेल ओर युवा कल्याण तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रहीं। हालांकि अप्रैल 1993 में ममता से मंत्रीपद ले लिया गया। ममता बनर्जी अपने उग्र स्वभाव के चलते काफी विवादों में भी रहीं। 1996 में उन्होंने अलिपुर में एक रैली के दौरान अपने गले में काली शाल से फांसी लगाने की धमकी भी दी। जुलाई 1996 में पेट्रोल की कीमतें बढ़ाने के विरोध में ममता सरकार का हिस्सा रहते हुए भी लोकसभा के पटल पर ही विरोध में पालथी मारकर बैठ गई थीं।

ममता ने इसी दौरान तत्कालीन समाजवादी पार्टी सांसद अमर सिंह का कॉलर भी पकड़ लिया था। फरवरी 1997 में रेल बजट पेश होने के दौरान ममता ने रेलमंत्री रामविलास पासवान पर अपनी शाल फेंककर बंगाल की अनदेखी के विरोध में अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी। हालांकि बाद में उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया था। 11 दिसंबर 1998 को ममता ने समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज को महिला आरक्षण बिल का विरोध करने पर कॉलर पकड़कर संसद के बाहर खींच लिया था।

कांग्रेस से अलग होकर ममता ने 1 जनवरी 1998 को अपनी पार्टी आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और 1999 में एनडीए की गठबंधन सरकार में वो रेलमंत्री रहीं। हालांकि वो ज्यादा दिनों तक सरकार का हिस्सा नहीं रही और 2001 में सरकार से अलग हो गई। इसके बाद 2004 में चुनाव से पहले वो फिर एनडीए सरकार में आई और खदान एवं कोयला मंत्री रहीं। 2004 चुनाव में ममता की पार्टी की बुरी हार हुई लेकिन 2009 चुनाव में पार्टी ने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। ममता फिलहाल केंद्र सरकार में रेल मंत्री हैं। आजीवन कुंवारी रहने वाली ममता बनर्जी ने उतार-चढ़ाव भरे अपने अब तक के राजनीतिक जीवन में सादगी को बनाए रखा है और वो गहनों या कपड़ों पर कभी खर्च नहीं करती हैं। पार्टी में दीदी के नाम से जानी जाती हैं और बेहद सादा जीवन व्यतीत करती हैं।

कभी दूध बेचा करती थीं ममता बनर्जी, 28 किताबें लिख चुकी हैं

आज पश्चिम बंगाल की जिम्‍मेदारी संभालने वालीं ममता बनर्जी को कभी घर की जिम्‍मेदारी पूरी करने के लिए दूध बेचना पड़ा था। ममता के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और जब वे बहुत छोटी थीं तभी उनकी मृत्यु हो गई थी। तब दूध बेच कर उन्होंने अपनी विधवा मां की परिवार चलाने में मदद की। ममता ने 70 के दशक में कांग्रेस की छात्र इकाई से अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की थी। उस समय इस इकाई ने कोलकाता से नक्सलियों को उखाड़ फेंकने में अहम भूमिका निभाई थी।

ममता ने कानून और शिक्षा के अलावा कला में भी डिग्री हासिल की है। ममता को राजनीति में सुब्रत मुखर्जी लाए थे। अब मुखर्जी तृणमूल कांग्रेस में ममता के अनुयायियों में से एक हैं। ममता को 1984 से पहले पश्चिम बंगाल के बाहर कोई नहीं जानता था, लेकिन जब उन्होंने इस साल के अपने पहले लोकसभा चुनाव में ही जादवपुर से माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी को पराजित कर दिया तो वे देशभर में मशहूर हो गईं। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। ममता राजनीति के अलावा चित्रकारी और लेखन में भी रुचि रखती हैं। वे एक अच्छी रसोईया भी हैं। वे धार्मिक भी हैं और हर साल काली पूजा में जरूर हिस्सा लेती हैं।साल 2009 के और इस बार के चुनावों में भी ममता का नारा 'मां, माटी और मानुष' था। बंगाल के जनमानस में ‘पोरीबोर्तन’ का सपना भरने वाली ममता बनर्जी के जीवन का एक अनजाना पहलू यह भी है कि वे एक संवेदनशील कवयित्री हैं। उनकी कविताओं में भी ‘बदरंग’ हो चुकी राजनीति के ‘पोरीबर्तन’ (बदलाव) की छटपटाहट है और साथ-साथ इसकी इस आशय की हुंकार भी है। उनकी अब तक 28 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से 25 बांग्ला और तीन अंग्रेजी में हैं। इसके अलावा वह कुछ बांग्ला गीत लिखने के साथ-साथ उन गीतों को संगीतबद्ध भी कर चुकी हैं। सहयोगियों के अनुसार ममता चित्रकार भी हैं और लगभग पांच हजार से अधिक चित्र उकेर चुकी हैं। उन चित्रों को बेचने से हुई आय वे अपनी पार्टी के फंड एवं अन्य दान कार्यों के लिए देती रही हैं।


राजनीतिक सफर


जीवन के शुरुआती दिनों से ही राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरु कर दी थी और 1970 के दशक में ममता बनर्जी कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता बन गई. 1976 में ममता बंगाल महिला कांग्रेस की महासचिव बन गई थीं. जयप्रकाश नारायण की कार के बोनट पर कूदकर ममता सुर्खियों में आई और उसके बाद से बंगाल की राजनीति में अपना स्थान बनाती चली गईं. 1984 के चुनाव में जादवपुर सीट से सोमनाथ चटर्जी को हराकर ममता बनर्जी ने सबसे युवा सांसद बनने का इतिहास रचा. 1989 में कांग्रेस विरोधी माहौल में ममता सांसद का चुनाव हार गई लेकिन 1991 के आमचुनावों में उन्होंने दक्षिण कलकत्ता सीट से जीत दर्ज की.

1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 के चुनावों में ममता ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा. 1991 में राव सरकार में ममता मानव संसाधन विकास, खेल ओर युवा कल्याण तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रहीं. हालांकि अप्रैल 1993 में ममता से मंत्रीपद ले लिया गया. ममता बनर्जी अपने उग्र स्वभाव के चलते काफी विवादों में भी रहीं. 1996 में उन्होंने अलीपुर में एक रैली के दौरान अपने गले में काली शॉल से खुद को फांसी लगाने की धमकी भी दी. जुलाई 1996 में पेट्रोल की कीमतें बढ़ाने के विरोध में ममता सरकार का हिस्सा रहते हुए भी लोकसभा के पटल पर ही विरोध में ज़मीन पर बैठ गई थीं. फरवरी, 1997 में रेल बजट पेश होने के दौरान ममता ने रेलमंत्री रामविलास पासवान पर अपनी शॉल फेंककर बंगाल की अनदेखी के विरोध में अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी. हालांकि बाद में उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया था.

11 दिसंबर 1998 को ममता ने समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज को महिला आरक्षण बिल का विरोध करने पर कॉलर पकड़कर संसद के बाहर खींच लिया था. कांग्रेस से अलग होकर ममता ने 1 जनवरी, 1998 को अपनी पार्टी आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और 1999 में एनडीए की गठबंधन सरकार में वो रेलमंत्री रहीं. हालांकि वो ज्यादा दिनों तक सरकार का हिस्सा नहीं रही और 2001 में सरकार से अलग हो गई. इसके बाद 2004 में चुनाव से पहले वो फिर एनडीए सरकार में आई और खदान एवं कोयला मंत्री रहीं. 2004 चुनाव में ममता की पार्टी की बुरी हार हुई लेकिन 2009 चुनाव में पार्टी ने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया.


बंगाल में 34 साल बाद ईश्वर के नाम पर शपथ


पश्चिम बंगाल में बदलाव के पहले प्रतीक के रूप में तृणमूल कांग्रेस की नई सरकार के कई मंत्रियों ने शुक्रवार को ईश्वर को साक्षी मानकर पद और गोपनीयता की शपथ ली। इससे पहले वामपंथी सरकारों के मंत्री संविधान के प्रति निष्ठा के नाम पर शपथ लेते थे प्रदेश में वर्ष 1977 के बाद से लगातार सत्ता में रहे वाम मोर्चे की राजनीतिक विचारधारा नास्तिक है इसलिए मोर्चे के नेता शपथ ग्रहण के दौरान संविधान के प्रति निष्ठा व्यक्त करते थे। इसके विपरीत तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के ज्यादातर मंत्रियों ने शुक्रवार को भगवान के नाम पर पद और गोपनीयता की शपथ ली। तृणमूल कांग्रेस के पूर्णेदू बोस जैसे कुछ ही नेताओं ने संविधान के प्रति सत्यनिष्ठा के नाम पर शपथ ली।
एक अन्य बदलाव के तहत प्रदेश की नई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राजभवन से प्रदेश सचिवालय तक का दो किलोमीटर का रास्ता पैदल चलकर तय किया। इससे पहले वामपंथी शासन के समय नेतागण कार से ही यह रास्ता तय करते थे। ममता बनर्जी ने सभी मंत्रियों को धोती-कुर्ता पहनकर और महिला मंत्रियों को साड़ी पहनकर शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने का निर्देश दिया था।



कभी मारी थी सिर पर लाठी, अब पैरों पर गिरना चाहता है

16 अगस्त 1990 को पश्चिम बंगाल में बंद के दौरान ममता बनर्जी कांग्रेस की रैली लेकर कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के हाजरा रोड पर निकली थीं। इस रैली के दौरान सीपीआई की यूथ ब्रिगेड डीवाईएफआई का कार्यकर्ताओं ने चारों से घेरकर ममता पर हमला किया था। डीवाईएफआई के कार्यकर्ता लालू आलम ने ममता के सिर पर लाठी मारी थी। ममता के सिर में फ्रैक्चर हुआ था और उन्हें एक महीने अस्पताल में रहना पड़ा था। लालू अब अपने किए पर पछता रहा है। लालू अब अपने किए पर इतना ज्यादा शर्मिंदा है कि वो ममता के पैर पकड़कर माफी मांगना चाहता है। 21 साल पहले ममता पर हमला करने के मामले में लालू पर मुकदमा चल रहा है। 51 वर्षीय आलम का कहना है कि वो निर्दोष है क्योंकि उसका इरादा ममता की हत्या करने का नहीं था। ममता पर हमले के बाद सीपीआई ने भी लालू को पार्टी से निकाल दिया था। लालू आलम फिलहाल एक स्टूडियो चलाता है।


अब बंगाल के लिए खजाना खोलने को तैयार हैं 

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद अब अप्रवासी भारतीय भी वहां निवेश के लिए अपना खजाना खोलने को तैयार दिख रहे हैं। कनाडा में रह रहे अप्रवासी भारतीयों ने ममता बनर्जी से अपील की है कि वे पश्चिम बंगाल में औद्योगिकीकरण को अपने एजेंडे में खास प्राथमिकता दें।

इस सिलसिले में कनाडा के सेर्टेक्स कार्पोरेशन के अध्यक्ष जय सरकार ने कहा है कि यह वक्त की बात है कि पश्चिम बंगाल बदलाव चाहता है और बदलाव हुआ है। नई सरकार को लोगों की आवाज सुनते हुए तेजी से काम करने की जरुरत है। उन्होंने यह भी कहा है कि वे पश्चिम बंगाल में उद्योग स्थापित करना चाहते हैं। और इसके लिए काम भी कर रहे हैं लेकिन पश्चिम बंगाल की स्थिति को लेकर अब तक वे आशंकित थे। लेकिन उन्हे उम्मीद है कि अब उद्योगों के लिए पश्चिम बंगाला में स्थिति बेहतर होगी।

जय सरकार ने यह भी कहा कि उनके अलावा भी ऐसे तमाम एनआरआई हैं जो बंगाल में निवेश करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। लेकिन इसके लिए वहां सुस्त पड़ी औद्योगिक विकास की रफ्तार में तेजी लाने की जरूरत है। दरअसल जानकारों का यह मानना है कि बीते कई सालों से बंगाल में औद्योगिक मामले में खास तेजी नहीं देखी गई है। ऐसे में वहां निवेश करना उद्योगपतियों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है। दूसरी ओर इससे मुश्किल दौर से गुजर रही बंगाल की इकोनॉमी को भी मदद मिलेगी। ऐसे में इसे नई सरकार के लिए भी एक सुनहरे मौके के तौर पर देखा जा सकता है।

बंगाल में लहराया ममता का परचम, लेफ्ट के 26 मंत्री हारे

देश के चार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभाओं के लिए हुए चुनाव में सबसे बड़ा उलटफेर बंगाल में हुआ है, जहां ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस के गठबंधन ने 34 साल से सत्ता पर काबिज वाम मोर्चे का लाल गढ़ ढहा दिया है। विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की अगुवाई वाले गठबंधन ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य सहित लेफ्ट के कई दिग्‍गज अपनी सीट भी नहीं बचा सके हैं। तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन 228 सीटें जीत चुका है। चुनाव परिणामों से उत्‍साहित ममता बनर्जी ने राज्‍य के मतदाताओं का शुक्रिया अदा किया है। उन्‍होंने कहा, ‘हमें उन शहीदों को याद करना चाहिए जो तीन दशक तक चले लंबे संघर्ष में मारे गए हैं।’ यह कहते-कहते ममता भावुक हो उठीं और उनकी आंखों से आंसू छलक उठे।

ममता ने दक्षिण कोलकाता में हरीश चटर्जी स्‍ट्रीट स्थित अपने घर के बाहर जुटी समर्थकों की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, 'यह बंगाल की दूसरी आज़ादी है। यह मां, माटी और मानुष की जीत है। यह लोकतंत्र की जीत है। यह वामपंथियों की उत्‍पीड़न पर जीत है। अब राज्‍य में शांति और खुशहाली बहाल होगी।' ममता बनर्जी ने राज्‍य के लोगों से शांति की अपील की है। उन्‍होंने कहा कि यह बेहद खुशी की बात है कि उन्‍हें यह जीत रविंद्र नाथ टैगोर की 150वीं जयंती पर मिली है। उन्‍होंने कहा कि राज्‍य में शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ी नीतियों में बदलाव की जरूरत है और ऐसा अब किया जाना संभव है। उन्‍होंने पीएम मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी के समर्थन के लिए शुक्रिया अदा किया।

क्‍यों ढहा लेफ्ट का किला?

लेफ्ट का गढ़ माने जा रहे पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और रेल मंत्री ममता बनर्जी ने सेंध लगा दी। राज्य में वाम मोर्चे का 34 साल पुराना किला ढहने के संकेत पिछले लोकसभा चुनाव में ही मिल गए थे, जब तृणमूल कांग्रेस का जादू जनता के सिर चढ़कर बोला। 2010 में हुए स्‍थानीय निकाय के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का जोरदार प्रदर्शन रहा था। भूमि अधिग्रहण का शिकार हुए कमजोर गांववालों और किसानों की आवाज बनकर उभरी। वाम मोर्चा की अगुवाई वाली सरकार ने वर्ष 2006 में सत्ता में आने के बाद औद्योगिक नीतियों में बदलाव किया जिसके कारण सरकार के प्रति लोगों का विश्वास घट गया था। इसके बाद ‘नंदीग्राम’ और ‘सिंगूर’ की घटना ने आग में घी का काम किया। तृणमूल कांग्रेस ने इन मौका का भरपूर फायदा उठाया और खासकर ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत की।


पश्चिम बंगाल : सीट- 294
तृणमूल कांग्रेस 186
कांग्रेस 42
माकपा 39
सहयोगी 19
अन्य 08

Wednesday, 11 May 2011

एक्जिट पोल की बजी ढोल- ढह गया कम्युनिस्टों का लाल किला

छह चरणों में पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव संपन्न हो गया है। नतीजे तो १३ को ही आएँगे मगर मंगलवार की शाम को ही एक्जिट पोल के नतीजे आ गए। सर्वे की रिपोर्ट को हकीकत मानें तो ३४ सालों बाद पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्टों का अभेद्य लाल गढ़ ढहता दिख रहा है। वैसे तो १९७७ से लगातार तीन दशक से अधिक समय से पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज कम्युनिष्ट सरकार की नींव पिछले पंचायत , लोकसभा और कोलकाता नगर निगम व नगरपालिका चुनावों में हिल चुकी है। अब विधानसभा चुनावों में कम्युनिस्टों को भारी पराजय का सामना करना पड़ सकता है। कौतूहल भरी इस दिलचस्प लड़ाई का आखिरी दौर भी खत्म हो चुका है। शुरू से ही निरपेक्ष भाव से मैं भी अपने ब्लाग के माध्यम से आपको इस जंग से रूबरू करा रहा था। जीत का सेहरा किसके सिर होगा, यह को १३ मई को ही मुकम्मल तौरपर पता चल पाएगा। फिलहाल आइए एक्जिट पोल पर नजर डालें।

यह भी जान लें कि किस चरण में कितना हुआ मतदान
पहला चरण - 54 सीटें - 83.75%
दूसरा चरण - 50 सीटें - 85.32%
तीसरा चरण - 75 सीटें - 78.3%
चौथा चरण - 63 सीटें - 84.8%
पाँचवाँ चरण - 38 सीटें - 83%
छठवाँ चरण - 14 सीटें - 83.48%

ब्लाग नियंत्रक - डा.मान्धाता सिंह

  बंगाल व केरल में होगा सत्ता परिवर्तन, वाममोर्चा का सफाया कर देगा तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन - स्टार न्यूज टेलिविजन चैनल सर्वे

    आजतक, हेडलाइन्स, ओआरजी सर्वे और स्टार न्यूज टीवी ने अलग-अलग कराए सर्वे में बताया है कि ममता बनर्जी की तृणमूल और कांग्रेस गठबंधन पश्चिम बंगाल में आसानी से दो तिहाई बहुमत हासिल कर लेगा। यानी सर्वे की मानें तो कम्युनिस्टों का लाल किला ढह चुका है। हालांकि माकपा के राज्यसचिव विमान बोस ने कोलकाता में माकपा मुख्यालय अलीमुद्दीन स्ट्रीट में मंगलवार को पत्रकारों से बातचीत में सर्वे को सिरे से खारिज करके फिर दावा किया कि- सरकार वाममोर्चा की ही बनेगी। अभी हाल ही में बीबीसी हिंदी को कोलकाता स्थित संवाददाता से बातचीत में कहा था- लिख लो वाममोर्चा की ही सरकार बनेगी। उन्होंने यह भी कहा कि ये जो समाज शास्त्री चुनाव विश्लेषक 2009 के लोक सभा चुनावों के नतीजों को आधार बना कर कहते हैं कि वाम मोर्चा हार जाएगा. ये 13 मई को मतगणना के दिन चुप हो जाएँगें।


    दावे तो राजनीतिक स्तर पर किए ही जा सकते हैं। मगर इतना तो तय है कि ममता बनर्जीं की कम्युनिस्टों के साथ छिड़ी इस जंग ने पश्चिम बंगाल को एक ऐतिहासिक परिवर्तन के दौर में ला खड़ा किया है और कुशासन से लड़ना भी सिखा दिया। कांग्रेस भी पश्चिम बंगाल में मजबूत विपक्ष रह चुकी है मगर कभी परिवर्तन की वह इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाई जो आज ममता बनर्जीं के कारण दिख रही है। कांग्रेस की इसी चरित्र के कारण उसके विरोधी उसे माकपा की बी टीम कहने लगे थे। यह सच है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता मगर अपनी जान को जोखिम में डालकर पश्चिम बंगाल में संगठित वाममोर्चा से लड़ने की हिम्मत तो ममता बनर्जी ने ही जुटाई। बंगाल के इस परिवर्तनवादी मुकाम का एक ही चेहरा है-ममता बनर्जी।


ममता बनर्जी का सीएम बनना लगभग तय : आजतक सर्वे

   क्या पश्चिम बंगाल में बदला जाएगा इतिहास. 35 साल से सत्ता पर काबिज वाममोर्चे को बंगाल की जनता कर देगी सत्ता से बेदखल. आजतक, हेडलाइन्स, ओआरजी सर्वे ने पश्चिम बंगाल में सभी चरणों के मतदान के बाद तैयार की है बंगाल की पोस्टपोल तस्वीर इस तस्वीर में ममता अपने विरोधियों से काफी आगे दिख रही हैं जबकि वाममोर्चा का किला टूटता दिख रहा है.

   आजतक-हेडलाइन्स-ओआरजी सर्वे के मुताबिक पोस्ट पोल में वाममोर्चा को 65 से 70 सीट मिल सकती हैं. इन्हें 39 फीसदी वोट मिल सकता है. पोस्टपोल के मुताबिक वाममोर्चे को 160 सीटों का घाटा है जबकि उसका वोट प्रतिशत 9 फीसदी घटा है.

    2006 विधानसभा के मुताबिक वाममोर्चा को 294 में से 227 सीट मिलीं थीं जबकि उसका वोट प्रतिशत 48 फीसदी था. इस तरह से अगर मुकम्मल तस्वीर देखें तो 2011 में पोस्टपोल के मुताबिक वाममोर्चा 65 से 70 सीट पा सकता है उसे 39 फीसदी वोट मिलेंगे उसे 9 फीसदी वोटों के साथ 160 सीटों का नुकसान होगा जबकि 2006 में उसने 48 फीसदी वोट के साथ 227 सीट जीतीं थीं.

इस तरह से आजतक-हेडलाइन्स-ओआरजी पोस्ट सर्वे के मुताबिक लेफ्ट का लाल गढ़ ढहता दिख रहा है और ममता बनर्जी, कांग्रेस और अन्य की सरकार बनती दिख रही है. आंकड़ों की जुबानी अगर इस बात को समझें तो ममता बनर्जी गठबंधन को 210 से 220 सीट मिल सकती हैं. गठबंधन को 48 फीसदी मत मिल सकते हैं. ममता गठबंधन को 186 सीटों का फायदा होता दिख रहा है जबकि गठबंधन का वोट प्रतिशत 19 फीसदी बढ़ा है.

   2006 विधानसभा में ममता को बीजेपी के साथ 29 फीसदी वोट और 30 सीट मिलीं थीं जबकि कांग्रेस को 17 फीसदी वोट के साथ 21 सीट मिलीं थीं. पर 2011 में दोनो साथ में हैं लिहाजा पोस्ट पोल से जो मुकम्मल तस्वीर बनती है वो ये है कि गठबंधन को 210 से 220 सीट मिलेंगी इन्हें 48 फीसदी वोट मिल सकता है. इन्हें 2006 की अपेक्षा 186 सीट का फायदा हो सकता और उनका वोट प्रतिशत करीब 19 फीसदी बढ़ सकता है.

    इस तरह से साफ है कि ममता बनर्जी अपने गठबंधन के साथ बड़ी जीत पाती दिख रही हैं. यानी बंगाल में एक बड़े ऐतिहासिक बदलाव के संकेत दो तिहाई से ज्यादा के बहुमत से साफ हैं. सर्वे में बाकी सीटों के बारे में संकेत हैं कि अन्य 6 फीसदी वोट के साथ 16 सीट पर काबिज हो सकते हैं जो पिछली बार से 26 सीट कम होगा और वोट प्रतिशत में 10 फीसदी कम हो सकता है. इस तरह से ममता सत्ता पर काबिज दिखती हैं और लेफ्ट सत्ता से बाहर.

बंगाल व केरल में होगा सत्ता परिवर्तन, वाममोर्चा का सफाया कर देगा तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन - स्टार न्यूज टेलिविजन चैनल सर्वे
    एक और चुनाव बाद सर्वे ने दावा किया है कि बंगाल व केरल में सत्ता परिवर्तन होगा जबकि तमिलनाडु में यह बेहद करीबी मामला होगा। चैनल के एक्जिट पोल सर्वे के मुताबिक बंगाल में तृणमूल को १८१, कांग्रेस को ४० और वाममोर्चा को ६२ सींटे मिल सकती हैं। अगर इस सर्वे पर भरोसा करें तो ३५ साल पुरानी वाममोर्चा सरकार का बंगाल से सफाया हो जाएगा जबकि इसके पूर्व विधानसभा में इसकी २२७ सीटें थीं।

इसी तरह केरल में कांग्रेस की संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा को ८८ और माकपा के वाम लोकतांत्रिक मोर्चा को ४९ सीटें मिलेंगी। तमिलनाडु की २३४ सीटों में से आलइंडिया अन्नाद्रमुक को ११० और द्रमुक को १२४ सीटें मिलने की संभावना जताई गई है।

असम में तरुण गोगोई सरकार को इस सर्वे में तीसरी बार भी सत्ता में आने की बात कही गई है। हेडलाइन्स टूडे के सर्वे के मुताबिक असम में कांग्रेस को १२६ में ४४ सीटें जीतने का दावा किया गया है। विपक्ष को महज १४ सीटें जीतने का अनुमान लगाया गया है।


प. बंगाल चुनाव: छठे चरण में 84 फीसदी मतदान

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के छठे एवं अंतिम चरण में 14 सीटों के लिए हुए मतदान में 84.8 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. मतदान पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा.

उप चुनाव आयुक्त विनोद जुत्शी ने मतदान की समाप्ति के बाद संवाददाताओं को बताया, ‘पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा, पुरूलिया और पश्चिमी मिदनापुर जिलों के 14 विधानसभा सीटों के लिए 84.8 प्रतिशत मतदान हुआ. मतदान बहुत ही शांतिपूर्ण रहा और कहीं से भी किसी अप्रिय घटना का समाचार नहीं है.’

उन्होंने बताया कि मतदान का प्रतिशत कुछ और बढ़ सकता है क्योंकि मतदान की समय सीमा समाप्त हो जाने के बाद भी अनेक मतदान केन्द्रों पर लोग वोट डालने के लिए लाइनों में लगे थे. गौरतलब है कि वर्ष 2006 में हुए विधानसभा चुनाव में इन निर्वाचन क्षेत्रों में 82.53 फीसदी और 2009 के लोकसभा चुनाव में 76.49 प्रतिशत मतदान हुआ था.

सबसे ज्यादा 86.6 प्रतिशत मतदान पश्चिमी मिदनापुर जिले में हुआ जबकि पुरूलिया जिले में 80.1 प्रतिशत और बाकुंड़ा जिले में 85.5 प्रतिशत मतदान हुआ. छठे चरण के इस मतदान से 97 उम्मीदवारों के राजनीतिक भाग्य का फैसला इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों में कैद हो गया. इन उम्मीदवारों में राज्य की मंत्री सुसांता घोष और पीसीपीए नेता छत्रधर महतो शामिल हैं.

अंतिम चरण में कुल 7 महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में थीं. 294 सदस्यीय पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए इस बार 18 अप्रैल से 10 मई के बीच छह चरणों में चुनाव कराये गये. सभी सीटों के लिए मतगणना 13 मई को होगी. उप चुनाव आयुक्त ने बताया कि इन 14 निर्वाचन क्षेत्रों के 26 लाख 57 हजार से ज्यादा मतदाताओं के लिए कुल 3534 मतदान केन्द्र बनाये गये थे.

शांतिपूर्ण तरीके से मतदान संपन्न कराने के लिये सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गये थे. स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने एक विशेष पर्यवेक्षक, 14 सामान्य पर्यवेक्षक और तीन व्यय पर्यवेक्षकों के अलावा पुलिस पर्यवेक्षक के रूप में भारतीय पुलिस सेवा के तीन वरिष्ठ अधिकारियों को तैनात किया था.

जुत्शी ने बताया कि कानून व्यवस्था बनाये रखने के इरादे से निरोधात्मक कार्रवाई के तहत ऐहतियात के तौर पर 22 व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया. उन्होंने बताया कि पुरूलिया जिले में एक मतदान केन्द्र में लोगों ने स्थानीय मुद्दे को लेकर मतदान का बहिष्कार किया.

उन्होंने राज्य की सभी 294 सीटों के लिए मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह शांतिपूर्ण तरीके से पूरी होने पर प्रसन्नता जताई और साथ ही कहा कि इस बार राज्य में पिछले विधानसभा और 2009 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले ज्यादा मतदान हुआ.

पहले दौर के चुनाव में 54 सीटों के लिए मतदान हुआ था जिसमें 70 प्रतिशत से भी अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. दूसरे चरण का मतदान 23 अप्रैल को हुआ था जिसमें 83 फ़ीसदी मतदान हुआ था.

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए तीसरा चरण का मतदान ख़त्म हो गया है. चुनाव आयोग के मुताबिक़ इस चरण में 78.3 फ़ीसदी मतदान हुआ है. इस दौर में कुल 479 उम्मीदवारों की किस्मत का फ़ैसला होगा जिसमें मुख्यमंत्री बु्द्धदेव भट्टाचार्य भी शामिल हैं. मतदान के लिए सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए थे. कुल 17792 मतदान केंद्र बनाए गए थे. जिन 75 सीटों पर चुनाव हुए हैं, उनमें से 11 कोलकाता, 33 उत्तरी 24 परगना और 31 दक्षिणी परगना में हैं. मुख्यमंत्री के अलावा वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता, आवास मंत्री गौतम देब, ट्रांसपोर्ट मंत्री रंजीत कुंडू, विपक्ष के नेता पार्था चटर्जी, फ़िक्की के महासचिव अमित मित्रा और फ़िल्म अभिनेत्री देबाश्री रॉय भी तीसरे दौर में प्रत्याशी हैं.

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों के लिए हुए मतदान के चौथे दौर में 84.8 प्रतिशत मतदान हुआ है. चौथे चरण का मतदान हुगली और पूर्वी मिदनापुर ज़िले में हुआ है, जबकि बर्दवान ज़िले के कुछ हिस्से में भी इस चरण का मतदान संपन्न हुआ. जिन क्षेत्रों में मतदान हुआ है, उनमें नंदीग्राम और सिंगुर भी शामिल हैं. इन दोनों शहरों ने पिछले कुछ समय में राज्य की राजनीति का चेहरा बदल दिया।

राज्य में सत्ताधारी वाम मोर्चे के लिए पांचवे चरण का मतदान खासतौर पर अहमियत रखता है. 2006 के विधानसभा चुनावों में 38 में से 35 सीटें वाम मोर्चा ने जीती थी. शेष तीन में से दो कॉंग्रेस और एक पर तृणमूल कॉंग्रेस किसी सफल हो पाए थे. 2006 में वाम मोर्चा की ज़बरदस्त जीत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे डाले गए कुल मतों में से क़रीब 92 फ़ीसदी मत मिले थे.अभूतपूर्व सुरक्षा के बीच पश्चिम बंगाल के चार जिलों की 38 सीटों के लिए मतदान शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया है. राजनीतिक हिंसा के ख़ूनी इतिहास वाले राज्य में चुनाव आयोग ने इस बार वेबकास्ट और हेलीकॉप्टरों के सहारे मतदान प्रक्रिया पर नज़र रखी. पांचवे चरण में 82.2 फ़ीसदी मतदान हुआ है.



'लिख लो वाम मोर्चा फिर जीतेगा

सोमवार, 9 मई, 2011


अविनाश दत्त


बीबीसी संवाददाता, कोलकाता से

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2011/05/110509_biman_iv_pp.shtml

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के कोलकाता दफ़्तर में सुबह से रात तीन-चार बजे तक बैठकें करने वाले राज्य इकाई के सचिव बिमान बसु दावे के साथ कहते हैं कि उन्हें आठवीं बार राज्य में वाम मोर्चा सरकार बनाने का पूरा भरोसा है.

बिमान बसु कहते हैं, "ये जो समाज शास्त्री चुनाव विश्लेषक 2009 के लोक सभा चुनावों के नतीजों को आधार बना कर कहते हैं कि वाम मोर्चा हार जाएगा. ये 13 मई को मतगणना के दिन चुप हो जाएँगें."

साल 2000 से पश्चिम बंगाल की कमान ज्योति बसु से लेने वाले बुद्धदेब भट्टाचार्य की जनता से अपने कार्यकर्ताओं की ग़लतियों के लिए बारंबार माफ़ी मांगने की बात पर पश्चिम बंगाल में पार्टी के मुखिया बसु कहते हैं कि हज़ारों ग़लत कार्यकर्ताओं को पार्टी से निकाल बाहर किया गया है.
उन्होंने कहा कि साल 2009 के चुनावी नतीजों से उन्होंने सबक लिया और भीतर बहस करके सुधार कार्यक्रम चलाए, जिनका अच्छा असर हुआ है.
आप उनसे पूछिए कि अगर सब कुछ उनके इच्छा के मुताबिक़ चल रहा है तो फिर उन्हें पार्टी से निकाल फेंके गए पूर्व लोक सभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी की प्रचार में मदद क्यों लेनी पड़ी.
इस पर उन्होंने कहा, "कुछ लोग बाहर रहते हुए पार्टी की मदद करना चाहते हैं वो करते हैं. कुछ भाषण भी दे देते हैं. सोमानाथ चटर्जी ने भी दो सीटों पर पार्टी के समर्थन में इसी तरह की सभाएं की."

विपक्ष की ममता

बसु से जब मैंने पूछा कि 34 साल बाद सत्ता से बहार हुए तो क्या पार्टी मुश्किल में नहीं पड़ जाएगी तो बसु ने सामने पड़ी काली चाय की चुस्की ली और चारों तरफ़ चलते पंखों की तेज़ हवा के बीच अपनी सिगरेट जलाई और बोले, "जो तेज़ हवा के बीच सिगरेट नहीं जला सकता वो स्मोकर नहीं है."
दोबारा पूछने पर बसु बोले प्रश्न बेमतलब है और आठवीं सरकार फिर उनकी बनेगी.
वर्षों पहले घर छोड़ कर पार्टी दफ़्तर में आ बसे बसु से जब ये पूछिए कि उनमे और सीपीएम के उन बहुसंख्यक कार्यकर्ताओं में क्या अंतर है जिन्होंने पैदा होते ही पार्टी की सत्ता देखी है, तो वो कहते हैं- जो ज़माने में फर्क आया है, समाज में आया है, वही कार्यकर्ता में आया है. मैं और बुद्धो बाबु धोती-कुर्ता पहनते हैं, हमारे पास बैंक अकाउंट नहीं है. लेकिन आजकल कार्यकर्ता नए तरह के कपड़ों में रहना चाहते हैं और ज़माने के साथ चलते हैं."
बिमान बसु बात करते-करते तेज़ी से हाथ उठा कर सामने की टेबल पर दौड़ रहे एक छोटे से कॉकरोच को मारने की कोशिश करते हैं और ममता बनर्जी के बारे में कहते हैं, "ममता कहती हैं कि माओवादी और मार्क्सिस्ट एक हैं. पिछले लोकसभा चुनावों के बाद से हमारे 400 कार्यकर्ता और नेता माओवादियों ने मार डाले. कितनों को उनके इलाक़ों से भगा दिया. ममता ने कभी माओवादियों के ख़िलाफ़ एक नारा तक नहीं दिया."
पार्टी के विरोध और आम लोगों के ग़ुस्से की बात करते हुए दोबारा टेबल पर भटक आए उस कॉकरोच को सफलता पूर्वक ठंडा करते हुए बसु कहते हैं, "तारीख़ समय नोट कर लीजिए मैं कहता हूँ कि आठवीं बार सरकार बनाएँगें."
लेकिन शायद 34 साल सत्ता में रहने के बाद चौतरफ़ा उपजे विरोध को दबाना सामने दौड़ रहे कीड़े को दबाने से बहुत ज़्यादा मुश्किल है

Sunday, 17 April 2011

तृणमूल पर आरोपों के साए में उत्तरबंगाल में मतदान


छह चरणों में पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव के पहले चरण का मतदान सोमवार यानी १८ अप्रैल को होने जा रहा है। इस चरण के माहौल की झलक के साथ अब हर चरण के मतदान से पहले हाजिर होता रहूंगा। चुनाव के लिहाज से पश्चिम बंगाल की फिजा अलग ही होती है। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की वाममोर्चा को सत्ता से बेदखल की मुहिम ने माहौल को और गरमा दिया है। १९७७ से लगातार तीन दशक से अधिक समय से पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज कम्युनिष्ट सरकार की नींव पिछले पंचायत , लोकसभा और कोलकाता नगर निगम व नगरपालिका चुनावों में हिल चुकी है। अब विधानसभा चुनावों पर भारत समेत पूरी दुनिया की नजर है। कौतूहल भरी इस दिलचस्प लड़ाई का बिगुल बज चुका है। मैं भी अपने ब्लाग के माध्यम से आपको इस जंग से रूबरू कराना चाहता हूं। निरपेक्ष भाव से इस महाभारत की कथा सुनाऊंगा। रखिए मेरे ब्लाग के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव-२०११ धारावाहिक की हर कड़ी पर नजर।
ब्लाग नियंत्रक - डा.मान्धाता सिंह
  कई घटनाक्रमों के साए में सोमवार १८ अप्रैल को पश्चिम बंगाल के उत्तरबंगाल में वोट पड़ेंगे। मतदान से ठीक एक दिन पहले तृणमूल नेता व जहाजरानी मंत्री मुकुलराय का बेटा शुभ्रांशु राय को चुनाव अधिकारियों पर हमला करने के आरोप में नैहाटी इलाके से ममता की चुनावी सभा होने के बाद सभास्थल से गिरफ्तार कर लिया गया। शुभ्रांशु बीजपुर से तृणमूल का उम्मीदवार भी है। इस बड़ी घटना के अलावा दमदम सीट से वाममोर्चा उम्मीदवार व राज्य के आवास मंत्री गौतम ने ममता पर उम्मीदवारों के बीच ३४ करोड़ से अधिक कालाधन बांटने का आरोप लगाया है। जब मुकुल राय ने इसे गलत बताते हुए मानहानि का दावा करने की बात कही तो गौतम देव ने चुनौती दी कि हिम्मत हो तो ममता मानहानि का दावा करें। गौतम ने इस आरोप के पुख्ता सबूत होने का दावा किया। इन दोनों घटनाओं ने उत्तरबंगाल में मतदान से ठीक एक दिन पहले वाममोर्चा में जहां उत्साह भर दिया है वहीं तृणमूल को पशोपेश में डाल दिया है। उत्तरपबंगाल वैसे तो कांग्रोस का गढ़ है मगर विधानसभा चुनावों में वहां वाममोर्चा ही भारी पड़ता रहा है। मालदा इलाके में तो गनीखान परिवार में मतभेद काग्रेस का खासा नुकसान कर चुका है। उत्तरबंगाल में काग्रेस व तृणमूल गठबंधन उम्मीदवार के साथ इनके विद्रोही भी नुकसान पहुंचाने को तैयार खड़े हैं। ऐसे में इन दो बड़ी घटनाओं ने और असमंजस पैदा कर दिया है। क्या सचमुच इन आरोपों से तृणमूल व कांग्रेस के मतदाता दिग्भ्रमित होंगे ? यह तो मतदाता ही जाने मगर परिवरिवर्तन की जो लहर बंगाल में है उसे इस तरह की घटनाएं शायद ही रोक पाएं। कल के मतदान को तो फिलहाल यह प्रभावित करने वाला नहीं दिखता मगर मुद्दा इसी तरह गरम रहा तो कोलकाता और उत्तर २४ परगना के मतदान पर शायद कुछ असर दिखा पाए।
   पर्वतीय उत्तरी इलाके दार्जीलिंग से लेकर मालदा जिले तक चुनाव प्रचार अभियान के दौरान राजनीति के बड़े दिग्गजों जैसे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पार्टी महासचिव राहुल गांधी, केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, नितिन गडकरी और अरुण जेटली ने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार किया। वाम मोर्चा के अध्यक्ष एवं मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्य सचिव बिमान बोस, माकपा पॉलित ब्यूरो सदस्य सीताराम येचुरी तथा तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने छह जिलों में चुनाव प्रचार कर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया।

10 मंत्रियों के भाग्य का फैसला
पश्चिम बंगाल के छह जिलों के 54 विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले प्रथम चरण के चुनाव में 97.42 लाख मतदाता अपना वोट देंगे। यहां पर मुख्य लड़ाई माकपा की अगुवाई में वाम मोर्चा और तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन के बीच है। प्रथम चरण के इस चुनाव से राज्य के 10 मंत्रियों के भाग्य का फैसला तय होगा। पहले चरण के मतदान में माकपा के 32, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के दो, फॉरवार्ड ब्लॉक के 10, रिवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी (आरएसपी) के नौ, सोशलिस्ट पार्टी के एक, तृणमूल कांग्रेस के 26, कांग्रेस के 27, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के एक तथा भाजपा के 49 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होना है।

    इन 54 सीटों पर कुल 364 उम्मीदवार भाग्य आजमा रहे हैं। शांतिपूर्ण, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चत करने के लिए सुरक्षा के कड़े प्रावधान किए गए हैं। राज्य के जिन जिलों में चुनाव होना है उनमें-कूच बिहार, जलपाईगुड़ी, दार्जीलिंग, उत्तरी दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर और मालदा शामिल है। इसके लिए 12,133 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। मुख्य निर्वाचन अधिकारी सुनील कुमार गुप्ता ने बताया कि सुरक्षा बल विभिन्न इलाकों में पहुंच चुके हैं। राज्यों और अंतरराष्ट्रीय सीमा को सील कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि दार्जीलिंग और कलिमपोंग के सुदूरवर्ती इलाकों के लिए मतदानकर्मी शनिवार को ही रवाना हो गए थे।

सत्ता में लंबे समय तक बना रहना ही सबसे बड़ी कमज़ोरी

सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी के लिए सत्ता में एक लंबे समय तक बना रहना ही उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी कही जा रही है। पश्चिम बंगाल में 21 जून, 1977 को लेफ़्ट फ्रंट ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ली थी और सत्ता में लगतार बने रहते हुए इसे 34 साल पूरे होने को आ गए हैं। इस उपलब्धि के साथ ही पश्चिम बंगाल में लेफ़्ट फ्रंट की सरकार ने लोकतांत्रिक तरीक़े से सत्ता में बनी रहने वाली सबसे लम्बी कम्युनिस्ट सरकार का रिकार्ड भी बनाया है। लेकिन आगामी चुनावों में इसी बात को इस पार्टी की सबसे बड़ी कमज़ोरी भी बताया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानी जाए तो पूरे राज्य में एक सत्ता विरोधी लहर दौड़ रही जो सत्ताधारी सीपीआई-एम की गले की फाँस बन गई है। हालांकि मार्क्सवादी नेताओं ने 2009 के लोक सभा चुनावों में मिले करारे झटके के बाद इस लहर का रुख़ मोड़ने की कोशिश की है पर इसे 'देर से जागने वाला' क़दम बताया जा रहा है।

सत्ताधारी पार्टी के समक्ष मुस्लिम मतदाताओं को अपने ख़ेमे में बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन कर उभरा है।

पिछले चुनावी नतीजों और अल्पसंख्यक बहुल इलाक़ों का आंकलन करने के बाद पता चलता है कि कुल 294 सीटों में से 75 से 77 सीटें ऐसी हैं जहां उन्हीं की जीत की संभावना हैं जिन्हें मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिलेगा। इन चुनावों में ऐसा भी कहा जा रहा है कि एक लंबे समय तक लेफ़्ट का समर्थन करते रहने के बाद अब ज़्यादातर मुस्लिम मतदाताओं ने अपना समर्थन बंद कर दिया है।

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