Friday, 21 December 2007

त्यौहारों का संविधान - मजहब बैर नहीं सिखाता

कल ईद पर मुसलमान भाईयों से गायों की बलि न देने की देवबंद की शीर्ष मुसलिम संस्था की अपील सांप्रदायिक भाईचारे की राह में अच्छी कोशिश मानी जानी चाहिए। सच में त्यौहार भाईचारे बढाने के बेमिशाल माध्यम हैं मगर सियासी चालों ने त्यौहारों की चमक को फीका कर दिया है। हममें से कोई नहीं चाहता कि किसी मजहब से हमारी कोई अनबन हो। पर क्यों हो जाता है ऐसा कि हम एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं। कहीं गोधरा हो जाता है तो कहीं इससे भी भयानक दंगे। कोई रहनुमा मोदी पैदा हो जाता है तो कोई दूसरी कौम का नायक। इनहें मिलते हैं सियासी फायदे मगर आमलोगों का सुखचैन छिन जाता है। कोई मजहब बैर नहीं सिखाता, यह हम आप सभी जानते हैं फिर क्यों किसी के बहकावे में आ जाते हैंलोग। फिर भी हमारी ये दूरियां जिस भी वजह से आईँ हों इनहें मिटा सकते हैं हमारे त्योहार। क्यों कि त्योहार कभी सांप्रदायिक नहीं होते। आपसी मेलजोल के सिद्धांत पर बने हैं सभी त्योहार। इनका यही संविधान है। और त्योहारों के संविधान को मानें तो मिट सकती हैं दुरियां और फासले। मैंने त्यौहारों के इसी संविधान की पड़ताल की है। यह लेख यूनिनागरी में नहीं है इसलिए इसे पीडीएफ फार्म में दे रहा हूं। लेख पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

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