Saturday, 1 December 2007
तब तो बांग्लादेश भी लौट सकती हैं तस्लीमा !
बांग्लादेश की विवादास्पद लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भी आखिर कट्टरपंथी ताकतों के आगे हथियार डाल दिए। लेखकीय अभिव्यक्ति का गला घोटकर समझौता किया और बदले में खुद के लिए अमन मांग लिया। आखिर ऐसा करना क्यों न पड़े जब कट्टरपंथियों के आगे पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ही घबरा गई। बाकायदा कहना पड़ा कि तस्लीमा यहां से चली जाएं। राजनीति व सत्ता के नफा नुकसान के आगे सभी को झुकना पड़ा। सबसे पहले उस लेखिका के बयान को देखा जाए जिसे उसने तब जारी नहीं किया जब उसे जान का सबसे बड़ा खतरा था। यानी १९९३ का वह दिन जब लज्जा छपी थी और बांग्लादेश में कट्टरपंथियों ने उनके खिलाफ मौत का फतवा जारी किया था। तसलीमा भागकर भारत आईँ और दृढ़ता के साथ कट्टरवादियों का मुकाबला किया जिसके एवज में उन्हें भारत भी छोड़ना पड़ा। मगर तब उन्हें ऐसा कुछ नहीं लगा कि अपने उपन्यासों में उन्होंने जो कुछ लिखा है उससे किसी की धार्मिक भावना को या व्यक्तिगत तौर पर चोट पहुंचाई है। तब और अब में फर्क सिर्फ इतना है कि अब उनको संरक्षण दे रही केंद्र व बंगाल की वाममोर्चा सरकारें भी उन कट्टरपंथियों के आगे झुक गईं हैं जिन पर उनकी रक्षा की जिम्मेदारी है। शायद इसी भयादोहन का नतीजा है कि तस्लीमा ने भी हथियार डाल दिए हैं। जबकि इसी वाममोर्चा की बुद्धदेव सरकार ने पश्चिम बंगाल की एक अदालत ने गुरुवार, 22 सितंबर, 2005 को बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन की आत्मकथा 'द्विखंडिता' पर लगा प्रतिबंध हटा दिया .राज्य सरकार ने इस आत्मकथा पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया था कि इससे अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय की भावनाएँ आहत होती हैं. तस्लीमा नसरीन ने अदालत के इस फ़ैसले पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा, "यह सिर्फ़ मेरी जीत नहीं है बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जीत है."तस्लीमा नसरीन ने कहा कि उन्हें विश्वास हो गया है कि "भारत में क़ानून का राज है."
आइए पहले तस्लीमा के अपने ही सिद्धांतों से पीछे हटने की कहानी उनके ही लब्जों में देखें जिसे किसी गुप्त स्थान से जारी किया है। प्रेस को जारी बयान इस प्रकार है-------
कोलकाता, Nov 30 2007। जगह-जगह भटकने के बाद बांग्लादेश की विवादास्पद लेखिका तसलीमा नसरीन ने अपनी आत्मकथा द्विखंडितो के विवादास्पद हिस्से को वापस लेने की घोषणा की। इस पुस्तक के कुछ अंशों को लेकर विवाद के बाद हिंसा फैल गई थी और उन्हें भारत से निकाले जाने की मांग भी होने लगी थी।
उन्होंने अज्ञात स्थान से फोन पर बताया कि मैं बांग्लादेश में वर्ष 1980 के दौरान सेना द्वारा धर्म-निरपेक्षता को तिलांजलि दिए जाने से जुड़ी स्मृति के आधार पर वर्ष 2002 में लिखी गई आत्मकथा द्विखंडितो की कुछ विवादास्पद पंक्तियों को वापस ले रही हूं। उन्होंने बताया कि यह पुस्तक मैंने उन लोगों के समर्थन में लिखी थी जिन्होंने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं था।
तसलीमा ने कहा कि अब अगर भारत में कोई भी व्यक्ति यह दावा करता है कि इससे उनकी भावना आहत हुई हैं तो मैं उन पंक्तियों को वापस लेती हूं। गौरतलब है कि उनकी यह घोषणा संसद में विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी के आश्वासन के बाद आई थी, जिसमें उन्हें भारत में आश्रय देने की बात कही गई थी और तसलीमा से ऐसी टिप्पणियों से बचने को कहा गया था जिससे किसी की भावनाएं आहत होती हों। बांग्लादेशी लेखिका ने उम्मीद जाहिर की कि अब इस विषय पर कोई विवाद नहीं होगा और मैं भारत में शांतिपूर्वक रह सकूंगी। तसलीमा ने कहा कि उन्होंने इस पुस्तक के प्रकाशक पीपुल्स बुक सोसाइटी से उनके पास मौजूद प्रति को जारी नहीं करने को कहा है। उन्होंने कहा कि मैंने प्रकाशक से पुस्तक का नया संस्करण जारी करने को कहा है जिसमें वह विवादास्पद पंक्तियां न हों। उन्होंने कहा कि हम जारी की गई 30 से 40 कापियों को वापस ले लेंगे और नए संस्करण में पुस्तक के विवादस्पद तीन पन्ने नहीं होंगे।
'तीन पन्ने हटाकर बांग्लादेश'
जाने-माने पेंटर शिवप्रसन्ना ने कहा कि तस्लीमा ने समझौता किया है.उनका कहना था, "ये एक समझौता है और शरण लेने के बदले में उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया है. लेकिन यदि दो पन्ने हटाकर वे भारत में शरण ले सकती हैं तो वे तीन पन्ने हटाकर बांग्लादेश भी जा सकती हैं."तस्लीमा नसरीन के विरोध के बाद 1990 के दशक में उन्हें बांग्लदेश से यूरोप निर्वासित होना पड़ा था और वे पिछले तीन साल से कोलकाता में थीं. उन्हें भारत में मार्च 2008 तक रहने का वीज़ा दिया गया है.पश्चिम बंगाल के प्रमुख लेखकों ने इसका स्वागत किया है.लेखक अबुल बशर का कहना था, "ये उचित समय पर उठाया गया सही कदम है. ये कट्टरपंथियों के सामने हथियार डालने जैसा नहीं बल्कि स्थिति से निपटने के लिए एक समझौता है क्योंकि समाज के हर वर्ग के मुसलमान नाराज़ हैं."
कुछ मुस्लिम संगठन 2003 में लिखी उनकी आत्मकथा 'द्बिखंडितो' की कुछ पंक्तियों को इस्लाम के ख़िलाफ़ बताया है.पश्चिम बंगाल में इस किताब पर प्रतिबंध लगाया गया था. वहाँ मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या लगभग 25 प्रतिशत है.हाल में तस्लीमा नसरीन की वीज़ा अवधि बढ़ाए जाने के विरोध में कोलकाता में हिंसा भड़क उठी थी जिसमें 43 लोग घायल हुए थे.इसके बाद उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्हें पहले जयपुर और फिर दिल्ली में एक अज्ञात स्थान पर रखा गया है.भारत सरकार ने कहा है कि वह उन्हें शरण देने और उनकी सुरक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है.
डॉक्टर से लेखिका बनीं नसरीन 1993 में अपनी पहली और सबसे विवादास्पद पुस्तक 'लज्जा' के कारण सुर्खियों में आईं थीं. इसके बाद 1999 में प्रकाशित उनकी किताब 'माई गर्लहुड' पर भी बांग्लादेश में ईशनिंदा के कारण प्रतिबंध लगाया गया. मंगलवार, 27 अगस्त, 2002 को पुलिस को आदेश दिए गए हैं कि उपन्यास 'वाइल्ड विंड' की प्रतियाँ ज़ब्त कर ली जाएँ. बांग्लादेश के गृह मंत्रालय के आदेश के अनुसार इस पुस्तक को छापना, बेचना और इसका वितरण गैरकानूनी है. पिछले एक दशक में यह तस्लीमा नसरीन की तीसरी पुस्तक है जिस पर प्रतिबंध लगा है. 'लज्जा' प्रकाशित होने के कुछ ही देर बाद तस्लीमा नसरीन को अपना देश छोड़ भागना पड़ा था
उन्हें यह इसलिए करना पड़ा क्योंकि इस्लामी कट्टरपंथियों ने उन्हें मारने पर इनाम देने की घोषणा की थी. उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने एक समाचारपत्र को दिए एक साक्षात्कार में कुरान शरीफ़ में परिवर्तन कर महिलाओं को अधिक अधिकार देने की बात कही थी. लेकिन नसरीन कहती हैं कि उन्होंने कभी कोई ऐसी बात या टिप्पणी नहीं की. देश के बाहर उन्होंने अधिकतर समय स्वीडन और फ़्रांस में गुज़ारा है.
अंतरंग संबंधों का ज़िक्र
चार सौ से ज़्यादा पन्नों की इस किताब में लेखिका के ढाका और कोलकाता के कई जाने-माने लेखकों के साथ अंतरंग संबंधों का लेखाजोखा है.पुस्तक विक्रेताओं का कहना है कि एक अख़बार में इसके श्रंखलाबद्ध होने के बाद इस किताब की भारी बिक्री हो रही थी.लेकिन इस आत्मकथा ने साहित्यिक हलक़ों में बवाल मचा दिया जब कई लेखकों ने तस्लीमा पर चरित्र-हनन का आरोप लगाया. मशहूर लेखक सैयद शम्सुल हक़ ने किताब में अपना नाम देखने के बाद मानहानि का मामला दायर कर दिया. उनकी शिकायत थी कि पुस्तक में लेखिका ने उन पर कुछ ऐसे आरोप लगाए हैं जिनको क़ानूनी कारणों से दोहराया नहीं जा सकता. अपनी याचिका में उन्होंने लेखिका के बयानों को झूठ का पुलंदा और मनगढ़ंत कहा.वह लेखिका और उनके प्रकाशक से मुआवज़े के तौर पर दस करोड़ रुपये की मांग कर रहे हैं और इस किताब पर प्रतिबंध चाहते हैं.
बीबीसी हिंदी सेवा की विशिष्ट लोगों से इस मुद्दे पर बातचीत भी अवलोकनीय है। कृपया इसे यहां जाकर पढ़ें---
http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2007/11/071124_taslima_vivechna.shtml
इसके अलावा हिंदी पत्रकार पलाश विश्वाश से तस्लीमा के मामले में बंगाल सरकार की भुमिका पर लंबी बातचीत भिन्नमत डाट काम बांग्ला पोर्टलपर जारी हुआ है। यह आडियो भी है। इसे यहां देखें---------
Mr Biswas, a distinguished journalist ( He writes in Hindi and well known all over the India) gave me an interview just now from Calcutta--as a journalist he walked through the lanes of violence on that horrible day and came to conclusion there was no riot but a planned violence hatched by CPM to divert attention from Nandigram and Taslima was made a pawn to recapture minority votebank.
www.vinnomot.com
For people in South Asia, listen to this link for better audio experience
http://is.rediff.com/filemusic.php?id=72793
Biplab
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कहां गयी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता?
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