आज का आधुनिक बंगाल और कोलकाता किसी जमाने की सामंती पहचान को काफी पीछे छोड़ चुका है। लगभग ३५ साल के कम्युनिस्ट शासन ने पूरे बंगाल समेत कोलकाता को एक अलग पहचान दिलाई है। लंबे कार्यकाल तक पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री रह चुके कामरेड ज्योति बसु और मशहूर फिल्म निर्देशक सत्यजित राय भी आधुनिक बंगाल की शान व पहचान में शुमार हैं। वैसे तो सातवीं शताब्दी के आसपास पालवंश और बाद में सेनबंश के हिंदू शासकों ने जो भी सास्कृतिक पहचान बंग क्षेत्र को दिलाई उसी शासन क्षेत्र का पहले मुगलों ने और बाद में अंग्रेजों ने विस्तार किया। आधुनिक पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के विष्णुपुर में प्राचीन कालीन हिंदू राजाओं खासतौर पर बल्लाल ने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया। आठचाल और चारचाल शैली के इन मंदिरों में लक्ष्मीविलास मंदिर व अन्य मंदिरों के समूह बंगाल के हिंदू राजाओं के बेमिसाल स्मारक हैं। इसी कोटि में बर्दवान के आसपास के स्मारक और नदिया जिले में ध्वंश के कगार पर पहुंच रहा चैतन्य महाप्रभु का मंदिर भी आता है। चैतन्य के बारे में यह बताने की जरूरत नहीं भक्ति आंदोलन के उस युग में ऐसे समाजसुधारक की भुमिका निभाई जिसके कारण उन्हें महाप्रभु कहा जाने लगा। इन हिंदू राजाओं के पतन के बाद मुस्लिम शासन के तहत शासन व संस्कृति का मुख्य केंद्र मुर्शिदाबाद व ढाका हो गया। आधुनिक बंगाल का प्रादुर्भाव ठीक तरह से डच, पुर्तगालियों व फ्रांसीसियों के हुगली के चंदननगर में उपनिवेश स्थापित करने और बाद में इन्हीं उपनिवेशों पर ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिपत्य के साथ शुरू होती है कोलकाता की कहानी। व्यापार का प्रमुख केंद्र बनकर कोलकाता इतिहास के पन्नों में ऐसे शहर के रूप में दर्ज है जहां आज भी बहस जारी है कि कोलकाता को किसने बसाया। जाब चार्नाक की कहानी पर भी सवाल उठ गया है। इसी सवाल पर यहां एक आलेख भी दे रहा हूं। बेदखल हुए जाब चार्नाक। यह पीडीएफ फार्म में है। इसे क्लिक करके पढ़ सकते हैं। साथ में अलग से सिर्फ संदर्भ के लिए कोलकाता का संक्षिप्त इतिहास भी अवलोकनीय है।
बंगाल का इतिहास
बंगाल पर इस्लामी शासन १३ विं शताब्दी से प्रारंभ हुआ तथा १६ विं शताब्दी में मुग़ल शासन में व्यापार तथा उद्योग का एक समृद्ध केन्द्र में विकसित हुआ। १५ विं शताब्दी के अन्त तक यहा यूरोपीय व्यापारियों का आगमन हो चुका था तथा १८ विं शताब्दी के अन्त तक यह क्षेत्र ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नियन्त्रण में आ गया था। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का उद्गम यहीं से हुआ। १९४७ में भारत स्वतंत्र हुआ और इस्के साथ ही बंगाल मुस्लिम पूर्व बंगाल (जो बाद में बांग्लादेश बना) तथा हिंदू पश्चिम बंगाल में विभाजित हुआ। पश्चिम बंगाल भारत के उत्तर पूर्व मे स्थित एक राज्य है । इसके पड़ोसी राज्य नेपाल,सिक्किम,भूटान असम, बांग्लादेश, उड़ीसा, झारखंडऔर बिहार हैं। कोलकाता पश्चिम बंगाल की राजधानी है। जिसे पूर्वोत्तर राज्यों का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।
कोलकाता शहर का इतिहास
बंगाल के इतिहास से भी दिलचस्प है कोलकाता का इतिहास। 300 वर्ष से भी अधिक पुराना शहर। कवि और साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता रविन्द्रनाथ टैगौर, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, जगदीश चन्द्र बोस और महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस की जन्मभूमि। एक ऐसा शहर जहां एशिया का अपने प्रकार का एक अनोखा 467 मीटर लंबा हावड़ा ब्रिज स्थित है। शानदार स्मारकों, दर्शनीय संग्रहालयों, भव्य मेंशनों और दोस्ताना लोगों का शहर कोलकाता।
भारत के सबसे बड़े शहर और प.बंगाल की राजधानी, कोलकाता ब्रिटिश शासनकाल में भारत की राजधानी रहा, 1911 में वे राजधानी को दिल्ली ले आए। पौराणिक कथा है कि कोलकाता का नाम तब पड़ा था जब सती ने अपने पिता द्वारा अपने पति भगवान शिव के अपमान के बाद आत्म-सम्मान के कारण खुद को स्वाहा कर लिया था। भगवान शिव को पहुंचने में देर हो गई, तब तक सती का शरीर जल चुका था। उन्होंने सती का जला हुआ शरीर उठाकर तांडव नृत्य आरंभ कर दिया। अन्य देवतागण नृत्य को रोकना चाहते थे, उन्होंने भगवान विष्णु से उन्हें मनाने को कहा। भगवान विष्णु ने सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए, इस पर शिव ने अपना नृत्य रोक दिया। कहा जाता है कि सती का अंगूठा कोलकाता के दक्षिणी भाग में काली घाट में गिरा था। इस प्रकार, इस शहर को कालीकाता कहा गया जो आगे चलकर कोलकाता हो गया।
आधिकारिक रूप से इस शहर का नाम कोलकाता 1 जनवरी, 2001 को रखा गया। इसका पूर्व नाम अंग्रेजी में भले ही "कैलकटा' हो लेकिन बंगाल और बांग्ला में इसे हमेशा से कोलकाता या कोलिकाता के नाम से ही जाना जाता रहा है। सम्राट अकबर के चुंगी दस्तावेजों और पद्रहवीं सदी के बांग्ला कवि विप्रदास की कविताओं में इस नाम का बार बार उल्लेख मिलता है। लेकिन फिर भी नाम की उत्पत्ति के बारे में कई तरह की कहानी मशहूर है। इस शहर के अस्तित्व का उल्लेख व्यापारिक बंदरगाह के रूप में चीन के प्राचीन यात्रियों के यात्रा वृतांत और फारसी व्यापारियों के दस्तावेजों में भी उल्लेख है। महाभारत में भी बंगाल के कुछ राजाओं का नाम है जो कौरव सेना की तरफ से युद्ध में शामिल हुये थे। नाम की कहानी और विवाद चाहे जो भी हों इतना तो अवश्य तय है कि यह आधुनिक भारत के शहर में सबसे पहले बसने वाले शहरों में से एक है। इस शहर का इतिहास उतार-चढाव वाला रहा है। सबसे पहले यहाँ 1690 में इस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी "जाब चारनाक" ने अपने कंपनी के व्यापारियों के लिये एक बस्ती बसाई थी। 1698में इस्ट इंडिया कंपनी ने एक स्थानीय जमींदार से तीन गाँव (सूतानीति, कोलिकाता और गोबिंदपुर) खरीदा। अगले साल कंपनी ने इन तीन गाँवों का विकास प्रेसिडेंसी सिटीके रूप में करना शुरू किया। 1727 में इंग्लैंड के राजा जार्ज द्वतीय के आदेशानुसार यहाँ एक नागरिक न्यायालय की स्थापना की गयी। कोलकाता नगर निगम की स्थाप्ना की गयी और पहले मेयर का चुनाव हुआ। 1756 में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने कोलिकाता पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। उसने इसका नाम "अलीनगर" रखा। लेकिन साल भर के अंदर ही सिराजुद्दौला की पकड़ यहाँ ढीली पड़ गयी और अंग्रेजों का इसपर पुन: अधिकार हो गया। 1772 में कोलकाता वारेन हेस्टिंग्स ने इसे ब्रिटिश शासकों की भारतीय राजधानी बना दी। कुछ इतिहासकार इस शहर की एक बड़े शहर के रूप में स्थापना की शुरुआत 1698 में फोर्ट विलियम की स्थापना से जोड़कर देखते हैं। 1858 से 1912तक कोलकाता भारत में अंग्रेजो की राजधानी बनी रही।
स्वाधीनता आंदोलन में भूमिका
ऐतिहासिक रूप से कोलकाता भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के हर चरण में केन्द्रीय भूमिका में रहा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ साथ कई राजनैतिक एवं सांस्कृतिक संस्थानों जैसे "हिन्दू मेला" और क्रांतिकारी संगठन "युगांतर" , "अनुशीलन" इत्यादी की स्थापना का गौरव इस शहर को हासिल है। प्रांरभिक राष्ट्रवादी व्यक्तित्वों में अरविंद घोष, इंदिरा देवी चौधरानी, विपिनचंद्र पाल का नाम प्रमुख है। आरंभिक राष्ट्रवादियों के प्रेरणा के केन्द्र बिन्दू बने रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बने व्योमेश चंद्र बैनर्जी और स्वराज की वक़ालत करने वाले पहले व्यक्ति सुरेन्द्रनाथ बनर्जी भी कोलकाता से ही थे। 19 वी सदी के उत्तरार्द्ध और 20 वीं शताब्दी के प्रांभ में बांग्ला साहित्यकार बंकिमचंद्र चटर्जी ने बंगाली राष्ट्रवादियों को बहुत प्रभावित किया। इन्हीं का लिखा आनंदमठ में लिखा गीत वन्दे मातरम आज भारत का राष्ट्र गीत है। सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन कर अंग्रेजो को काफी साँसत में रखा। इसके अलावा रविन्द्रनाथ टैगोर से लेकर सैकड़ों स्वाधीनता के सिपाही विभिन्न रूपों में इस शहर में मौजूद रहे हैं।
1757 के बाद से इस शहर पर पूरी तरह अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया और 1850 के बाद से इस शहर का तेजी से औद्योगिक विकास होना शुरु हुआ खासकर कपड़ों के उद्योग का विकास नाटकीय रूप से यहाँ बढा हलाकि इस विकास का असर शहर को छोड़कर आसपास के इलाकों में कहीं परिलक्षित नहीं हुआ। 5 अक्टूबर 1864 को समुद्री तूफान (जिसमे साठ हजार से ज्यादा लोग मारे गये) की वजह से कोलकाता में बुरी तरह तबाही होने के बावजूद कोलकाता अधिकांशत: अनियोजित रूप से अगले डेढ सौ सालों में बढता रहा और आज इसकी आबादी लगभग 14 मिलियन है। कोलकाता 1980से पहले भारत की सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर था, लेकिन इसके बाद मुंबई ने इसकी जगह ली। भारत की आज़ादी के समय 1947 में और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद "पूर्वी बंगाल" (अब बांग्लादेश ) से यहाँ शरणार्थियों की बाढ आ गयी जिसने इस शहर की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह झकझोरा।
पुनर्जागरण और कोलकाता
ब्रिटिश शासन के दौरान जब कोलकाता एकीकृत भारत की राजधानी थी, कोलकाता को लंदन के बाद ब्रिटिश साम्र्याज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर माना जाता था। इस शहर की पहचान महलों का शहर, पूरब का मोती इत्यादि के रूप में थी। इसी दौरान बंगाल और खासकर कोलकाता में बाबू संस्कृति का विकास हुआ जो ब्रिटिश उदारवाद और बंगाली समाज के आंतरिक उथल पुथल का नतीजा थी जिसमे बंगाली जमींदारी प्रथा हिंदू धर्म के सामाजिक, राजनैतिक, और नैतिक मूल्यों में उठापटक चल रही थी। यह इन्हीं द्वंदों का नतीजा था कि अंग्रेजों के आधुनिक शैक्षणिक संस्थानों में पढे कुछ लोगों ने बंगाल के समाज में सुधारवादी बहस को जन्म दिया। मूल रूप से "बाबू" उन लोगों को कहा जाता था जो पश्चिमी ढंग की शिक्षा पाकर भारतीय मूल्यों को हिकारत की दृष्टि से देखते थे और खुद को ज्यादा से ज्याद पश्चिमी रंग ढंग में ढालने की कोशिश करते थे। लेकिन लाख कोशिशों के बावज़ूद जब अंग्रेजों के बीच जब उनकी अस्वीकारय्ता बनी रही तो बाद में इसके सकारत्म परिणाम भी आये, इसी वर्ग के कुछ लोगो ने नयी बहसों की शुरुआत की जो बंगाल के पुन्रजागरण के नाम से जाना जाता है। इसके तहत बंगाल में सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक सुधार के बहुत से अभिनव प्रयास हुये और बांग्ला साहित्य ने नयी ऊँचाइयों को छुआ जिसको बहुत तेजी से अन्य भारतीय समुदायों ने भी अपनाया।
आधुनिक कोलकाता
कोलकाता भारत की आजादी और उसके कुछ समय बाद तक एक समृद्ध शहर के रूप में स्थापित रहा लेकिन बाद के वर्षों में जनसँख्या के दवाब और मूलभूत सुविधाओं के आभाव में इस शहर की सेहत बिगड़ने लगी। 1960 और 1970 के दशकों में नक्सलवाद का एक सशक्त आंदोलन यहाँ उठ खड़ा हुआ जो बाद में देश के दूसरे क्षेत्रों में भी फैल गया। 1977 के बाद से यह वामपंथी आंदोलन के गढ के रूप में स्थापित हुआ और तब से इस राज्य में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी का बोलबाला है और वर्तमान मुख्यमंत्री हैं बुद्धदेव भट्टाचार्य।
नक्सलवाद
आधुनिक बंगाल का जिक्र नक्सली आंदोलन के जिक्र के बिना अधूरा माना जाएगा। नक्सलवाद कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के उस आंदोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ। नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुआ है जहाँ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 मे सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की थी। मजुमदार चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसकों में से थे और उनका मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ जिम्मेवार हैं जिसकी वजह से उच्च वर्गों का शासन तंत्र और परिणामस्वरुप कृषितंत्र पर दबदबा हो गया है; और यह सिर्फ़ सशस्त्र क्रांति से ही ख्त्म किया जा सकता है। 1967 में "नक्सलवादियों" ने कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों की एक अखिल भारतीय समन्वय समिति बनाई और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से अलग हो गये और सरकार के खिलाफ़ भूमिगत होकर सशस्त्र लड़ाई छेड़ दी। 1971 में एक आंतरिक विद्रोह जिसके अगुआ सत्यनारायण सिंह थे। मजुमदार की मृत्यु के बाद इस आंदोलन की बहुत सी शाखाएँ हो गयीं और आपस में प्रतिद्वंदिता भी करने लगीं। आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनीतिक पार्टियाँ बन गयी हैं और संसदीय चुनावों में भाग भी लेती है। लेकिन बहुत से संगठन अब भी छद्म लड़ाई में मशगूल हैं। नक्सलवाद की सबसे बड़ी मार आँधर प्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, झारखंड, और बिहार को झेलनी पड़ रही है।
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