Friday 7 December 2007
कामरेड बुद्धदेव का अब राम से युद्ध !
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि और लालू प्रसाद यादव के बाद अब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाकर राम के अस्तित्व और रामसेतु विवाद को हवा देने की कोशिश की है। नंदीग्राम मुद्दे पर संकट का सामना कर रहे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने भगवान राम के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। बुद्धदेव ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की 15वीं बरसी पर गुरुवार को एक बैठक के दौरान कहा कि राम केवल साहित्यकारों के दिमाग की उपज हैं और रामसेतु समुद्र में बनी एक प्राकृतिक संरचना है। उन्होंने कहा कि संघ परिवार द्वारा सेतु समुद्रम परियोजना का विरोध महज धार्मिक आधार पर किया जा रहा है, लेकिन क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए यह परियोजना महत्वपूर्ण है।
बुद्धदेव के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा के पश्चिम बंगाल इकाई के महासचिव राहुल सिन्हा ने शुक्रवार को कहा कि उनका यह बयान नंदीग्राम घटना के बाद मुस्लिम वोट बैंक को संतुष्ट करने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि भगवान राम आस्था के प्रतीक हैं और कम्युनिस्ट हमेशा से ईश्वर का विरोध करते रहे हैं।
गौरतलब है कि इससे पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने भी भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाया था। करुणानिधि के बयान पर हिंदूवादी संगठनों ने सख्त ऐतराज जताया था। करुणानिधि ने अपने बयान में राम को पियक्कड़ भी कहा था।
अब नंदीग्राम में राजनीतिक युद्ध् जीत चुके कामरेड शूरमा व पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव से कोई यह सवाल पूछे कि क्या वे साक्ष्यों तथ्यों को वे नहीं मानते। क्या भारतवर्ष का पूरा इतिहास जो साक्ष्यों तथ्यों के विश्लेषण पर आधारित है, वह भी आपको झूठा लगता है। अगर मनुष्य ही थे राम और किसी कौम के महापुरुष व पूज्य हो गए तो उनसे आपको क्यों डर लगने लगा है। अगर आप प्रगतिशील कामरेड ही हैं तो क्या ऐसी ही टिप्पणी किसी और मजहब के पूज्य के खिलाफ कर सकते हैं। अगर यह बहादुरी और प्रगतिशीलता दिखानी ही थी तो फिर तस्लीमा को बंगाल से भगाकर केंद्र और कांग्रेस के माथे क्यों मढ़ दिया। जवाब भी स्पष्ट है कि वोट की खातिर ऐसा करना पड़ रहा है।
नंदीग्राम में माकपा कैडरों ने किया उससे पश्चिम बंगाल समेत देश भर के मुसलमान धर्मनिरपेक्ष माकपा के इस तांडव से आहत और बेहद नाराज हैं। सच्चाई यह है कि बंगाल में मुसलमान सबसे सुरक्षित महसूस करते थे मगर सालभर से
औद्योगिकीकरण के प्रयासों में उलझी माकपा ने कई ऐसी गलतियां की हैं जिससे माकपा से मुसलमानों की आस्था डिग गई
है। राजनीति के स्तर पर माकपा के लिए यह खतरनाक संकेत हैं क्यों कि मुसलमानों के एकतरफा माकपा को वोट मिलते रहें हैं। अब मुसलमानों के वोट विभाजन या न मिलने से वाममोर्चा सरकार को कम से कम फौरन पंचायत चुनावों में काफी नुकसान हो सकता है।
अब बुद्ददेव को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की १५वीं बरसी पर मुसलमानों को लुभाने और मुसलमानों को भरोसा दिलाने
का बेहतर मौका मिला। यानी देश, संस्कृति या मजहब सबकुछ कुर्बान कर दी सत्ता के लिए। फिर वही सवाल उठ खड़ा होता है कि क्या हिंदूओं को भी मुसलमानों के हद तक कट्टर बनाना चाहते ये तथाकथित धर्म निरपेक्ष नेता। अभी तो एक मोदी आपने पैदा किया है। क्या वोट की खातिर बारबार आस्था को लहुलुहान करके देश को भष्म कर देना चाहते हैं। या फिर ऐसा करके आप किस समाज का निर्माण करना चाहते हैं। अभी भारत का एक भी कम्युनिष्ट मुसलमान, ईसाई नहीं है जो आप लोगों की तरह पैगम्बर और ईसा पर कीचड उछालता हो। तो भी आप हिंदू प्रगतिशील को यह क्यों नहीं समझ में आता कि आम लोगों की आस्था को चोट पहुंचाकर सत्ता हासिल करने का खेल न तो आप के लिए और न तो देश के लिए अच्छा होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आप जैसे लोग ही देश में हिंदू कट्टरवाद को उग्र होने के लिए जिम्मेदार होंगे। अगर हिंदू समर्थक मोदी निंदनीय है तो आप छद्म प्रगतिशील भी असह्य हैं।
राम पौराणिक ही नहीं ऐतिहासिक भी
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की ऐतिहासिकता को चुनौती देनेवालों को चुनौती देता एक शोध सामने आया है , जो सिद्ध करता है कि राम पौराणिक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व थे। उनका जन्म 5114 ईसापूर्व 10 जनवरी को हुआ था। इस तरह अगली 10 जनवरी को राम के जन्म के 7122 साल पूरे हो जाएंगे। हालांकि तुलसीदास के रामचरित मानस और रामायण समेत कुछ और साहित्यिक साक्ष्यों को मानें तो नवमी के दिन राम पैदा पुए थे।
श्री राम के बारे में यह शोध चेन्नई की एक गैरसरकारी संस्था भारत ज्ञान द्वारा पिछले छह वर्षो में किया गया है। मुंबई में अनेक वैज्ञानिकों, विद्वानों, व्यवसाय जगत की हस्तियों के सामने इस शोध से संबंधित तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए इसके संस्थापक ट्रस्टी डीके हरी ने एक समारोह में बताया कि इस शोध में वाल्मीकि रामायण को मूल आधार मानते हुए अनेक वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, ज्योतिषीय और पुरातात्विक तथ्यों की मदद ली गई है। जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि राम हमारे गौरवशाली इतिहास का ही एक अंग थे। इस समारोह का आयोजन भारत ज्ञान ने आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट आफ लिविंग के साथ मिलकर किया था।
शोध से संबंधित प्रस्तुतिकरण के बाद इसका सीडी एवं वेबसाइट लांच करते हुए श्री श्री रविशंकर ने कहा कि हमारे देश को ऐसे वैज्ञानिक शोधों की आवश्यकता है , जो सिलसिलेवार तथ्यों पर आधारित हों और हमारी हमारी प्राचीन परंपराओं का खुलासा करते हों। लोगों से ऐसे शोधों को प्रोत्साहन देने की अपील करते हुए श्री श्री रविशंकर ने कहा कि हमें ऐसे तथ्यों के आधार पर दूसरों के सामने अपनी बात रखनी चाहिए। अन्यथा लोग हमारे इतिहास को पौराणिक कहानियां ही बताते रहेंगे। गौरतलब है कि कुछ वर्ष पूर्व वाराणसी स्थित श्रीमद् आद्यजगद्गुरु शंकराचार्य शोध संस्थान के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती ने भी अनेक संस्कृत ग्रंथों के आधार पर राम और कृष्ण की ऐतिहासिकता को स्थापित करने का दावा किया था।
श्री श्री रविशंकर के अनुसार ऐसे शोधों में और ज्यादा वैज्ञानिकों को हिस्सा लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे शोधों परखुलकर बहस होनी चाहिए। क्योंकि बिना बहस के इनके परिणामों को स्थापित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि मैं वैज्ञानिकों को ऐसे शोधों पर अधिक से अधिक सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करूंगा। लेकिन उन्हें अपनी शुरुआत 'मैं किसी बात से सहमत नहीं हूं' से नहीं करनी चाहिए। खुले दिमाग से बहस में हिस्सा लेकर ही किसी तथ्य की सच्चाई तक पहुंचा जा सकता है।
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2 comments:
पहले पैराग्राफ की तीसरी चौथी पंक्ति में संशोधन कर लें ताकि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री एम करूणानिधि न कहलाएं।
कम्यूनिस्ट, मुसलमानों को तुष्ट करने के लिये कुछ भी कर सकते हैं।
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