Monday, 3 December 2007

प्रभाष जोशी, राजेंद्र यादव और उदयप्रकाश

प्रभाष जोशी, राजेंद्र यादव और उदयप्रकाश ने कट्टरपंथियों के चंगुल में फंसी इस दुनिया को अपने नजरिए से देखा है। तस्लीमा के आत्मसमर्पण को जनसत्ता हिंदी दैनिक के संपादक रह चुके प्रभाष जोशी शक की नजर से देखते हैं। इनका कहना है कि कट्टरपंथियों के आगे झुक गईं दो सरकारों ने आत्मसमर्पण कर दिया है। चर्चित साहित्यकार राजेंद्र यादव ने निर्भीक होकर औरत जाति के बोलने पर रोक इसे माना है। वहीं साहित्यकार उदयप्रकाश ने एक लंबे अंतराल में कट्टरपंथ के आगे वीभत्स होती दुनिया का पूरा शब्दचित्र ही खींच डाला है। तीनों लेख एक ही दिन जनसत्ता में छपे हैं। नेट पर तो जनसत्ता नहीं दिखता इस लिए इस विशिष्ट सामग्री को जेपीईजी फार्म में दे रहा हूं। जिन मूल्यों की लड़ाई तस्लीमा लड़ रहीं थीं उसे आखिर क्यों इतनी आसानी से क्यों छोड़ दिया ? यह सवाल इन प्रबुद्ध विचारकों को भी उद्देलित किया। आप खुद इसका अवलोकन करें।




3 comments:

स्वप्नदर्शी said...

aapka dhanyavaad, inhe padhane ke liye.

शैलेश भारतवासी said...

यहाँ उपलब्ध कराने का शुक्रिया। सोचको थोड़ा सा विस्तार मिला

दुविधा said...

नेट पर जनसत्ता भले ही न उपलब्ध हो पर सौभाग्य से प्रभाष जी जरूर www.tehelkahindi.com पर पढ़े जा सकते हैं.

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