Thursday, 6 December 2007

बाबरी मस्जिद का तमाशा !






संसद में हर साल की तरह इस बार भी बाबरी मस्जिद का मुद्दा उठाने का तमाशा हुआ। बाबरी मस्जिद विध्वंस की 15 वीं बरसी के दिन ६ दिसंबर २००७ को संसद के दोनों सदनों में जबर्दस्त हंगामा हुआ। इस मुद्दे पर लोकसभा की दो बार के स्थगन के बाद कल तक के लिए स्थगित कर दी गयी जबकि राज्यसभा में भोजनावकाश के बाद सामान्य रूप से कामकाज हुआ।
अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को विवादास्पद ढांचा गिराये जाने के बाद से ही संसद में हर साल इस दिन यह मामला उठाये जाने की परिपाटी बन गयी है और सदस्य अपने अपने दृष्टिकोण से इसके पक्ष और विपक्ष में राय जाहिर करते हैं। दो बार के स्थगन के बाद लोकसभा में भोजनावकाश के उपरांत जब बैठक शुरू हुई तो सपा के सदस्य बाबरी मुद्दे को लेकर अध्यक्ष के आसन के सामने आ गये जबकि केंद्र सरकार में शामिल राजद के सदस्य लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट सदन में पेश करने की मांग को लेकर अपनी सीटें छोड़कर आगे आ गये। दूसरी
ओर भाजपा और शिवसेना के सदस्य राम मंदिर निर्माण के पक्ष में नारे बुलंद करते दिखे।
इसबीच उपाध्यक्ष चरणजीत सिंह अटलवाल ने शोर शराबे के बीच केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह
से दो विधेयक पेश करवाये और सशस्त्र बल अधिकरण विधेयक 2007 बिना चर्चा पारित करा दिया।
इससे पहले हंगामें के बीच संसदीय कार्यमंत्री प्रियरंजन दासमुंशी ने कहा कि ज्यादातर सदस्य सशस्त्र बल अधिकरण विधेयक को बिना चर्चा पारित कराये जाने के पक्ष में हैं अत. इसे पारित करा दिया जाये।इसी दौरान शिवसेना के अनंत गीते दिल्ली के जंतर मंतर पर राम मंदिर निर्माण के समर्थन में धरना दे रहे शिवसैनिकों
पर हमले का मुद्दा उठाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण तरीके से धरना दे रहे शिवसैनिकों पर गुंडों
ने तलवारों और पत्थरों से हमला किया।गीते ने सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश
करते हुए पूछा कि दिल्ली में आतंकवादियों के घुसने की सूचना है और हाई अलर्ट घोषित है ऐसे में वहां
तलवारें कहां से आ गयीं।
सदन में शोरशराबे के बीच दासमुंशी ने कहा कि अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के साथ सभी पार्टियों के नेताओं की बैठक
में तय हुआ था कि आंतरिक सुरक्षा पर कल अधूरी छूटी चर्चा को आज आगे कराया जायेगा। उनके इतना कहते ही सपा के सदस्य अपनी सीटों पर वापस चले गये लेकिन गीते द्वारा शिवसेना कार्यकर्ताओं पर हमले का मुद्दा उठाते ही वे फिर उत्तेजित हो गये। इस दौरान राजद सदस्य लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट को लेकर नारेबाजी करते रहे।

१५ साल बाद गवाही

बाबरी मस्जिद ढहाने को मामले में १५ साल बाद पहले गवाह हनुमान प्रसाद की रायबरेली सीबीआई की अदालत में गवाही ली गई। हनुमान प्रसाद उत्तरप्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर है। बहरहाल दो साल बाद विशेष जज वंशराज सिंह की अदालत ने आडवानी व अन्य के खिलाफ भड़काने वाले नारे लगाने का आरोप फिर मढ़ दिया। हनुमान प्रसाद ने गवाही में कहा कि उसने आडवानी व अन्य के खिलाफ एफआईआर रामजन्मभुमि थाना, अयोध्या के चौकी इंचार्ज गंगा प्रसाद तिवारी की ६ दिसंबर १९९२ की घटना की शिकायत के आधार पर दर्ज किया। इस गवाही के ाधार पर जज ने एफआईआर दर्ज किए जाने की पुष्टि कर दी। प्रसाद बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की घटना के वक्त पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्द करने वाला मुंशिफ था। अभी गवाह से दूसरे पक्ष ने जिरह नहीं की है। अभी दूसरे गवाह सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट आरके स्वामी का १६ दिसंबर को बयान दर्ज किया जाना है।
तारीखों में फंसा अयोध्या विवाद

बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक़ का मामला तो सौ बरस से भी अधिक पुराना है. लेकिन यह अदालत पहुँचा 1949 में. यह विवाद 23 दिसंबर 1949 को शुरू हुआ जब सवेरे बाबरी मस्जिद का दरवाज़ा खोलने पर पाया गया कि उसके भीतर हिंदुओं के आराध्य देव राम के बाल रूप की मूर्ति रखी थी. इस जगह हिंदुओं के आराध्य राम की जन्मभूमि होने का दावा करने वाले हिंदू कट्टरपंथियों ने कहा था कि "रामलला यहाँ प्रकट हुए हैं." लेकिन मुसलमानों का आरोप है कि रात में किसी ने चुपचाप बाबरी मस्जिद में घुसकर ये मूर्ति वहां रख दी थी. मुसलमानों का कहना है कि ऐसे कोई सबूत नहीं हैं कि वहाँ कभी मंदिर था.

सरकारी रिपोर्ट

9 अगस्त 1991 को भारतीय संसद में पेश की गई जानकारी के अनुसार फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन ज़िलाधिकारी केके नैयर ने घटना की जो रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी थी उसमें लिखा था, "रात में जब मस्जिद में कोई नहीं था तब कुछ हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद में घुसकर वहाँ एक मूर्ति रख दी." अगले दिन वहां हज़ारों लोगों की भीड़ जमा हो गई और पाँच जनवरी 1950 को जिलाधिकारी ने सांप्रदायिक तनाव की आशंका से बाबरी मस्जिद को विवादित इमारत घोषित कर दिया और उस पर ताला लगाकर इसे सरकारी कब्ज़े में ले लिया. 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैज़ाबाद की ज़िला अदालत में अर्ज़ी दी कि हिंदुओं को उनके भगवान के दर्शन और पूजा का अधिकार दिया जाए. दिगंबर अखाड़ा के महंत और इस वक्त राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष परमहंस रामचंद्र दास ने भी ऐसी ही एक अर्ज़ी दी.

पूजा

19 जनवरी 1950 को फ़ैजाबाद के सिविल जज ने इन दोनों अर्ज़ियों पर एक साथ सुनवाई की और मूर्तियां हटाने की कोशिशों पर रोक लगाने के साथ साथ इन मूर्तियों के रखरखाव और हिंदुओं को बंद दरवाज़े के बाहर से ही इन मूर्तियों के दर्शन करने की इजाज़त दे दी. साथ ही, अदालत ने मुसलमानों पर पाबंदी लगा दी कि वे इस 'विवादित मस्जिद' के तीन सौ मीटर के दायरे में न आएँ. उमेश चंद्र पांडे की एक याचिका पर फ़ैज़ाबाद के ज़िला जज के एम पांडे ने एक फ़रवरी 1986 को विवादित मस्जिद के ताले खोलने का आदेश दिया और हिंदुओं को उसके भीतर जाकर पूजा करने की इजाज़त दे दी. 11 नवंबर 1986 को विश्व हिंदू परिषद ने विवादित मस्जिद के पास की ज़मीन पर गड्ढे खोदकर शिला पूजन किया. 1987 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में एक याचिका दायर की कि विवादित मस्जिद के मालिकाना हक़ के लिए ज़िला अदालत में चल रहे चार अलग अलग मुक़दमों को एक साथ जोड़कर उच्च न्यायालय में उनकी एक साथ सुनवाई की जाए. इस अर्ज़ी पर विचार चल ही रहा था कि 1989 में अयोध्या की ज़िला अदालत में एक याचिका दायर कर मांग की गई कि विवादित मस्जिद को मंदिर घोषित किया जाए. उच्च न्यायालय ने पाँचों मुक़दमों को साथ जोड़कर तीन जजों की एक बेंच को सौंप दिया. इसके बाद 10 नवंबर 1989 को अयोध्या में मंदिर का शिलान्यास हुआ लेकिन अगले ही दिन फ़ैज़ाबाद के ज़िलाधीश ने आगे निर्माण पर रोक लगा दी.
1993 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने विवादित स्थल के आसपास की 67 एकड़ ज़मीन को सरकारी क़ब्ज़े में लेकर उसे विश्व हिंदू परिषद को सौंप दिया था. सरकार ने उस समय कहा था कि इस पूरी ज़मीन पर पर्यटन के लिए एक रामकथा पार्क विकसित किया जाएगा जिसकी ज़िम्मेदारी विश्व हिंदू परिषद को सौंपी गई थी. 1994 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस फ़ैसले को निरस्त कर सरकार को आदेश दिया था कि अयोध्या में विवादित ढांचे के आसपास की यह ज़मीन दोबारा अधिगृहीत की जाए और उस पर तब तक यथास्थिति बनाकर रखी जाए जब तक अदालत विवादित ढांचे की ज़मीन के मालिकाना हक़ का फ़ैसला न कर दे.सर्वोच्च न्यायालय ने उस वक्त कहा था कि मालिकाना हक का फ़ैसला होने से पहले इस ज़मीन के अविवादित हिस्सों को भी किसी एक समुदाय को सौंपना "धर्मनिरपेक्षता की भावना" के अनुकूल नहीं होगा.

मस्जिद ध्वस्त

6 दिसंबर 1992 को भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना, विश्वहिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया. बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बारे में दो अलग-अलग मामलों की सुनवाई लखनऊ और रायबरेली में दो विशेष अदालतों में चल रही है.पहले इस मामले में आडवाणी सहित 49 लोगों के ख़िलाफ़ लखनऊ में मुकदमा चल रहा था. लेकिन उच्च न्यायालय ने आठ शीर्ष हिंदू राष्ट्रवादी नेताओं से संबंधित मामले को अलग कर दिया. इसके बाद से इन आठ नेताओं के मामले की सुनवाई रायबरेली में हो रही है. रायबरेली की अदालत में चल रहा मुक़दमा मुख्यरुप से मस्जिद गिराने के षडयंत्र का मुक़दमा है. मई 2003 को सीबीआई ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, साध्वी रितम्भरा, विष्णु हरि डालमिया, अशोक सिंघल और गिरिराज़ किशोर सहित आठ लोगों के ख़िलाफ़ पूरक आरोप पत्र दाखिल किए.
2003 में रायबरेली की अदालत ने आडवाणी को सभी आरोपों से बरी कर दिया था. लेकिन अदालत के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए 6 जुलाई 2003 को आडवाणी और अन्य नेताओं के ख़िलाफ़ मुक़दमा फिर से शुरू करने का आदेश दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका असलम भूरे ने दाखिल की थी कि जब बाबरी मस्जिद का मामला लखनऊ की अदालत में चल रहा है तो रायबरेली वाले मामले भी वहीं स्थानांतरित कर दिए जाएँ. लेकिन 22 मार्च 2007 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा है कि मुक़दमा रायबरेली की अदालत में ही चलेगा.

लिब्रहान आयोग

इन मुक़दमों के अलावा बाबरी मस्जिद गिराए जाने को लेकर एक आयोग भी जाँच कर रहा है.इस आयोग का गठन बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद 16 दिसंबर 1992 को किया गया था. कहा गया था कि यह आयोग तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट दे देगा. लेकिन आयोग का कार्यकाल बढ़ता रहा और 15 वर्ष बीत जाने के बाद भी इसकी रिपोर्ट नहीं आई है. हालांकि जून 2006 ने आयोग ने अपनी सुनवाई पूरी कर ली है. आयोग ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव, पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह और मुलायम सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी सहित बहुत से नेताओं के बयान दर्ज किए हैं.
1528: अयोध्या में एक ऐसे नगर में एक मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे कुछ हिंदू अपने आराध्य देवता राम का जन्म स्थान मानते हैं. समझा जाता है कि मुग़ल सम्राट बाबर ने यह मस्जिद बनवाई थी जिस कारण इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था.
1853: पहली बार इस स्थल के पास सांप्रदायिक दंगे हुए.
1859: ब्रितानी शासकों ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी.
1949: भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गयीं. कथित रुप से कुछ हिंदूओं ने ये मूर्तियां वहां रखवाईं थीं. मुसलमानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया और दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर कर दिया. सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया.
1984: कुछ हिंदुओं ने विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में भगवान राम के जन्म स्थल को "मुक्त" करने और वहाँ राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया. बाद में इस अभियान का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संभाल लिया.
1986: ज़िला मजिस्ट्रेट ने हिंदुओं को प्रार्थना करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाज़े पर से ताला खोलने का आदेश दिया. मुसलमानों ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया.
1989: विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज़ किया और विवादित स्थल के नज़दीक राम मंदिर की नींव रखी.
1990: विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को कुछ नुक़सान पहुँचाया. तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने वार्ता के ज़रिए विवाद सुलझाने के प्रयास किए मगर अगले वर्ष वार्ताएँ विफल हो गईं.
1992: विश्व हिंदू परिषद, शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया. इसके परिणामस्वरूप देश भर में हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें 2000 से ज़्यादा लोग मारे गए.
जनवरी 2002: अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया. वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुसलमान नेताओं के साथ बातचीत के लिए नियुक्त किया गया.
फ़रवरी 2002: भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को शामिल करने से इनकार कर दिया. विश्व हिंदू परिषद ने 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरु करने की घोषणा कर दी. सैकड़ों हिंदू कार्यकर्ता अयोध्या में इकठ्ठा हुए. अयोध्या से लौट रहे हिंदू कार्यकर्ता जिस रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे उस पर गोधरा में हुए हमले में 58 कार्यकर्ता मारे गए.
15 मार्च, 2002: विश्व हिंदू परिषद और केंद्र सरकार के बीच इस बात को लेकर समझौता हुआ कि विहिप के नेता सरकार को मंदिर परिसर से बाहर शिलाएं सौंपेंगे. रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास और विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल के नेतृत्व में लगभग आठ सौ कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारी को अखाड़े में शिलाएं सौंपीं.
22 जून, 2002: विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण के लिए विवादित भूमि के हस्तांतरण की माँग उठाई.
जनवरी 2003: रेडियो तरंगों के ज़रिए ये पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के नीचे किसी प्राचीन इमारत के अवशेष दबे हैं, कोई पक्का निष्कर्ष नहीं निकला.
मार्च 2003: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया जिसे ठुकरा दिया गया.
अप्रैल 2003: इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्देश पर पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की खुदाई शुरू की, जून महीने तक खुदाई चलने के बाद आई रिपोर्ट में कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला.
मई 2003: सीबीआई ने 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के ख़िलाफ पूरक आरोपपत्र दाखिल किए.
जून 2003: काँची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की और उम्मीद जताई कि जुलाई तक अयोध्या मुद्दे का हल निश्चित रूप से निकाल लिया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
अगस्त 2003: भाजपा नेता और उप प्रधानमंत्री ने विहिप के इस अनुरोध को ठुकराया कि राम मंदिर बनाने के लिए विशेष विधेयक लाया जाए.
अप्रैल 2004: आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी राममंदिर में पूजा की और कहा कि मंदिर का निर्माण ज़रूर किया जाएगा.
जुलाई 2004: शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने सुझाव दिया कि अयोध्या में विवादित स्थल पर मंगल पांडे के नाम पर कोई राष्ट्रीय स्मारक बना दिया जाए.
जनवरी 2005: लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस में उनकी कथित भूमिका के मामले में अदालत में तलब किया गया.
जुलाई 2005: पाँच हथियारबंद चरमपंथियों ने विवादित परिसर पर हमला किया जिसमें पाँचों चरमपंथियों सहित छह लोग मारे गए, हमलावर बाहरी सुरक्षा घेरे के नज़दीक ही मार डाले गए.
06 जुलाई 2005 : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के दौरान 'भड़काऊ भाषण' देने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी को भी शामिल करने का आदेश दिया. इससे पहले उन्हें बरी कर दिया गया था.
28 जुलाई 2005 : लालकृष्ण आडवाणी 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में गुरूवार को रायबरेली की एक अदालत में पेश हुए. अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी के ख़िलाफ़ आरोप तय किए.
04 अगस्त 2005: फ़ैजाबाद की अदालत ने अयोध्या के विवादित परिसर के पास हुए हमले में कथित रूप से शामिल चार लोगों को न्यायिक हिरासत में भेजा.
20 अप्रैल 2006 : कांग्रेस के नेतृत्ववाली यूपीए सरकार ने लिब्रहान आयोग के समक्ष लिखित बयान में आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था और इसमें भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल और शिव सेना की 'मिलीभगत' थी.
जुलाई 2006 : सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ़ काँच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव किया. इस प्रस्ताव का मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया और कहा कि यह अदालत के उस आदेश के ख़िलाफ़ है जिसमें यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए गए थे.
19 मार्च 2007 : कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी ने चुनावी दौरे के बीच कहा कि अगर नेहरू-गाँधी परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्री होता तो बाबरी मस्जिद न गिरी होती. उनके इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया हुई.
और अब १५ साल बाद गवाही के साथ जारी है कवायद। आखिर कब निकलेगा हल ?

2 comments:

संजय बेंगाणी said...

विस्तृत जानकारी. बहुत सही.

“लीक से हट कर” said...

6 दिसम्बर आज़ाद हिन्दुस्तान के इतिहास का एक ऐसा दिन, जिसे पूरी दुनिया कभी भूला न सकेगी। हिन्दुस्तान के धर्म-निरपेक्ष छवि पर एक ऐसा बदनुमा दाग, जिसे सदियों तक मिटाया न जा सकेगा। अनेकता में एकता और गर्व से कही जाने वाली गंगा-जमुनी संस्कृति के चार सौ वर्ष पुराने धरोहर को दिन-दहाड़े ढ़ा दिया गया। एक पवित्र इबादतगाह को शहीद कर दिया गया। एक पूरी क़ौम रोती रही, कराहती रही, और हृदय रखने वाली इंसानियत तड़पती रही।

बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को 17 वर्ष बीत गए हैं, और यह दिन संगठनों व राजनेताओं के लिए विरोध-प्रदर्शन, धरना, जलसा-जुलूस का दिन बन कर रह गया। इस तरह इन्हें हर साल अपनी टोपी-शिरवानी की गर्द झाड़ने और अपनी भाषणबाज़ी का ज़ौहर दिखाने का मौका मिलने लगा।

आलम तो यह है कि लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है। इस रिपोर्ट को लाने में लिब्राहन साहब को 17 वर्ष लग गए। इसमें देश की जनता का अथाह धन बर्बाद हुआ। लोकसभा- राज्यसभा में बहस भी पूरी हो गई। दिल्ली विधानसभा में तो मार-पीट तक की नौबत आ गई। पर नतीजा हुआ ढ़ाक के तीन पात।

खैर मामला अभी अदालत में है। लेकिन अब आपको तय करना है कि इस पूरे विवाद का क्या हल है...? इसके वजहों से दो भाईयो, दो धर्मों के बीच जो दूरियां बढ़ी हैं, उसे कैसे पाटा जाए... ? कैसे खत्म किया जाए...?

आपके विचारों का स्वागत है। इससे जुड़ी आपकी यादें भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है। आपके इन विचारों व यादों को हम अपने ब्लॉग http://leaksehatkar.blogspot.com के माध्यम से और फिर इसे पुस्तक की शक़्ल दे कर देश के भावी नागरिकों तक पहुंचाएंगे। तो फिर देर किस बात की। हमें जल्द से जल्द ई-मेल करें---- leaksehatkar@gmail.com पर।

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