Thursday, 13 December 2007

अपने ही घर में हुए बेगाने




भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत से दूसरे देशों में बस गए लोगों को सलाह दी थी कि- आप जहां और जिस देश में रह रहे हैं, खुद को उसी देश का समझें। विदेशों में रह रहे भारतवंशियों ने यह नेक सलाह शायद मान भी ली। तब भी सवाल वहीं खड़ा है कि कहीं भी बस गए लोगों को स्थानीय लोगों से अलग समझा गया। मलेशिया, फिजी, सूरीनाम जैसे देशों में भारतीयों से जैसा बर्ताव हुआ और हो रहा है उससे इस सिद्धांत की भी धज्जियों उड़ जाती हैं कि पीढ़ियों बाद तब लोग आप्रवासी नहीं रह जाते जब सांस्कृतिक तौर पर अपने पालक देश को अपना लेते हैं। ताजा प्रकरण मलेशिया को देखने से तो यही लगता है। २५ नवंबर को जब प्रदर्शनकारी हिंदुओं पर मलेशियाई पुलिस कहर बरपा रही थी तो एक प्रदर्शनकारी कैमरे के सामने चिल्ला रहा था कि उन्हें क्यों अलग समझा जा रहा है जबकि वे यहीं पैदा हुए, पले-बढ़े और मलेशिया ही उनका मातृदेश है। उस शख्स की बात भी बिल्कुल सही है क्यों कि ऐसे लोगों का तो अपने मूल देश से कोई नाता भी नहीं रह जाता। अब मलेशिया के मुस्लिम शासक भारतीय हिंदुओं को इसी लिए अलग समझ रहे हैं क्यों कि अंग्रेजों के जाने के बाद सत्ता उनके हाथ में है और भारतीय अल्पसंख्यक हैं। बदावी से कोई यह पूछे कि पीढ़ियों से मलेशिया में रह रहे इन हिंदुओं की सिर्फ यही गल्ती है कि वे हिंदू हैं। और अब मूलदेश भारत से भी उनकी जड़ें कट गईं हैं।
ऐसा नहीं कि सिर्फ भारतीयों के साथ यह बर्ताव किया जा रहा है। बौद्ध, ईसाई भी इस उपेक्षा के शिकार हैं। मलेशिया में भारतीय सशंकित होकर जी रहे हैं। पूरे दक्षिणपूर्व एशिया में जब हिंदू उपनिवेश कायम हुए और भारतीय संस्कृति का परचम इंडोनेशिया के शैलेंद्र राजवंश ने फहराया था तब के और बाद में अंग्रेजों के समय मलेशिया लाए गए भारतीयों को इस बात का जरा भी आभास नहीं रहा होगा कि अपने ही उपनिवेश में वे गैर समझे जाएंगें। बौद्ध, शैव व वैष्णव तीनों को ही तब समान अधिकार प्राप्त थे। दसवीं शताब्ती के बाद जब मुस्लिम सत्ता आई और फिर अंग्रेजों ने इसे ही अपना अपना उपनिवेश बनाया मगर तब अंग्रेजों ने मुसलमानों समेत हिंदुओं, बौद्धों व ईसाईयों को अलग करके इस तरह नहीं देखा जैसा आज बदावी सरकार कर रही है। अब मलेशिया में सौहार्द्र तोड़ने के लिए किसे जिम्मेदार माना जाए? शासक बदावी को या समानता का अधिकार मांग रहे भारतीयों को। भारतीयों की गलती सिर्फ यही है कि उन्होंने खुद को मलेशिया का नागरिक समझते हुए अपने अधिकारों के दमन के खिलाफ आवाज उठाई। २५ नवंबर २००७ से पहले और बाद के मलेशिया संकट पर पूरे घटनाक्रम के विवरण के साथ देखें कि आखिर गड़बड़ी कहां है। और अब किस मानसिकती में जी रहे हैं मलेशिया के भारतवंशीय। घटनाक्रम के लिए पूरे इस दौर में छपी खबरों का भी जायजा लेकर बदावी की मनमानी समझी जा सकती है। विभिन्न समाचार एजंसियों व पोर्टल से ये खबरें तारीखवार भी देखें------



मलयेशिया में हिंदुओं का उत्पीड़न

मलयेशिया मुस्लिम राष्ट्र नहीं , ब्रिटिश कालोनी थी जब हिन्दुओं को मजदूर बनाकर अंग्रेज उपनिवेश काल में मलयेशिया ले गये थे। सूरीनाम, गुयाना, मारीशस, फिजी त्रिनिदाद और टोबैगो की तरह हिन्दुओं ने मलयेशिया को अपना घर और अपना देश आत्मसात किया। हिन्दुओं ने लगन परिश्रम और प्रतिभा के बल पर न केवल अपनी किस्मत बनायी अपितु विकास की सीढ़ियां नापी। हिन्दुओं के पुरखों को रत्ती भर यह आशंका नहीं होगी कि जिस मलयेशिया को वे अपना घर-अपना देश आत्मसात कर रहे हैं उसी मलयेशिया में उनकी संतानें एक दिन धार्मिक भेदभाव के न शिकार होंगे बल्कि उत्पीड़न के शिकंजे में कसते चले जाएंगे। मलयेशिया में हिन्दुओं की किस्मत तभी दगा दे गयी थी जब अंग्रेज मलयेशिया छोड़कर चले गये थे और मलयेशिया आजाद हो गया था। चूंकि मलयेशिया में मुस्लिम आबादी बहुमत में थी, इसीलिए वहां की सत्ता, प्रशासन, संस्कृति और विकास पर मुस्लिमों का कब्जा हो गया। मुस्लिम बहुलता की स्थिति में अन्य धमोर्ं की आजादी और उनकी संस्कृति के विकास की कल्पना भी क्या की जा सकती है? यही स्थिति मलयेशिया में रह रहे हिन्दुओं के साथ उत्पन्न हुई है। धर्म परिवर्तन जैसे उन्माद का शिकार बनाया जाता है। सत्ता और विकास के दरवाजे संकीर्ण किये जा चुके हंै। ऐसी स्थिति में कोई धर्म अपने अस्तित्व के निमित्त क्यों नहीं सड़कों पर उतरेगा? तमाम तरह के बंदिशों और गिरफ्तारियों के बाद भी बीस हजार से ज्यादा हिन्दुओं ने सड़कों पर प्रदर्शन कर मलयेशिया में धार्मिक असहिष्णुता ही नहीं सत्ता व्यवस्था की मुस्लिम परस्ती की पोल भी खोल कर रख दी। प्रदर्र्शनकारियों पर जिस तरह पुलिसिया जुल्म हुए वह भी मानवाधिकार हनन का विषय बनता है।

मलयेशिया के हिन्दू मुस्लिम सरकार से ज्यादा ब्रिटिश सरकार से खफा हंै। हिन्दुओं के अधिकारों के लिए संघर्षरत ‘हिन्दू राइट्स एक्शन फोर्स’ का साफ कहना है कि सबसे अधिक दोषी ब्रिटेन की सरकार है। अंग्रेज मलयेशिया को आजाद कर चले गये। सत्ता हस्तांतरण के समय संविधान में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए थी जिससे हिन्दुओं की धार्मिक और सांस्कृतिक आजादी का संरक्षण का दायित्व संविधान में निहित होता। पर ऐसा कुछ भी अंग्रेजों ने नहीं किया। पिछले काफी सालों से हिन्दुओं के अंदर धार्मिक भेदभाव के खिलाफ आग सुलग रही थी। ब्रिटेन सरकार के सामने कई बार हिन्दुओं ने अपने सवाल रखे और अपनी धार्मिक आजादी और संस्कृति के संरक्षण के लिए कार्रवाई करने का आह्वान किया। हिन्दू राइट्स एक्शन फोर्स ने ब्रिटिश सरकार से करोड़ों मिलियन डालर का मुआवजा भी मांगा है।

मुस्लिम बहुल आबादी में हिन्दुओं की हिस्सेदारी लगभग आठ प्रतिशत है जबकि मुस्लिम आबादी 60 प्रतिशत है। चीनी मूल के लोगों की भी अच्छी संख्या है। चीनी मूल की आबादी बौद्ध धर्मावलम्बी हैं। ईसाइयों की भी संख्या अच्छी है। मलयेशिया और इंडोनेशिया दो ऐसे देश हंै जहां पर मुस्लिम धार्मिक समूह पर हिन्दू संस्कृति की गहरी छाप रही है। कभी जीवन शैली से लेकर विभिन्न संस्कारों में हिन्दू संस्कृति साफ झलकती थी। लेकिन संकट तब शुरू हुआ जब अरब से इस्लामिक कट्टरता मलयेशिया , इंडोनेशिया के साथ ही साथ तुर्की पहुंच गयी। इस्लामिक कट्टरता ने उन सभी प्रतीकों पर बुलडोजर चला दिया जिनके संबंध अन्य धार्मिक समूहों के साथ जुड़े थे। जैसे-जैसे इस्लामिक कट्टरता के प्रसार होता चला गया वैसे-वैसे हिन्दुओं के साथ ही साथ अन्य सभी गैर इस्लामिक धार्मिक समूहों का जीवन दुरूह होता चला गया। येन-केन-प्रकारेण मुस्लिम बनाने की प्रक्रिया तेजी से चली। पिछले 10 साल में कई लाख लोगों को मुस्लिम बनने के लिए बाध्य किया गया। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मुस्लिमों को धार्मिक परिवर्तन करने की संवैधानिक आजादी नहीं है। कोई मुस्लिम अगर किसी अन्य धर्म से प्रभावित होकर उस धर्म को अपनाना चाहे तो इसकी इजाजत मलयेशिया का संविधान और कानून नही देता है। इसके उलट स्थिति यह है कि गैर इस्लामिक अल्पसंख्यकों के धार्मिक परिवर्तन पर कोई रोक भी नहीं है।
चाय बगानों में मजदूर के रूप में काम करने गये हिन्दुओं ने अपनी किस्मत खुद लिखी है। मलयेशिया को 1957 में आजादी मिली। आजादी के बाद चाय बगानों और जमीनों का अधिग्रहण कर लिया गया। सैकड़ों मंदिरों को विकास के नाम पर गिरा दिया गया। लेकिन आज तक एक भी मस्जिद नहीं गिरायी गयी। मलयेशिया सरकार का कहना है कि उसके देश में 50 लाख से अधिक अप्रवासी हैं जिनके कारण कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हुई हंै। वास्तव में अप्रवासी का सवाल उठाकर मलयेशिया सरकार की धार्मिक अल्पसंख्यकों को खदेड़ने और उत्पीड़ित करना चाहती है। अप्रवासी उसे भी करार दिया जा रहा है जो मलयेशिया की आजादी के पूर्व से वहां पर रह रहे हैं।

हिंदुओं में अजीब सी खामोशी

आजादी के 50 साल पूरे होने की खुशी में आयोजित मलयेशिया एयर-एंड-सेल कार्निवाल में जबर्दस्त गहमागहमी थी, लेकिन हिंदुओं में अजीब सी खामोशी दिखाई दी। यहां तक कि मेले में हिंदुओं की भागीदारी भी बहुत कम थी। लोकल न्यूजपेपर 'स्टार' के मुताबिक मेले में करीब 150-200 स्टॉल्स थे। इनमें से करीब 100 स्टॉल भूमिपुत्र (मूल निवासियों) के, लगभग 60 स्टॉल चाइनीज लोगों के और बाकी दूसरे समुदाय के हैं। कार्निवाल में इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स बेच रहे एक भारतीय सुखबीर ने बताया, 'इस बार बहुत कम भारतीयों ने यहां स्टॉल लगाए हैं। पिछले दिनों हुई घटना से सभी सकते में हैं। उन्हें लगता है कि इस घटना के बाद वे अच्छा बिजनेस नहीं कर पाएंगे।' फाइवस्टार होटल 'नोवोल्टी' के एक असिस्टेंट मैनेजर नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, 'यहां के हालिया घटनाक्रम से भारतीय भयभीत हैं। हालात ऐसे हैं कि अब भारतीय एकजुट होकर आंदोलन करने की हिम्मत शायद ही जुटा पाएं।' अखबारों में छप रहे नेताओं के बयान देखकर भी लगता है कि सरकार को हिंदुओं के प्रतिरोध का तरीका पसंद नहीं आया। 'स्टार' अखबार ने उपप्रधानमंत्री नाजिम तुक रजक के हवाले से लिखा कि हिंदू राइट्स एक्शन फोर्स (हिंदरैफ) मलयेशिया की इमेज को दुनिया में खराब कर रही है। आंतरिक मामलों को अंतरराष्ट्रीय रूप दिया जा रहा है। ऐसी स्थिति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

गौरतलब है कि मुस्लिमों की तरह समान अधिकार देने की मांग को लेकर मलयेशिया में रह रहे भारतीय आंदोलन कर रहे हैं। इस आंदोलन के बाद से यहां मंदिरों को ढहाने का सिलसिला तेज हो गया है। हालांकि सरकार कहती है कि मंदिर बनाने के लिए दूसरी जगह दी जाएगी। मलयेशिया हिंदू संगम के अध्यक्ष दातुक ए. नैथीईलगम कहते हैं, 'सरकार विकास के नाम पर ऐतिहासिक मंदिरों को ही ढहा रही है। दूसरी इमारतों को नुकसान नहीं पहुंचाया जा रहा है। सरकार हमारे साथ मनमानी पर उतर आई है।' दरअसल, अल्पसंख्यक होने के कारण मलयेशिया में रह रहे भारतीय हिंदू अपनी आवाज खुलेआम नहीं उठा सकते, लेकिन अगर चाइनीज साथ दें, तो वे संघर्ष कर सकते हैं।
शोरूम चला रहे एक भारतीय ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हमने मलयेशिया को हमेशा अपने देश भारत की तरह माना है। लेकिन अब हालत यह है कि घर से निकलने में भी हमें सोचना पड़ता है। ये हालात ज्यादा दिनों तक नहीं रहेंगे। आखिर यहां की सरकार टूरिजम के नाम पर भारत से अच्छा-खासा कमाती है।' चीन के एक बिजनेसमैन जू हैन कहते हैं, 'भारतीय अधिकारों के लिए लड़ें, लेकिन यह लड़ाई कानूनी रूप से लड़ी जानी चाहिए। दुनिया में हर जगह लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। यहां भी वही हो रहा है। भारतीयों ने आवाज उठाई है और सरकार उस पर गंभीरता से विचार कर रही है।'

मलयेशिया का बहुसंख्यक वर्ग भारतीयों का साथ नहीं दे रहा। इसकी बानगी देखिए। हाई कोर्ट के वकील अतीफ खान कहते हैं, 'भारतीय बेवजह शोर मचा रहे हैं। यहां 10 में से 3 स्कूल तमिल बेस हैं। ट्यूशन और कोचिंग सेंटर में तमिल सिखाई जाती है। किसी भी देश में इतने मंदिर नहीं हैं, जितने यहां हैं। ये लोग किसी भी बड़े स्कूल में अपने बच्चे को दाखिला दिलवाने के लिए फ्री हैं। जितना लोन चाहें, इन्हें बैंकों से मिलता है। बिजनेस में ये बहुत आगे हैं। हमारे हजारों लोग इनकी कंपनियों में काम कर रहे हैं। ऐसे में बदहाली कहां है?' अतीफ चाहे जो कहें, लेकिन यहां के भारतीय हिंदुओं के मुताबिक उन्हें सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता नहीं दी जाती। हां, प्राइवेट सेक्टर में टॉप मोस्ट पदों पर ज्यादातर भारतीय ही नजर आते हैं। फैमिली प्लानिंग के मामले में भी यहां चीनी और भारतीय लोगों के साथ असमान व्यवहार किया जाता है। जहां मलय लोगों को 5 से ज्यादा बच्चे पैदा करने की छूट है, वहीं चीनियों को 2 और भारतीयों को 2 से 3 बच्चों तक सीमित रहने की हिदायत है। मलयेशियन रेवेन्यू के सबसे बड़े स्रोत टूरिजम इंडस्ट्री पर भी भूमिपुत्रों का ही कब्जा है। भारतीयों और चीनियों का योगदान सिर्फ एजेंट तक सीमित है।

मलेशिया: एक और मंदिर तोड़ा गया
02 नवम्‍बर 2007 (वार्ता )


कुआलालंपुर। मलेशिया के सेलांगर प्रांत की राजधानी शाह आलम में सरकारी आदेश के बाद एक और हिन्दू मंदिर को तोड़ दिया गया है। मलेशिया हिन्दू संगम के अध्यक्ष दातुक ए वैथीलिंगम ने बताया कि शाह आमल में स्थित श्री महा मरियम्मा हिन्दू मंदिर को गत 30 अक्टूबर को सरकारी आदेश के बाद तोड़ दिया गया है। वैथीलिंगम ने बताया कि मंदिर को तोड़े जाने का विरोध कर रहे है स्थानीय हिन्दू नागरिको के साथ पुलिस ने दुर्व्यवहार भी किया।
उन्होंने कहा कि पुलिस ने तीन साल पुराने एक सरकारी आदेश के तहत यह कार्रवाई की है। लेकिन उस आदेश में धार्मिक स्थलों को हटाये जाने के बारे में कोई बात नहीं की गई थी। वैथीलिंगम ने बताया कि पुलिस की इस कार्रवाई से मलेशिया के हिन्दूओं में रोष है और उन्होंने इस मामले में प्रधानमंत्री अहमद बदावी से हस्तक्षेप करने की मांग की है। उल्लेखनीय है कि मलेशिया में पिछले कुछ महीनों के दौरान कई ऐतिहासिक हिन्दू मंदिरों को यह कहते हुए तोड़ा गया है कि वे सरकारी भूमि पर गैर कानूनी तरीके से बनाए गये है। तोडे गए कई मंदिर 50 साल से भी ज्यादा पुराने थे।

मलेशियाई हिन्दू सड़कों पर उतरे
कुआलालंपुर (वार्ता), रविवार, 25 नवंबर 2007


मलेशिया में मुस्लिमों की तरह समान अधिकारों की माँग को लेकर राजधानी कुआलालंपुर में रविवार को 10 हजार से ज्यादा हिन्दुओं ने सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन किया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए उन पर लाठीचार्ज किया, आँसू गैस के गोले छोड़े तथा पानी की तेज बौछार की।मलेशियाई हिन्दुओं ने भेदभाव के खिलाफ आयोजित इस रैली की तैयारी कई दिन पहले ही कर ली थी, लेकिन सरकार ने हिन्दुओं को यह रैली नहीं करने की चेतावनी दे रखी थी। बावजूद इसके मलेशियाई हिन्दू आज सड़कों पर उतरे और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। इस रैली को आयोजन कई हिन्दू संगठनों ने मिलकर किया था।हिन्दुओं के संगठन हिन्दू राइट्स एक्शन फोर्स (हिन्ड्राफ) ने आरोप लगाया कि सरकार हिन्दुओं के साथ भेदभाव कर रही है। हिन्दुओं को जानबूझकर नौकरियों में नहीं रखा जाता है जबकि हिन्दुओं के लिए विश्वविद्यालयों में दाखिला लेना हमेशा से मुश्किल रहा है।प्रदर्शनकारियों के हाथों में मलेशियाई झंडे तथा तख्तियाँ थीं जिन पर लिखा था- हमने भी इस देश की आजादी की लड़ाई लड़ी थी फिर हमारे हक की अनदेखी क्यों? इलाके में दर्जनों पुलिस के ट्रक और सैकड़ों की संख्या में दंगा निरोधक पुलिस बल तैनात था। पुलिस का एक हेलिकॉप्टर आसमान से उन पर पैनी नजर रखे हुए चक्कर लगा रहा था।प्रदर्शनकारियों ने कहा- हम अपना हक लेने यहाँ आये हैं। ब्रिटिश शासक 150 वर्ष पहले हमारे पूर्वजों को यहाँ लाए थे। सरकार को जो कुछ भी हमें देना चाहिए और हमारी देखभाल करनी चाहिए, उसमें वह असफल रही है।मलेशिया की आबादी का सात प्रतिशत हिस्सा भारतीय मूल के लोगों का है। उनकी शिकायत है कि देश में रोजगार एवं व्यापार के अवसरों में स्थानीय मलय सुदाय के दबदबे वाला राजनीतिक नेतृत्व उनके साथ भेदभाव करता है। सरकारी कार्रवाई से गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने नारे भी लगाए। मलेशिया में कोई लोकतंत्र नहीं है, कोई मानवाधिकार नहीं है।

मलेशिया में हिंदुओं का आंदोलन
सोमवार, 26 नवंबर, 2007
अनीश अहलूवालिया (बीबीसी संवाददाता)


मलेशिया में रहने वाले हिंदुओं का कहना है कि मलेशिया सरकार देश के हिंदू समुदाय के साथ भेदभाव का बर्ताव करती है और उसे विकास के अवसरों से वंचित रखा जाता है. इस 'भेदभाव' के ख़िलाफ़ मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में रविवार को हिंदू समुदाय के लोगों ने एक प्रदर्शन किया जिसमें भारतीय मूल के हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया.पुलिस ने इस रैली को तितर-बितर करने के लिए आंसूगैस और बल का प्रयोग किया और कई लोगों को गिरफ़्तार किया गया.
यह पहला मौका है जब मलेशिया के भारतीय मूल के लोगों ने सरकार के ख़िलाफ़ इतना बड़ा अभियान छेड़ा है. भारतीय जनता पार्टी ने भारत सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है. रैली का आयोजन हिंदू राइट्स एक्शन फ़ोर्स नाम के एक संगठन ने किया था और इसके नेता वहाँ ब्रितानी उच्चायोग को एक याचिका देना चाहते थे जिसमें ब्रिटेन की महारानी से अपील की गई थी कि वो मलेशिया में भारतीय मूल के लोगों के साथ हो रहे 'भेदभाव' को रोकें. मगर इस रैली से दो दिन पहले ही मलेशिया की पुलिस ने संगठन के कई लोगों को गिरफ़्तार कर लिया और रैली की अनुमति देने से इनकार कर दिया. मलेशियाई पुलिस का कहना है कि ऐसी रैली से देश में सामुदायिक वैमनस्य को बढ़ावा मिलेगा. मलेशिया में कोई भी रैली सरकार की अनुमति के बिना नहीं हो सकती और ज़ाहिर सी बात है कि पुलिस सरकार विरोधी किसी रैली की अनुमति नहीं देना चाहती. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि लगभग डेढ़ सौ साल पहले ब्रिटेन की सरकार उन्हें मज़दूरी के लिए मलेशिया लाई थी इसलिए मलेशिया की आज़ादी के बाद उनके हितों की रक्षा की ज़िम्मेदारी भी ब्रिटेन पर है.


विरोध

हिंदू राइट्स एक्शन फ़ोर्स के नेताओं का कहना है कि मलेशिया सरकार जिस पर मलय लोगों की ही पकड़ है हिंदुओं के हितों की लगातार अनदेखी करती रही है.मलेशिया में हिंदुओं की जनसंख्या करीब आठ प्रतिशत है और मलय लोगों को बाद चीनी मूल के लोग दूसरा सबसे बड़ा समुदाय हैं. दक्षिणपूर्व एशिया मामलों के जानकार और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर गंगानाथ झा कहते हैं, "मलेशिया में हिंदुओं की समस्या की जड़े पुरानी हैं". उन्होंने कहा, "मलेशिया में विगत में शुरु हुए 20 सूत्री कार्यक्रम और राष्ट्रीय विकास कार्यक्रम में भी ज्यादातर स्थानीय मलाय लोगों के विकास को ही प्राथमिकता दी जाती रही है. नतीजा यह है कि शिक्षा और रोज़गार में भारतीयों का विकास नहीं हुआ है."डॉक्टर झा का कहना है कि भारतीयों के मुकाबले चीनी समुदाय का विकास कहीं ज्यादा हुआ है मगर चूंकि आरक्षण जैसी सुविधाएं सिर्फ़ मलय समुदाय को हासिल हैं चीनी मूल के लोग भी भारतीय समुदाय के साथ परिवर्तन चाहते हैं.
दिल्ली में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने सरकार से मांग की है कि वो मलेशिया सरकार से बात करे. भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, "मलेशिया में भारतीय बड़ी संख्या में है. उनकी रोज़ी-रोटी की समस्या पैदा हो रही है. रोज़गार और उद्योग में लाइसेंस मिलने में उन्हें समस्या आती है. भारत सरकार को इस बारे में मलेशिया सरकार से बात करनी चाहिए जैसे चीन सरकार ने की थी, जब चीनी मूल के लोगों ने इस मुद्दे को उठाया था."

“हिन्दुओं के आगे नहीं झुकेगी मलेशियाई सरकार
26 नवम्बर 2007 (वार्ता)


सिंगापुर। मलेशिया के उप प्रधानमंत्री नाजिम तुन रजक ने कहा है कि कुआलालंपुर में रविवार को आयोजित हिन्दू संगठनों की रैली राजनीति से प्रेरित थी और सरकार ऐसे प्रदर्शनों के आगे नहीं झुकेगी। मलेशियाई उप प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार हिन्दू संगठनों की ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिये तैयार है1 उन्होंने कहा कि अगर सरकार हिन्दुओं के खिलाफ है तो हिन्दू मौजूदा गठबंधन सरकार का समर्थन क्यों कर रहे हैं।गौरलतब है कि श्री रजक मौजूदा गठबंधन सरकार में मलय,चीनी, भारतीय राजनीतिक पार्टियों के समन्वयक भी हैं।उल्लेखनीय है कि रविवार को हिन्दू संगठनों ने कुआलालंपुर में सरकार विरोधी रैली का आयोजन किया था। इस रैली के दौरान पुलिस के लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले फेंकने से करीब 130 प्रदर्शनकारी घायल हुये थे। हिन्दुओं का आरोप है कि मौजूदा मलेशियाई सरकार के शासन में उन्हें हाशिये पर धकेल दिया गया है। उधर हिन्दू संगठनों ने मलेशिया में स्थित ब्रिटिश उच्चायोग को भी एक ज्ञापन देकर मलेशियाई हिन्दुओं के लिये तीन अरब डॉलर के मुआवजे की मांग की है।
हिन्दू संगठनों का कहना है कि ब्रिटिश सरकार 19 वीं शताब्दी में हिन्दुओं को मलेशिया लाई, लेकिन उनका जमकर उत्पीड़न किया जा रहा है। संगठनों का आरोप है कि सरकार उनके मंदिरों को भी उजाड़ने पर तुली हुई है।

करुणानिधि अपने काम से काम रखें : मलयेशिया
29 Nov 2007


नई दिल्ली : मलयेशिया सरकार ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि से कहा है कि वे अपने काम से काम रखें और वहां बसे भारतीयों की चिंता न करें। मलय हिंदुओं के खिलाफ बरती जा रही सख्ती पर करुणानिधि ने केंद्र से दखल की गुजारिश की थी। मलयेशिया की इस टिप्पणी पर संसद में भारी हंगामा हुआ। सभी पार्टियों ने मलयेशिया में हो रही घटनाओं पर चिंता जताई है। इस बीच अमेरिका ने भी कहा है कि लोगों को शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखने का हक होना चाहिए। मलयेशिया में बसे हिंदू वहां की सरकार की नीतियों से नाराज हैं और आरोप है कि उनके साथ दूसरे दर्जे के नागरिक की तरह बर्ताव किया जाता है। करुणानिधि ने मंगलवार को पीएम मनमोहन सिंह से कहा था कि वे दखल देकर मलयेशिया में बसे तमिलों के हितों की रक्षा करें। उनका कहना था कि तमिलनाडु के लोग मलयेशिया के घटनाक्रम से आहत हैं। इस पर मलयेशिया सरकार के मंत्री नजरी आजिज ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, 'यह मलयेशिया है, तमिलनाडु नहीं। यहां के मसलों से उनका कोई लेना-देना नहीं है। वह अपने काम से काम रखें।' अजीज ने 26 नवंबर को हुए प्रदर्शन में शामिल लोगों को ठग कहा था, इस बारे में भी उन्होंने कोई खेद जताने से इनकार कर दिया। मलयेशिया से आई इस तीखी राय पर करुणानिधि ने संयम भरा बयान दिया है। उनका कहना है कि इस तरह की कड़वी बहस में नहीं पड़ना चाहता, मैं तो बस तमिल लोगों के हित की बात उठा रहा हूं। लेकिन उनकी बेटी कनिमोझी ने अपने पिता का बचाव किया है। संसद में उन्होंने कहा कि हम इसका विरोध करेंगे और केंद्र को भी कुछ करना चाहिए। बीजेपी ने कहा है कि सरकार को यह मुद्दा कॉमनवेल्थ और यूएनओ में उठाना चाहिए। सीपीआई ने भी कहा है कि भारत सरकार को यह मसला मलयेशिया सरकार के सामने रखना चाहिए। पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डी. राजा ने कहा कि मलयेशिया मित्र देश है लेकिन वहां बसे बराबरी के अधिकार की मांग कर रहे हैं। ग्लोबल ऑर्गनाइजेशन ऑफ पीपल ऑफ इंडियन ऑरिजन ने भी मलयेशिया सरकार से मांग की है कि वह भारतीयों के साथ भेदभाव न करे। इस बीच मलयेशिया सरकार ने हिंदू एक्शन राइट्स फोर्स के नेताओं पर देशद्रोह का मुकदमा हटाने के बारे में फिर सोच रही है। यानी वह इस बारे में नरमी बरतने के मूड में नहीं है।

मलयेशिया में भारतीय मूल का नेता गिरफ्तार
29 Nov 2007


क्वालालंपुर : भारतीय मूल के लोगों को मलेशिया में कथित रूप से हाशिए पर रखे जाने के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित करने वाले हिंदू अधिकार संगठन के नेता को गुरुवार को गिरफ्तार कर लिया गया। पिछले हफ्ते आयोजित यह प्रदर्शन मलयेशिया में भारतीय मूल के लोगों का अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन था।
खबरों के मुताबिक, हिंदू राइट्स एक्शन फोर्स (हिंदाफ) के नेता वी. गणपति राव को पुलिस ने उनके कार्यालय से उठा लिया। पी. उथयकुमार, वेथा मूर्ति और राव हिंदाफ के तीन प्रमुख नेता हैं। रविवार को इन्होंने रैली का आह्वान किया था, जिसमें करीब 10 हजार भारतीय मूल के लोगों ने शिरकत की। वे ब्रिटिश उच्चायोग जाकर वहां ज्ञापन सौंपना चाहते थे। ज्ञापन में शिकायत की गई थी कि भारतीयों को उस वक्त से हाशिए पर रखा गया है, जब उनके पूर्वजों को जबरन मजदूर बनाकर लाया गया था। इस बीच मलेशिया सरकार ने हिंदू राइट्स एक्शन फोर्स (हिंदाफ) के कथित ज्ञापन की प्रमाणिकता की जांच का फैसला किया है। प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री नजरी अजीज ने बुधवार रात यहां बताया कि मंत्रिमंडल की बैठक में इस ज्ञापन पर चर्चा हुई। अगर इस बात की पुष्टि होती है कि ज्ञापन हिंदाफ के नेता पी. उथयकुमार ने जारी किया, तो उन पर राष्ट्रविरोधी बयान देने के लिए देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाएगा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को संबोधित इस ज्ञापन को एक लोकप्रिय वेबसाइट पर जारी किया गया था। इसमें दावा किया गया है कि युनाइटेड मलय नैशनल ऑर्गनाइजेशन ने हिंदू अल्पसंख्यकों के सफाए का संकल्प लिया है।

हिंड्राफ की जाँच करेगी सरकार
29 नवम्बर 2007


सिंगापुर-मलेशिया सरकार ने हिन्दुओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हिन्दू राइट्स एक्शन कमेटी (हिंड्राफ) द्वारा जारी कथित दस्तावेज (ज्ञापन) की प्रामाणिकता की जाँच करने का फैसला किया है।प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री नजरी अजीज ने बुधवार की रात यहाँ संवाददाताओं को बताया कि मंत्रिमंडल की बैठक में दस्तावेज पर चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि अगर इस बात की पुष्टि होती है कि यह दस्तावेज हिंड्राफ के नेता पी उदयकुमार ने इसे जारी किया है तो उन पर राष्ट्रविरोधी बयान देने के लिए देशद्रोह कानून के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन को संबोधित इस दस्तावेज को एक लोकप्रिय वेबसाइट पर जारी किया गया था। इसमें दावा किया गया है कि यूनाइटेड मलय नेशनल आर्गेनाइजेशन ने हिन्दू अल्पसंख्यकों के सफाए का संकल्प लिया है। दस्तावेज में ब्रिटेन से हस्तक्षेप करने का आग्रह करते हुए कहा गया है कि वह भारतवंशियों के खिलाफ अपराध करने के लिए मलेशिया को अंतरराष्ट्रीय अदालत में खींचे। नजरी ने कहा कि इस दस्तावेज से यह साबित होता है कि उदयकुमार ने हिन्दुओं को सरकार के विरुद्ध भड़काया और मलय तथा मुस्लिमों को हिंड्राफ के खिलाफ किया।
सरकारी न्यूज एजेंसी (बेरनामा) ने उनके हवाले से कहा, ' जातीय शुद्धिकरण और श्रीलंका जैसी परिस्थितियां पैदा करने वाली धमकियाँ गैरजिम्मेदाराना हैं। सरकार को चुनौती मत दीजिए। उदयकुमार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
नजरी ने कहा कि मंत्रिमंडल ने हिंड्राफ द्वारा गत रविवार को आयोजित अवैध रैली पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि इसमें शामिल लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि वह हिंड्राफ से माफी कतई नहीं माँगेगे।
उन्होंने कहा, ' रैली में शामिल 20 हजार लोग गैंगस्टर हैं क्योंकि उन्होंने कानून की अनदेखी की। मैं यह भारतीय समुदाय के बारे में नहीं कह रहा हूँ लेकिन उन लोगों के बारे में कह रहा हूँ जो इस रैली में शामिल हुए।' नजरी ने कहा कि रैली में शामिल 20 हजार अवैध प्रदर्शनकारियों का रवैया बीस लाख भारतीयों से मेल नहीं खाता है जो शांति और एकता चाहते हैं। स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार मलेशिया के मूल नागरिकों के समान अधिकारों की माँग को लेकर गत रविवार को लगभग दस हजार हिन्दुओं ने राजधानी कुआलालंपुर में उग्र प्रदर्शन किया। सरकार ने इस रैली को अवैध करार दिया था। हिन्दू संगठनों ने ऐसे और प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है। हिन्दू नेताओं ने 18वीं शताब्दी में ब्रिटेन के उपनिवेश मलेशिया में भारतीयों को बंधुआ मजदूरों की तरह लाने और उनका शोषण करने पर चार लाख करोड़ डॉलर की क्षतिपूर्ति देने के लिए ब्रिटेन की सरकार के खिलाफ लंदन की एक अदालत में मुकदमा भी दायर किया है।

'तो इंडिया लौट जाओ'
30 Nov 2007


क्वालालंपुर : शॉपिंग फेस्टिवल की मस्ती से क्वालालंपुर की सड़कें सजी हुई हैं, टूरिस्टों के लिए होटल पूरी तरह बुक हैं। सब कुछ ठीकठाक से दिख रहे इस माहौल को जरा सा खरोचने की जरूरत है कि दर्द का एक सैलाब फूट पड़ता है। मलयेशिया के हालात पर यहां बसे भारतीयों से सवाल पूछिए तो पहले वह थोड़ा हिचकते हैं लेकिन एक हिंदुस्तानी से बात करते हुए उनकी भड़ास बाहर आ जाती है। अपने ही मुल्क में दूसरे दर्जे के नागरिक की तरह व्यवहार उन्हें कचोट रहा है। भारतीय मूल के महेंद्र सिंह मलयेशिया सरकार की नौकरी से रिटायर हो चुके हैं। मुल्क के बदलते माहौल को लेकर वह परेशान हैं। महेंद्र कहते हैं, 'हमारी जिंदगी तो कट गई, आने वाली पुश्तों का क्या होगा। अपने साथ किसी तरह के भेदभाव की हम बात करते हैं तो साफ कह दिया जाता है, मलयेशिया में दिक्कत है तो भारत लौट जाओ।' जिस मुल्क को वह आजतक अपना समझते रहे, अब वहां इस तरह का व्यवहार वह हजम नहीं कर पा रहे हैं। उनकी जड़ें पंजाब के मोगा इलाके से हैं लेकिन मलयेशिया को वह अपना वतन मानते रहे। पेशे से बैंकर अरुण भी भविष्य को लेकर परेशान हैं। उनके मुताबिक पिछले दिनों हालात जिस तरह बिगड़े हैं, उनसे भारतीय समुदाय डरा हुआ है। वह कहते हैं कि भारतीय और चीनी मूल के लोगों के साथ भेदभाव होता रहा है लेकिन अब स्थिति बेकाबू होती जा रही है। यही डर और आशंका यहां बसे 17 लाख भारतीयों के चेहरे से बयां हो जाती है।

क्वालालंपुर आने वाला हर टूरिस्ट पेट्रोनास टावर जरूर जाता है। यह एक तरह से मॉडर्न मलयेशिया का प्रतीक बन चुका है। लेकिन इसी आधुनिकता पर कट्टरता हावी होने लगी है। इसी टावर में काम कर रही एक भारतीय मूल की युवती बड़ी मुश्किल से हमसे बात करने को तैयार हुई और डर के मारे अपना नाम भी नहीं बताया। उनके मुताबिक 26 नवंबर को हुए प्रदर्शन में 500 लोग गिरफ्तार किए गए थे जिनमें से करीब 300 का अब भी पता नहीं है। इनमें उनके भी कुछ रिश्तेदार हैं। इस युवती के मुताबिक माहौल इतना खतरनाक है कि इस बारे में खुलकर बोलते हुए भी डर लगता है। करीब 14 साल से गाइड का काम कर रहे तमिल मूल के सैम कहते हैं कि पिछले एक-दो साल से हालात बिगड़े हैं और भारतीय पहचान का ठप्पा मलयेशियाई नागरिकता से बड़ा हो गया है। इसी टावर के पास डी-तंदूरी नाम से रेस्टोरेंट हैं, जहां आपको लजीज इंडियन फूड मिलेगा। यहां मैनेजर के तौर पर काम कर रहे आर. ओ. चिकराज कहते हैं कि हमारे साथ नाइंसाफी होती है और अब हम उसके खिलाफ आवाज भी नहीं उठा सकते। ये हालात तो ब्रिटिश राज से भी बुरे हैं। दूसरी तरफ टूरिस्टों की अगुवाई के लिए तैयार मलयेशिया के अधिकारी मानते हैं कि बातों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। उनके मुताबिक दूसरे देशों से सैलानी जमकर आ रहे हैं और सब ठीक है। वह बोले भले ही नहीं, लेकिन वे भी जानते हैं कि सब ठीक नहीं है और अगर जल्द ही इस जख्म पर मलहम नहीं लगा तो यह ट्रूली एशिया की इमेज को घाव लग सकता है।

अंग्रेज जिम्मेदार
30 Nov 2007


नई दिल्ली : मलयेशिया में सरकार और वहां बसे हिंदुओं के बीच टकराव का मामला अंग्रेजों की 150 वर्ष पुरानी नाइंसाफी से जुड़ा हुआ है। मलयेशियाई हिंदुओं ने इस भेदभाव के मुआवजे के रूप में ब्रिटेन की सरकार से 40 अरब डॉलर मुआवजे की मांग की है। गौरतलब है कि 19 वीं शताब्दी के आखिर में अंग्रेज भारत से इन हिंदुओं को खेती कराने के लिए मलयेशिया ले गए थे। जहां धीरे-धीरे हिंदुओं ने अपनी जड़ें जमा लीं। अंग्रेजों के जाने के बाद मलयेशिया इस्लामी राष्ट्र बन गया और उनकी हालत खराब होती गई। मलयेशिया की आबादी लगभग 2.8 करोड़ हैं जिसमें लगभग 8 प्रतिशत भारतीय हिंदू हैं। मलयेशिया में इन हिंदुओं ने अपनी मांगों के समर्थन में क्वालालंपुर में ब्रिटिश उच्चायोग के सामने 25 नवंबर को रैली निकाली थी, जिसे वहां की सरकार ने अवैध घोषित कर दिया था। इस सिलसिले में काफी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें वहां के प्रमुख भारतीय पी उथाया कुमार, पी. वयाथा मूर्ति और वी. गणपति राव अभी भी जेल में हैं।
पूर्व राजदूत तथा विदेशी मामलों के जानकार हरि किशोर सिंह ने बताया कि मलयेशिया के हिंदू इसके लिए अंग्रेजों को दोषी ठहराते हैं जिनके कारण उन्हें गरीबी के अंधेरे में धकेल दिया गया। इस बारे में हिंदुओं ने हिंदू राइट्स एक्शन फोर्स का गठन कर अगस्त में लंदन की एक अदालत में याचिका दायर कर 40 अरब डॉलर के मुआवजे की मांग की है।

हरि किशोर सिंह ने बताया कि मलयेशिया का समाज पहले बहुत उदार था लेकिन समय के साथ मुस्लिम कट्टरपंथियों ने वहां भी अपनी जड़ें जमा ली हैं। वहां के हिंदुओं विशेषकर तमिलनाडु के चेट्टियारों का व्यापार और अन्य क्षेत्रों में वर्चस्व रहा है। मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इसका विरोध करना शुरू किया जिससे यह हालात पैदा हो गए। विदेशी मामलों के विशेषज्ञ कलीम बहादुर ने बताया कि मलयेशिया में हिंदू अपनी स्थिति के लिए अंग्रेजों को दोषी ठहरा रहे हैं जो उन्हें गुलाम बना कर यहां लाए। इसी कारण आज उन्हें गरीबी में रहना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार का रुख इस मुद्दे पर ठीक है और हमें भी इसे हिंदू और मुस्लिम का सवाल न मानकर एक भारतीय के रूप में देखना चाहिए। विदेशी मामलों के विशेषज्ञ और एक पूर्व राजदूत ने बताया कि अंग्रेजों के जाने के बाद 1957 में मलयेशिया का संविधान तैयार किया गया था। संविधान गठन के समय यह कहा गया कि मलयेशिया के मूल निवासियों को उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए विशेष मदद और समर्थन की जरूरत है। उन्होंने बताया कि संविधान में इसी बात को ध्यान में रख कर कुछ प्रावधान किए गए जिसके बाद भारतीयों और चीन के लोगों की स्थिति दोयम दर्जे की हो गई। अब मलयेशिया में 50 वर्ष पुराने सामाजिक सह-अस्तित्व का ताना-बाना बिखर कर रह गया है। सभी विशेषज्ञों ने एक स्वर में इस मामले को अनौपचारिक रूप से आसियान स्तर पर उठाने के साथ सीधे मलयेशिया की सरकार से बातचीत करने का सुझाव दिया है। दूसरी ओर मलयेशिया के प्रधानमंत्री अब्दुल्ला अहमद बदावी ने इसे गैर-जरूरी करार देते हुए कहा है कि यह देश को अस्थिर करने का प्रयास है और इसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

सरकार चिंतित : मनमोहन
30 Nov 2007


नई दिल्ली : मलयेशिया में भारतीय समुदाय के लोगों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार पर कदम उठाने के लिए लगातार बढ़ते दबाव के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नपे - तुले शब्दों में टिप्पणी करते हुए वहां के घटनाक्रम पर चिंता जताई है। जबकि विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने संसद में कहा कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम . करुणानिधि पर मलयेशिया के मंत्री की टिप्पणी का मामला वह मलयेशिया के सामने उठाएंगे। करुणानिधि ने पूर्व एशियाई देश में भारतीय मूल के लोगों पर पुलिस कार्रवाई पर प्रतिक्रिया जताई थी। मनमोहन सिंह ने कहा कि दुनिया में जब भी भारतीय नागरिक या भारतीय मूल के लोग परेशानी में आते हैं तो सरकार को चिंता होती है। मलयेशिया मुद्दे पर सवालों के जवाब में प्रधानमंत्री ने संवाददाताओं से कहा , ' यह हमारे लिए चिंता की बात है। जब कभी भारतीय समस्या में होते हैं यह हमारे लिए चिंता का विषय होता है। ' बहरहाल उन्होंने इस संबंध में आगे कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि संसद सत्र जारी है। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी इस मामले में संसद में जवाब देंगे।

बदावी नाराज
02 दिसम्बर 2007


सिंगापुर- मलेशिया के प्रधानमंत्री अब्दुल्लाह अहमद बदावी ने देश के भारतवंशी हिंदू नेताओं द्वारा दिए गए 'नस्लीय भेदभाव' संबंधी बयानों पर नाराजगी जताई है।
गत रविवार को मलेशिया में रह रहे भारतीय मूल के लोगों ने कि हिन्दू राइट्स एक्शन फोर्स कि हिन्डफि' के झंडे तले एक विशाल रैली का आयोजन किया था। लेशिया में रह रहे इन भारतीय मूल के लोगों ने देश में उन्हें बराबरी का दर्जा दिए जाने की माँग को लेकर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था।
मलेशिया की 2.6 अरब की आबादी में विविध नस्ल एवं धर्मो के लोग रहते है। देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री बदावी ने 'हिन्डफि' के बयानों पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि हिंदू अधिकारों वाले संगठनों ने मलेशियाई सरकार पर भेदभाव संबंधी झूठे आरोप लगाए है।
मलेशिया की राष्ट्रीय समाचार ऐजेंसी बरनामा के अनुसार बदावी ने कहा कि मैं वास्तव में इन बयानों से काफी नाराज हूँ, क्योंकि ये सरासर झूठ हैं और इस प्रकार के बयानों और आरोपों को बरदाश्त नहीं किया जाएगा।विभिन्न मीडिया रिपोर्टो के मुताविक राजधानी कुआलालम्पुर में हुई इस विरोध रैली में पाँच से बीस हजार भारतीय मूल के लोगों ने हिस्सा लिया था। उनका आरोप था कि देश के तेज विकास की दौड़ में उन्हें पीछे और अलग-थलग रखा गया है।

एलटीटीई से सांठगांठ?
शुक्रवार, 07 दिसंबर, 2007 ( बीबीसी )


मलेशियाई अधिकारियों ने कथित भेदभाव के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले भारतीय मूल के लोगों पर एलटीटीई और स्थानीय माफ़िया से मदद लेने का आरोप लगाया है. मलेशिया के अटर्नी जनरल अब्दुल गनी पटैल ने हिंड्राफ़ पर श्रीलंका के तमिल विद्रोहियों या एलटीटीई के साथ सांठगांठ रखने का आरोप लगाया है.उधर भारत ने भारतीय मूल के लोगों के साथ कथित दु‌र्व्यवहार के मामले को मलेशिया के समक्ष उठाया है. दूसरी ओर हिंदू राइट्स एक्शन फ़ोर्स (हिंड्राफ़) के बैनर तले प्रदर्शन करने वाले भारतीय मूल के लोगों का कहना है कि सरकार इस तरह के आरोप लगा कर उन्हें आंतरिक सुरक्षा क़ानून के तहत जेल भेजना चाहती है.मलेशिया के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस मूसा हसन ने कहा है कि हाल में हुई जाँच से पता चलता है कि 'हिंड्राफ़ चरमपंथी संगठनों से मदद पाने के लिए सक्रिय रहा है.' उनका कहना था, "वे भारत, ब्रिटेन, अमरीका, संयुक्त राष्ट्र और यूरोप से भी अंतरराष्ट्रीय मदद पाने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं." उन्होंने हिंड्राफ़ पर मलेशिया में रहने वाले भारतीयों की स्थिति को तोड़ मरोड़ कर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के समक्ष पेश करने का आरोप लगाया.

भारत की प्रतिक्रिया


भारतीय विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि भारतीय मूल के लोगों के साथ कथित दु‌र्व्यवहार के मामले को मलेशिया के समक्ष उठाया गया है. मुखर्जी ने शुक्रवार को कहा कि भारत के लोगों के चरमपंथी गुट से ताल्लुक संबंधी मलेशिया सरकार के एक अधिकारी की टिप्पणी से जुड़े दस्तावेज़ उन्होंने नहीं देखे हैं. उन्होंने कहा कि जिस किसी भी देश का नागरिक चरमपंथी गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है, उससे क़ानून के मुताबिक निपटा जाना चाहिए.विदेश मंत्री ने कहा कि चरमपंथी की पहचान उसकी राष्ट्रीयता और उसके देश के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए. भारतीय मूल के लोगों ने नौकरियों और रोज़गार के अन्य अवसरों में भेदभाव का आरोप लगाते हुए 25 नवंबर को पहली बार बड़ी रैली निकाली थी जिसे सख़्ती से दबा दिया गया और कई लोगों को गिरफ़्तार कर मुक़दमे दर्ज किए गए. मलेशिया की दो करोड़ 70 लाख की आबादी में भारतीय मूल के लोगों की संख्या लगभग आठ प्रतिशत है.

भारतीय मूल के लोगों पर आरोप

मलेशिया में सरकार विरोधी प्रदर्शन करनेवाले 26 भारतीय मूल के लोगों के ख़िलाफ़ एक पुलिसकर्मी की हत्या की कोशिश का मामला दर्ज किया गया है हालांकि इन लोगों ने इस मामले में शामिल होने से इनकार किया है.बचाव पक्ष के वकीलों का कहना है कि अपराध साबित होने पर इन लोगों को 20 वर्ष की क़ैद हो सकती है.दरअसल मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में 25 नवंबर को प्रदर्शन के दौरान एक पुलिसकर्मी को चोटें आईं थीं.ख़बरों के अनुसार प्रदर्शनकारियों ने उस पर लोहे के पाइप और ईंटें फेंकीं थीं.दूसरी ओर भारतीय विदेश मंत्रालय ने सोमवार को भारत में मलेशिया के कार्यवाहक उच्चायुक्त को तलब किया और उन्हें भारत की चिंता से अवगत कराया है.भारतीय विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने पत्रकारों से बातचीत में कहा,'' भारत में इस मामले को लेकर चिंता का स्तर आपने देखा है... हमने मलेशियाई अधिकारियों को भारतीय चिंता से अवगत करा दिया है.''विदेश सचिव का कहना था,'' हमें आश्वासन दिया गया है कि वो इस मामले में जो कर सकते हैं, करेंगे और इसे वो अंदरूनी मामला मानते हैं.''ग़ौरतलब है कि भारतीय मूल के लोगों के साथ हो रहे कथित बुरे बर्ताव का मुद्दा भारतीय संसद में भी उठा था.

भेदभाव का आरोप

मलेशिया में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों का कहना है कि मलेशिया सरकार देश के हिंदू समुदाय के साथ भेदभाव करती है और उसे विकास के अवसरों से वंचित रखा जाता है.इस 'भेदभाव' के ख़िलाफ़ राजधानी कुआलालम्पुर में हिंदू समुदाय के लोगों ने एक प्रदर्शन किया था जिसमें भारतीय मूल के हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया था.मलेशिया की पुलिस ने रैली की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. पुलिस का कहना था कि ऐसी रैली से देश में सामुदायिक वैमनस्य को बढ़ावा मिलता.ये पहला मौक़ा है जब मलेशिया के भारतीय मूल के लोगों ने सरकार के ख़िलाफ़ इतना बड़ा अभियान छेड़ा है. रैली का आयोजन हिंदू राइट्स एक्शन फ़ोर्स नाम के एक संगठन ने किया था.इस संगठन के नेता उदय कुमार ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि भारतीय मूल के आठ फ़ीसदी को लोगों को किनारे करने की कोशिश की जा रही है.विभिन्न आरोपों के संबंध में उनका कहना था कि इसको लेकर भारतीय मूल के लोगों में रोष है और ये 'नस्लवाद' से प्रेरित है.

हिंदुओं को चेतावनी
8 Dec 2007,


क्वालालंपुर : मलयेशिया के प्रधानमंत्री अब्दुल्ला अहमद बदावी ने हिंदुओं को चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ कोई काम किया तो उन्हें आंतरिक सुरक्षा कानून (आईएसए) के तहत गिरफ्तार कर लिया जाएगा। पीएम ने पुलिस को हिंदुओं की गतिविधियों पर नजर रखने के आदेश भी दिए हैं। इस कानून के तहत किसी व्यक्ति को बिना ट्रायल के कई सालों तक हिरासत में रखा जा सकता है। इस बीच, प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री मोहम्मद नजरी अजीज ने कहा कि मलयेशियाई सरकार के पास जानकारी है कि हिंदू राइट्स एक्शन फोर्स (हिंदरैफ) के संबंध श्रीलंकाई लिट्टे और भारतीय संगठन आरएसएस से हैं, जो मिलिटेंट ऑर्गनाइजेशन है। स्टार अखबार से अजीज ने कहा कि यह जानकारी खुद हिंदरैफ नेताओं के बयानों से मिली है, जिन्होंने कहा था कि वे समर्थन हासिल करने के लिए विदेश जाएंगे और लिट्टे के नेताओं से मुलाकात करेंगे। उन्होंने कहा कि लिट्टे को संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं। इसलिए उससे रिश्ते रखने वाला हिंदरैफ भी उग्रवादी संगठन है। हालांकि अखबार ने अजीज द्वारा आरएसएस के बारे में कही गई बातों को उजागर नहीं किया। न्यू स्ट्रेट्स टाइम्स अखबार ने प्रधानमंत्री बदावी के हवाले से कहा कि आंतरिक सुरक्षा कानून का विकल्प मेरे सामने है। सही वक्त आने पर मैं इसे लागू करने का फैसला करूंगा। उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि हिंदरैफ आतंकवादी संगठनों और स्थानीय गैंगस्टरों से समर्थन और मदद हासिल करने में जुटी हुई है। उधर, विपक्षी दल डीएपी के नेता करपाल सिंह का मानना है कि हिंदरैफ नेताओं को प्रदर्शन की वजह स्पष्ट करने का मौका दिया जाना चाहिए। सेलंगर के सुल्तान शराफुद्दीन इदरिस शाह ने कहा कि हिंदरैफ समर्थकों ने महारानी एलिजाबेथ सेकंड की तस्वीर लेकर प्रदर्शन किया, इससे मैं नाखुश हूं। वे महारानी की तस्वीर दिखाते हुए उन्हें दखल देने की मांग क्यों कर रहे थे?

पीएम और कई अफसरों के खिलाफ पुलिस में शिकायत

क्वालालंपुर : हिंदरैफ के लिट्टे और दूसरे आतंकवादी संगठनों से रिश्ते का आरोप लगाने पर हिंदुओं के वकील ने मलयेशिया के प्रधानमंत्री बदावी और दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी है। शिकायत में अधिकारियों पर झूठे और नस्लीय भेदभाव को बढ़ावा देने वाले बयान देने का आरोप लगाया गया है। हिंदरैफ के संस्थापक सदस्य पी. उत्तयकुमार ने कहा कि मैं अपनी जिंदगी में कभी लिट्टे से नहीं मिला। आतंकवाद से हमारा कोई रिश्ता नहीं है। हम हिंसा में विश्वास नहीं करते। सरकार हमें बेवजह जेलों में ठूंसने के लिए यह आरोप लगा रही है। पुलिस कंप्लेंट में बदावी के अलावा अटॉर्नी जनरल गनी पटेल, आईजी मूसा हसन और कानून मंत्री नजरी का भी नाम है।

मलयेशिया में हिंदुओं की कंपनी का लाइसेंस रद्द
8 Dec 2007


क्वालालंपुर: अपनी मांगों के लिए आवाज उठाने की गाज हिंदुओं पर गिरनी शुरू हो गई है। मलयेशियाई अधिकारियों ने हिंदुओं के संगठन हिंदरैफ की एक कंपनी का लाइसेंस रद्द कर दिया है। घरेलू व्यापार और उपभोक्ता मामलों के मंत्री शफी अपदल ने बताया कि मलयेशिया के कंपनी आयोग ने स्यारीकत हिंदरैफ इंटरप्राइजेज के खिलाफ यह कदम इसलिए उठाया कि वह हिंदरैफ से जुड़ी थी और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गई थी। वह ऐसे काम भी कर रही थी, जिससे उसका कोई लेना-देना नहीं है। हिंदरैफ के संस्थापकों में से एक पी. उत्तयकुमार ने कहा कि कंपनी रजिस्ट्रार ने इस सप्ताह के शुरू में हमसे संगठन के बैंक खातों की जानकारी मांगी थी। इसके बाद हिंदरैफ पर लोगों से दान इकट्ठा करने के लिए 50 हजार रिंगेट (करीब 5.9 लाख रुपये) का जुर्माना लगा दिया गया। हिंदरैफ यहां रहने वाले गरीब भारतीयों से अब तक 1 लाख 70 हजार रिंगेट इकट्ठा कर चुकी है।

हिन्दू नेता पर देशद्रोह का मामला
11 दिसम्बर 2007 (वार्ता)


सिंगापुर। मलेशिया में हिन्दू राइट एक्शन फोर्स (हिन्ड्राफ) के वकील पी उदयकुमार के खिलाफ आज कुआलालंपुर की सत्र अदालत ने देशद्रोह का आरोप तय कर दिया।कुआलालंपुर की सत्र अदालत ने श्री उदयकुमार पर लगाये गये आरोपों पर सुनवाई की और फिर उन्हें पचास हजार रिंगिट के मुचलके पर जमानत दे दी। अदालत ने श्री उदयकुमार का पासपोर्ट भी जब्त करने का आदेश दिया और मामले की अगली तारीख सात जनवरी मुकर्रर की।श्री उदयकुमार ने 15 नवंबर को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को संबोधित एक पत्र लिखा था। मलेशिया सरकार इस पत्र को गैर कानूनी और देशद्रोह की श्रेणी में रख रही है। इस पत्र में “हिन्ड्राफ” ने कहा था कि ब्रिटेन मलेशियाई हिन्दुओं के उत्पीड़न के मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठायें।
श्री उदयकुमार के खिलाफ देशद्रोह कानून.।948 की धारा 4 ए के तहत मामला दर्ज किया गया है।हिन्ड्राफ् ने ब्रिटेन की एक अदालत में भी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुआवजे की मांग को लेकर एक याचिका दायर की है।
मलेशिया पुलिस ने हिंदू मानवाधिकार कार्यकर्ता पी. उदयकुमार को आज सुबह गिरफ्तार किया था। उदय कुमार ने पिछले हफ्ते कुआलांलपुर में दस हजार हिन्दू मलेशियाई नागरिकों की विरोध रैली में सक्रिय भूमिका निभाई थी।उदयकुमार ने अपनी किताब में कुछ ऐसी बातें कहीं हैं, जो मलेशिया सरकार के गले नहीं उतर रही हैं। उधर पुलिस ने कुआलालंपुर में कई जगह अवरोधक लगाए हैं ताकि राजनैतिक प्रदर्शनकारियों को रोका जा सके।
प्रदर्शनकारी देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए जाने की मांग कर रहे है। पुलिस संसद भवन की ओर जाने वाले सभी मार्गों की चेकिंग कर रही है। पुलिस ने पूर्व उपप्रधानमंत्री एवं विपक्षी नेता अनवर इब्राहिम तथा विपक्ष के करीब 12 नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया था। हालांकि बाद में इब्राहिम को पूछताछ के बाद रिहा कर दिया गया था।आव्रजन अधिकारियों ने इब्राहिम को कुआलालंपुर के मुख्य हवाईअड्डे पर उस समय गिरफ्तार किया था, जब वे तुर्की से स्वदेश लौट रहे थे। इब्राहिम के वकील विलियम लियोंग ने बताया कि यह मामला सीधे तौर पर उत्पीड़न का है।उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी यूनाईटेड मलय नेशनल ऑर्गेनाईजेशन (यूएमएनओ) में व्याप्त भ्रष्टाचार और न्यायपालिका को लेकर जनता में बढ़ते आक्रोश से ध्यान हटाने के लिए ऐसे कदम उठा रही है।इब्राहिम ने बताया कि आव्रजन अधिकारियों ने उन्हें बताया कि उनका नाम संदिग्ध व्यक्तियों की सूची में है इसलिए उन्हें हवाई अड्डे पर हिरासत में लिया गया है। न्होंने बताया कि हालांकि हिरासत में लिए जाने के बाद उन्हें जाने की अनुमति दे दी गई, लेकिन उनका नाम अब भी संदिग्ध व्यक्तियों की सूची में है।इब्राहिम के वकील ने बताया कि सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है कि पूर्व उपप्रधानमंत्री का नाम संदिग्ध व्यक्तियों की सूची में क्यों है।

1 comment:

36solutions said...

कमाल है मान्धाता जी यह सब हमें विस्‍तार से नहीं मालूम था । आपकी पत्रकारिता की छबि बेहतर झलक रही है इस चिंतन में । धन्‍यवाद ।

मॉं : एक कविता श्रद्वांजली

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