Thursday, 21 June 2007

'सेक्स ट्वाय' : कंडोम का नया अवतार



मध्य प्रदेश में कंडोम के एक नए पैकेट ने विवाद पैदा कर दिया है. इस पैकेट में कंडोम के साथ कंपनी उत्तेजना पैदा करने वाला 'उपकरण' मुफ्त में दे रही है. यह 'उपकरण' दरअसल एक 'वाइब्रेटिंग रिंग' यानी कंपन पैदा करने वाला छल्ला है.विवाद है कि क्या इसे 'सेक्स ट्वाय' माना जाना चाहिए?दरअसल, भारत में 'सेक्स टॉय' की बिक्री प्रतिबंधित है और इसे बेचने के लिए दो साल तक की सज़ा और दो हज़ार रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है. मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने कथित 'सेक्स ट्वाय' बेचे जाने की शिकायतों की जाँच कर रही है.लेकिन ऐसे उपभोक्ता भी हैं जो इससे ख़ुश हैं और मानते हैं कि इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए. दिलचस्प तथ्य यह है कि यह उत्पाद बेचने वाली कंपनी हिन्दुस्तान लेटेक्स लिमिटेड कोई बहुराष्ट्रीय या निजी कंपनी नहीं बल्कि भारत सरकार की एक कंपनी है.


विवाद

इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब हिंदुस्तान लेटेक्स लिमिटेड के 'क्रेज़ेंडो' ब्रांड के कंडोम के पैक कुछ लोगों के हाथ लगे. एक सौ पच्चीस रुपये के इस कंडोम के पैक के साथ कंपनी उत्तेजना पैदा करने वाला एक यंत्र मुफ़्त दे रही है. यही बात कुछ लोगों को नागवार ग़ुज़री. इसका विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि यह भारतीय संस्कृति के ख़िलाफ़ है. बजरंग दल के ज़िला संयोजक देवेंद्र रावत कहते हैं, "इस तरह की चीज़ें भारतीय संस्कृति को बिगाड़ती हैं, इस पर तो न सिर्फ़ मध्य प्रदेश में बल्कि पूरे देश में रोक लगानी चाहिए."जब यह सवाल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने उठाया गया तो उन्होंने पत्रकारों से कहा, "अगर हमें कुछ भी ग़लत लगा तो हम इस पर कार्रवाई करेंगे. भारतीय संस्कति के ख़िलाफ कुछ भी बर्दाशत नही किया जाएगा. राज्य के लोक निर्माण मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने इसके ख़िलाफ़ राज्य सरकार को एक चिट्ठी भी लिखी है. उनका कहना है कि उन्हें ख़बर मिली है कि छात्र हॉस्टल में इसका प्रयोग कर रहे हैं और लगता है कि कंडोम के बहाने से 'सेक्स ट्वाय' बेचा जा रहा है.उन्होंने कहा, " मुख्यमंत्री ने समुचित कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है. इसे प्रदेश में किसी भी तरह से नही बेचने दिया जाएगा." मगर कई लोग ऐसे भी हैं जिनहें ये उत्पाद काफ़ी भा रहा है. ऐसे ही एक उपभोक्ता हैं कुणाल सिंह उनका कहना है, "इसका विरोध करना ग़लत है, जिसका दिल चाहे वो इस्तेमाल करे. जिसे अच्छा नहीं लगता है वो इसका इस्तेमाल न करे."शहर में मेडिकल स्टोर चलाने वाले रवि भगनानी का कहना है कि इसको बेचने पर प्रतिबंध लगाना ग़लत होगा. वो कहते है कि उनके पास आने वाले लोग उनसे कुछ नया माँगते है और यह कंडोम पैकेट कुछ नया तो देता ही है. वहीं कुछ लोग मानते हैं कि सरकार बेवजह की बातों में जनता को उलझाए रखना चाहती है. अंसार सिद्दीक़ी कहते हैं, "अगर ये बिकता भी है तो इससे जनता को क्या फ़ायदा या नुकसान है?″वो कहते है कि ये इंसान की निजी ज़िंदगी में दख़ल है. उनका मानना है कि लोग इंटरनेट के ज़रिए भी इसको ख़रीद सकते है, इसलिये अगर राज्य में इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगता भी है तो वो बेमानी होगा.


'सेक्स ट्वाय'


इस कंडोम पैकेट के साथ एक रिंग या छल्ला दिया जा रहा है. इस रिंग के साथ एक बैटरी लगी हुई है. इसे लिंग पर चढ़ाया जा सकता है और इसे चालू करते ही इसमें कंपन शुरु हो जाता है. कंपनी का कहना है कि इसका उपयोग कंडोम के साथ करने की सलाह की दी जाती है. कंपनी का दावा है कि ये इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को लगभग बीस मिनट तक आनंद का अनुभव कराएगा.जानकारी के मुताबिक ये यंत्र चीन में बना हुआ है.क़ानून के मुताबिक़ भारत में 'सेक्स-ट्वाय' बेचने पर प्रतिबंध है. हालांकि इसमें 'सेक्स-ट्वाय' का ज़िक्र नहीं है लेकिन कहा गया है कि ऐसी कोई भी सामग्री जो समाज में अश्लीलता फ़ैलाए उसे बेचना क़ानूनन अपराध है.भोपाल के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक जीके पाठक का कहना है कि भारतीय दंड विधान की धारा 292 के तहत ऐसा कोई सामान बेचने के लिए दो साल तक की सज़ा और दो हज़ार तक का ज़ुर्माना हो सकता है. हालांकि उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की कि कंडोम के साथ बेची जा रही रिंग 'सेक्स-ट्वाय' है या नहीं.


'सेक्स ट्वाय नहीं'


हिंदुस्तान लेटेक्स लिमिटेड ने बीबीसी से कहा है कि उनका उद्देश्य 'क्रेज़ेंडो' के साथ दिए जा रहे रिंग को 'सेक्स-ट्वाय' की तरह बेचना नहीं है. कंपनी ने कहा है कि यह कोई प्रतिबंधित उपकरण नहीं है और मार्च 2007 में जब कंपनी ने अपना उत्पाद बाज़ार में उतारा उससे पहले ही यह बाज़ार में था.हिंदुस्तान लेटेक्स लिमिटेड का कहना है कि इस उत्पाद को लेकर अब तक कोई शिकायत नहीं मिली है. बीबीसी को भेजे गए अपने बयान में कंपनी ने कहा है, "यह शिकायत आम रही है कि लोगों को कंडोम के साथ यौन संबंध बनाकर संतुष्टि नहीं मिलती इसलिए कंपनी ने यह रिंग साथ में देने की योजना बनाई है ताकि कंडोम के साथ इसके उपयोग से आनंद में वृद्धि की जा सके.


"वापस लेने को तैयार


वाइब्रेटर' कंडोम 'क्रेजेंडो' को लेकर मध्य प्रदेश में हो रहे विरोधों के मद्देनजर हिन्दुस्तान लेटेक्स लिमिटेड (एचएलएल) इसे वहां के मार्केट्स से वापस लेने को तैयार है। कंपनी ने कहा है कि अगर मध्य प्रदेश सरकार क्रेजेंडो की बिक्री का विरोध करती है, तो हमें इसे वहां के मार्केट्स से वापस लेने में कोई गुरेज नहीं है। हालांकि एचएलएल देश के दूसरे भागों में इसकी ब्रिकी जारी रखने की बात कही है। कंपनी के एक अधिकारी ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि मध्य प्रदेश सरकार क्रेजेंडो की बिक्री पर रोक लगा सकती है। ऐसी दशा में कंपनी को इसे वहां के मार्केट्स से वापस में कोई एतराज नहीं है। उन्होंने बताया कि देश के अन्य भागों में इस प्रॉडक्ट को लोग हाथोंहाथ ले रहे हैं और उन्हें इससे कोई शिकायत नहीं है। यही वजह है कि पूरे देश के बाजारों से इसकी वापसी का सवाल ही पैदा नहीं होता है। उन्होंने यह भी कहा कि क्रेजेंडो को सेक्सी टॉय के रूप में बेंचने का कंपनी का कोई इरादा नहीं है और ना ही हम इसकी मार्केटिंग सेक्सी टॉय के रूप में कर रहे हैं। गौरतलब है कि क्रेजेंडो ब्रांड नाम से मध्य प्रदेश के बाजारों में वाइब्रेटिंग रिंग के साथ पेश किए गए इस कंडोम से राज्य में विवाद पैदा हो गया है। इसके चलते सरकार क्रेजेंडो पर बैन लगाने की सोच रही है। बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध बैटरी से चलने वाला यह कंडोम तीन के सेट में 125 रुपये की कीमत का है। मध्य प्रदेश सरकार इस बात का पता लगा रही है कि कहीं यह सेक्स टॉय तो नहीं है। हालांकि दवा विक्रताओं के मुताबिक यह भारत का पहला कानूनी रूप से वैध सेक्स टॉय है। कंपनी का कहना है कि क्रेजेंडो के जरिए उन लोगों की मदद का प्रयास किया गया है जिन्हें सही तरीके से सेक्स एक्साइमेंट नहीं होने की शिकायत है। वाइब्रेटिंग रिंग की विशेषता के साथ क्रेजेंडो नामक कंडोम को मध्य प्रदेश के मार्केट्स में करीब 6 महीने पहले लाया गया था।


कंडोम बार


चंडीगढ़ में एक नाइट क्लब खुला है जहाँ ग्राहकों को कंडोम दिया जा रहा है. इसके संचालकों का कहना है कि यह भारत का पहला 'कंडोम बार' है. सबसे दिलचस्प बात ये है कि इस बार के पीछे चंडीगढ़ इंडस्ट्रियल एंड टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (सिटको) है. सिटको के अधिकारियों का कहना है कि उन्हें इस परियोजना से जुड़कर गर्व महसूस हो रहा है क्योंकि यह एड्स की रोकथाम की दिशा में काम करेगा. सिटको के प्रमुख जसबीर सिंह बीर ने कहा, "कंडोम को दोस्त के रूप में देखा जाना चाहिए न कि शर्मिंदगी की चीज़ के रूप में."वे कहते हैं, "इससे एड्स को रोकने में मदद मिलेगी ही, साथ ही लोग उस मुद्दे पर भी खुलकर बात करेंगे जो जल्द ही देश की सबसे बड़ी समस्या बन सकता है."उनका कहना है कि इसके पीछे गंभीर मक़सद है कि युवाओं को एचआईवी संक्रमण और एड्स के प्रति जागरुक बनाना है. सिटको ने इस बार को बढ़ावा देने के लिए कई आयोजनों की तैयारी की है जिनमें एचआईवी से पीड़ित पुरूषों और महिलाओं के लिए विशेष प्रतियोगिताएँ शामिल हैं.चंडीगढ़ के कलाग्राम में स्थित इस बार के अंदर भी कंडोम के रंग-बिरंगे पैकेटों से सजावट की गई है. यहाँ शराब विशेष तौर पर डिज़ाइन किए गए गिलासों में परोसी जाती है जिन पर कंडोम का लोगो बना है, इसी तरह वेटरों की पोशाक और टोपी भी कंडोम की तस्वीर बनी है. टेबल पर रखे मैटों पर सुरक्षित सेक्स को बढ़ावा देने के लिए संदेश लिखे गए हैं. बिल चुकता करने के बाद ग्राहकों को खुदरा पैसे की जगह कंडोम या कंडोम की तस्वीर वाली टोपी, टी-शर्ट जैसी चीज़ें दी जाती हैं जिनसे कंडोम का प्रचार हो.


भारत में कंडोम ज़रूरत से ज़्यादा बड़े


भारत में कराए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि ज़्यादातर पुरुष ये मानते हैं कि बाज़ार में मिलने वाले कंडोम उनकी ज़रूरत से ज़्यादा बड़े है. ये सर्वेक्षण भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कराया है. भारतीय पुरुषों के लिए छोटे कंडोम उपलब्ध कराने की मांग के बाद ही ये अध्ययन कराया गया था.पिछले दो वर्षों से भारत के वैज्ञानिक समुदाय का एक वर्ग एक बेहद मुश्किल काम में जुटा था. ये काम ना तो विज्ञान के क्षेत्र में किसी नई खोज से जुड़ा था और ना ही अंतरिक्ष में नई ग्रह की तलाश से. असल में ये एक सावधानी भरा काम था जिसका उद्देश्य लोगों के लिंग का नाप लेना था.थोड़ा झिझकते थोड़ा शर्माते हुए और लोगों से नज़र बचाते हुए देशभर से क़रीब 1200 लोग अपनी इच्छा से तैयार हो गए ताकि लिंग का नाप लेने के काम में वैज्ञानिको की मदद ले सकें. पूरी प्रक्रिया में इतनी सावधानी बरती गई कि इंच का छोड़िए मिलीमीटर तक का हिसाब रखा गया. शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने इस बात का ध्यान रखा कि जिन लोगो के लिंग का नाप लिया गया वो देश के हर हिस्से, हर वर्ग और धर्म का प्रतिनिधित्व करते थे.


अध्ययन


हिम्मत जुटा कर तैयार हुए लोगों के लिए इस शोध के नतीजे मायूसी भरे रहे. क्योंकि लोगों को ये जानकर निराशा हुई कि उनके लिंग का आकार अंतरराष्ट्रीय मापदंड पर 3 से 5 सेमी छोटा है. इन अंतरराष्ट्रीय मापदंड का इस्तेमाल कंडोम बनाने में किया जाता है. यानी शोध के अनुसार भारतीयों के लिए उपलब्ध कंडोम उनकी ज़रूरत से थोड़े बड़े है.इस मामले के विशेषज्ञ डॉक्टर चंदर पुरी भी इस बात से सहमत हैं कि भारतीयों की ज़रूरत के अनुरूप ही कंडोम बनाए जाने चाहिए ताकि उन्हें आराम रहें. डॉक्टर पुरी के अनुसार अपेक्षाकृत बड़े कंडोम होने से लोग यौन संबंध का पूरी तरह आनंद नही उठा पाते. साथ ही यौन क्रिया के दौरान कंडोम फटने का भी ख़तरा रहता है. स्थिति कभी कभी विकट भी हो सकती है क्योंकि एचआईवी वायरस से संक्रमित होने का ख़तरा भी बना सकता है. माना जाता है कि भारत में लोग किसी मेडिकल स्टोर पर जा कर आत्मविश्वास के साथ छोटे आकार का कंडोम मांगने में थोड़ा घबराते हैं.इस समस्या से निपटने के लिए डॉक्टर पुरी का सुझाव है कि देशभर में वेंडिग मशीन लगानी चाहिए ताकि लोग अपनी पसंद का कंडोम ले सकें. लेकिन कुछ लोग इससे सहमत नहीं. पुरूषों की पत्रिका मैक्सिम के भारतीय संस्करण के पूर्व संपादक सुनील मेहरा इस मामले में दिलचस्प राय रखते है. उनका कहना है कि ये महत्वपूर्ण नहीं कि आकार कितना बड़ा है बल्कि अहम बात ये है कि आप उसे इस्तेमाल में कैसे लाते है.सुनील मेहरा की बात पर यक़ीन करें तो भारतीयो ने अभी तक इस क्षेत्र में संतोषजनक प्रदर्शन किया है. अंत में प्रसिद्ध कवि एलेक्जेंडर पोप से माफ़ी माँगते हुए वो यही कहते हैं कि आकार बड़ा है या छोटा इंच में है या सेंटीमीटर में ऐसी बातों में ख़ुशी मूर्ख लोग ही ढूँढते है.


यौनकर्मियों को कंडोम


हॉलीवुड स्टार रिचर्ड गियर और बॉलीवुड अभिनेत्री बिपाशा बसु ने यौनकर्मियों से अपील की है कि वे अपने ग्राहकों पर कंडोम का इस्तेमाल करने का दबाव डालें. फ़िल्म जगत की दोनों हस्तियाँ एड्स विरोधी अभियान के तहत मुंबई की यौनकर्मियों से रू-ब-रू हुए.एड्स के ख़िलाफ़ विश्वव्यापी मुहिम का हिस्सा बने गियर ने इस जानलेवा बीमारी से बचने के लिए यौनकर्मियों को 'कंडोम नहीं तो सेक्स नहीं' का नारा दिया. उन्होंने मुंबई और निकटवर्ती शहर थाणे से आए लगभग 15 हज़ार यौनकर्मियों से इस नारे को दोहराने का आह्वान किया.गियर और बसु ने एचाईवी संक्रमण के बारे में जागरूकता फैलाने वालों को सम्मानित किया. इस अवसर पर बसु ने डांस के साथ गाने भी गाए. गियर ने चार साल पहले 'हीरोज प्रोजेक्ट' की शुरुआत की थी जिसका मक़सद आम भारतीयों को एचआईवी से बचाव के बारे में शिक्षित करना है.गियर ने इस मौके पर समचार एजेंसी एपी से कहा, "पहले यौनकर्मियों में एचआईवी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. अब स्थिति काफी बदल चुकी है. जब यौनकर्मी कंडोम को संबंध बनाने की बुनियादी ज़रूरत बताते हैं तो यह एक सशक्त बयान होता है." संयुक्त राष्ट्र के आकलन के मुताबिक भारत में लगभग 57 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित हैं जो किसी एक देश में सबसे बड़ी संख्या है.


कोलकाता का सोनागाछी


कोलकाता के रेडलाइट इलाक़े सोनागाछी में वेश्याओं के हितों की लड़ाई लड़ने वाली संस्था 'दुर्बार महिला समन्वय समिति' ने एशिया में वेश्याओं के इस सबसे बड़े घर में एचआईवी और एड्स जैसी जानलेवा बीमारियों का प्रसार रोकने के लिए कुछ ख़ास लोगों की सहायता ली है. और ये लोग हैं इस वेश्यालय के स्थाई ग्राहक. इसके लिए स्थाई ग्राहकों का एक संगठन ‘साथी' भी बनाया गया है.‘साथी' के ये लोग अब इस वेश्यालय में जिस्म का धंधा करने वाली वेश्याओं और यहां आने वाले नए ग्राहकों को सुरक्षित सेक्स का पाठ पढ़ाते हैं. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के उत्तरी इलाके में स्थित सोनागाछी में लगभग 10 हज़ार वेश्याएँ रहती हैं. लेकिन ‘दुर्बार’ और उसके सहयोगी संगठन ‘साथी’ की कोशिश है कि यहाँ आने वाला हर कोई 'ख़तरों' से पहले से ही परिचित रहे.प्रशिक्षणवैसे, यहाँ आने वाले ज़्यादातर ग्राहक एड्स या सुरक्षित सेक्स के बारे में अनभिज्ञ हैं, लेकिन 'साथी' ने ऐसे लगभग दो सौ नियमित ग्राहकों की एक सूची बनाई है जो यहां आने वाले ग्राहकों को कंडोम के इस्तेमाल और नियमित तौर पर ख़ून की जाँच के बारे में बताते हैं.इस वेश्यालय में नियमित तौर पर आने वाले सुनील मुखर्जी कहते हैं, "हम सोनागाछी में ही अपना ज्यादातर समय बिताते हैं. इसलिए यहां आने वाले नए ग्राहकों को संक्रामक बीमारियों के प्रति आगाह करना हमारा कर्त्तव्य है."वे कहते हैं, "शरीर की भूख मिटाने के लिए यहां आने वाले ज़्यादातर लोग कंडोम का इस्तेमाल करने से मना कर देते हैं और यहीं से हमारा काम शुरू होता है." मुखर्जी व उनके दोस्त रोजाना शाम को वेश्यालय का दौरा करते हैं ताकि ग्राहकों व वेश्याओं को सुरक्षित सेक्स के तरीकों की जानकारी देकर उनको भी एड्स जागरूकता अभियान में शामिल किया जा सके.बदलती स्थितियाँमुखर्जी कहते हैं, "कुछ ग्राहक तो उनकी बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं होते. लेकिन ज़्यादातर लोग न सिर्फ़ उनकी बातों को ध्यान से सुनते हैं बल्कि सुरक्षित सेक्स के तरीक़ों की जानकारी देने वाला परचा भी ले लेते हैं." दुर्बार महिला समन्वय समिति का दावा है कि इस साल की शुरूआत में शुरू की गई इस परियोजना के तहत अब तक पाँच हजार से ज़्यादा लोगों को सुरक्षित सेक्स के तरीकों से अवगत कराया जा चुका है.समिति की परियोजना निदेशक भारती डे, जो खुद भी देह व्यापार में रह चुकी हैं, कहती हैं, "हमने इस परियोजना के तहत अब तक जितने लोगों को सलाह दी है उनमें से 80 फीसदी ग्राहक व वेश्याएँ अब कंडोम का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन अब भी इस मामले में बहुत कुछ किया जाना है."सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं, सोनागाछी आने वाले 90 फीसदी लोगों को अब तक इस बात की जानकारी नहीं है कि यौन संबंधों के ज़रिए भी एड्स हो सकता है. कार्यकर्ता कहते हैं कि यौनजनित बीमारियों की जानकारी देने से फ़ायदा हो रहा है.विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारी व राज्य के पूर्व स्वास्थ्य निदेशक प्रभाकर चटर्जी कहते हैं, "देश में एड्स के बढ़ते प्रकोप को ध्यान में रखते हुए शुरू की गई इस परियोजना के बेहतर नतीजे सामने आ रहे हैं और यही वक़्त की ज़रूरत है."सोनागाछी इलाक़े में रोज़ाना हज़ारों नए ग्राहक आते हैं.

एड्स से निपटने के एक कार्यक्रम के तहत तमिलनाडु सरकार वेश्याओं या महिला यौनकर्मियों को 60 हज़ार कंडोम बाँटा जा रहा है. ये कंडोम विशेष रुप से महिलाओं के लिए ही बनाए गए हैं. यह कार्यक्रम राज्य की एड्स नियंत्रण समिति और परिवार नियोजन ट्रस्ट मिलकर चला रहे हैं. चार महीने चलने वाले इस कार्यक्रम के तहत सात और राज्यों में भी इसी तरह की मुहिम चलाई जाएगी. इसके अंतर्गत देश भर में कोई 11 हज़ार ऐसी महिलाओं तक पहुँचने का अनुमान है जिनके एड्स ग्रसित होने की सबसे अधिक संभावना है. इस कार्यक्रम में हिंदुस्तान लेटेक्स फ़ैमिली प्लानिंग प्रमोशन ट्रस्ट सहयोग दे रहा है.



महिला कंडोम


महिला कंडोम पॉलीयूरेथीन की एक पतली झिल्ली से बनी छोटी थैली की तरह होती है जिसे महिलाएँ योनी में लगा सकती हैं. इससे गर्भधारण और यौन रोगों दोनों से बचा जा सकता है. उल्लेखनीय है कि राज्य में कुछ कंपनियों ने महिला कंडोम को बिक्री के लिए बाज़ार में पेश किया था लेकिन इसमें बहुत सफलता नहीं मिली.इसके पीछे एक बड़ा कारण इसका महंगा होना भी रहा क्योंकि कुछ कंडोमों की क़ीमत तो सौ रुपए तक भी है. जबकि पुरुषों का एक कंडोम एक रुपए में भी मिल जाता है. क़ीमत की इस समस्या से निपटने के लिए राज्य एड्स नियंत्रण समिति ने 60 हज़ार कंडोम एक लाख अस्सी हज़ार रुपए में ख़रीदे हैं. जबकि इसकी वास्तविक क़ीमत 50 रुपए प्रति नग है. राज्य में 50 हज़ार यौनकर्मियों के बीच काम करने वाली एक संस्था की प्रमुख लक्ष्मीबाई का कहना है कि महिलाओं को दिन प्रतिदिन के ख़तरों से बचाने के लिए महिला कंडोम सबसे प्रभावी उपाय है.

3 comments:

Atul Sharma said...

बहुत ही तथ्यपरक जानकारी है। धन्यवाद।

आशीष कुमार 'अंशु' said...

आपका कंड़ोम पुरान पसन्द आया

Unknown said...

सेक्स ट्वाय के उपयोग पर इतनी हाय तौबा क्यूं?
सेक्स संबंधी जानकारी ज्यादा होनी चाहिए लोगों को।
मैं स्त्री हिन्दी की पहली स्त्रियों की आन लाईन पत्रिका है जो स्त्री के शरीर और सेक्स से संबंधित जानकारी दे रही है।
www.mainstree.com

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