Monday, 25 June 2007

राष्ट्रपति भवन या राजनीतिक भवन !







राष्ट्रपति चुनाव के लिये राजनैतिक दलों की खींचतान और कुछ राजनेताओं की टिप्पणियों ने पूरे चुनाव के माहौल को न सिर्फ़ खराब किया बल्कि राष्ट्रपति भवन को राजनीतिकभवन में भी तब्दील कर दिया. यह सही है कि आकड़े प्रतिभा पाटिल के पक्ष में हैं मगर वह भी एक राजनेता ही हैं. आंकड़े पक्ष में नहीं होने से कलाम का व्यक्तित्व छोटा नहीं हो जाता. क्या यह सम्भव नहीं था कि कलाम न सही मगर उनकी जगह कोई गैरराजनैतिक व्यक्तित्व को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाता. यह परम्परा कायम रखने में आखिर बुराई ही क्या थी? दरअसल राजनैतिक दलों को अपने रबर स्टांप के उनकी राजनीतिक फितरत में साथ देने वाला व्यक्तित्व भी चाहिये. उनकी नजर में और इस लिहाज से कलाम फिट नहीं बैठे. शायद इसी लिये कलाम पर सहमति नहीं हो सकी और कलाम खुद पीछे हटे मगर शालीनता से. उन्होंने भी अपनी टिप्पणी दी मगर उन राजनेताओं की तरह नहीं जिन्होंने कलाम को रिटायर होने की सलाह दे डाली. उनकी भावनाएं भी देखिए----

जनता का राष्ट्रपति कहलाना चाहूंगा: कलाम

राष्ट्रपति एपीजे कलाम अपने पांच वर्ष के कार्यकाल को जनता के राष्ट्रपति के रूप में याद किया जाना पसंद करेगे। कलाम ने दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव नहीं लड़ने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि वह एक राजनीतिक प्रक्रिया में पक्ष नहीं बनना चाहते और राष्ट्रपति भवन की छवि नहीं खराब करना चाहते। उन्होंने लाभ के पद विधेयक को लौटाने को अपने कार्यकाल का सबसे मुश्किल फैसला माना। कलाम ने एक विशेष बातचीत में उक्त बातें कहीं। पिछले पांच साल के दौरान राजनीतिज्ञों के साथ अनुभव पूछने पर कलाम ने कहा कि पहले उनसे मेरा रिश्ता वैज्ञानिक के रूप में रहा है और उसके बाद राष्ट्र प्रमुख के रूप में। उन्होंने कहा कि भारत में राजनीतिक राजनीति और विकासात्मक राजनीति दो तरह की चीजें हैं। राजनीतिक राजनीति चुनावों से संबंधित है और वह भी महत्वपूर्ण है। विकासात्मक राजनीति देश के आर्थिक विकास से संबंधित है। कलाम ने कहा कि इसीलिए वह चाहेंगे कि कोई राजनीतिक दल सामने आकर यह कहे कि वह पांच साल में अमुक उपलब्धियां हासिल कर दिखाएगा तो दूसरा कहे कि वह ऐसा तीन साल में कर देगा। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि राजनीतिक राजनीति 30 प्रतिशत हो और 70 प्रतिशत विकासात्मक राजनीति हो। इस समय स्थिति उलट है। दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव नहीं लड़ने के उनके बयान के बारे में पूछने पर कलाम ने कहा कि वह नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति भवन को एक राजनीतिक प्रक्रिया में घसीटा जाए। जब आपकी दिलचस्पी होती है और आप राष्ट्रपति भी हो तो आपको एक उम्मीदवार के रूप में प्रचार करना होगा। उन्होंने कहा कि जब हम किसी राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं तो यह राजनीतिक प्रक्रिया नहीं होती। मैं किसी राजनीतिक प्रक्रिया का पक्ष नहीं बनना चाहता। कलाम ने कहा कि मैं राष्ट्रपति भवन का नाम नहीं बदनाम करना चाहता, जिसे मेरे कार्यकाल के दौरान जनता का भवन बना दिया गया है। कलाम का पांच साल का कार्यकाल 24 जुलाई को पूरा होने जा रहा है। राष्ट्रपति के रूप में उपलब्धियों के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति भवन में हर साल पांच से दस लाख लोग आते हैं। केवल बड़े लोग ही नहीं बल्कि आम लोग भी। मैं राष्ट्रपति भवन को राजनीतिक भवन नहीं बनाना चाहता। राष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल में सबसे मुश्किल वक्त लाभ का पद विधेयक को संसद को लौटाने को माना। उन्होंने कहा कि स्वाभाविक रूप से लाभ का पद विधेयक को लौटाने का फैसला सबसे कठिन था। संविधान के तहत राष्ट्रपति ऐसा कर सकता है, लेकिन ऐसा करने वाला मैं पहला राष्ट्रपति हूं। उन्होंने कहा कि देश में बहस भी छिड़ गई थी और संसद ने कुछ दिशानिर्देश बनाने के बारे में फैसला किया था। राष्ट्रपति ने पिछले साल मई में लाभ के पद विधेयक को वापस लौटा दिया था, जिसमें 56 पदों को विधेयक की जद से बाहर रखा गया था। कलाम ने संसद से विधेयक पर पुनर्विचार करने के लिए कहा था। साथ ही कहा कि इस विधेयक में व्यापक पात्रता तय होनी चाहिए तथा इसे उचित एवं तार्किक बनाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा था कि विधेयक को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्पष्ट एवं पारदर्शी ढंग से लागू किया जाना चाहिए। विधेयक को वापस करते हुए कलाम ने संसद के दोनों सदनों से कहा था कि वे इसे पूर्व तिथि से लागू करने पर विचार करें। उन्होंने कहा कि दूसरी सबसे मुश्किल घड़ी यह थी कि देश में जैव ईधन का उपयोग कैसे शुरू किया जाए। उन्होंने कहा कि अब सरकार पेट्रोल एवं डीजल में दस प्रतिशत जैव ईधन को मिलाने पर सहमत हो गई है। राष्ट्रपति ने उम्मीद जताई कि कार निर्माता अपने इंजनों में ऐसी तब्दीली लाएंगे कि जैव ईधन के प्रतिशत को बढ़ाया जा सके। गैर राजनीतिक व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाए जाने के सुझाव के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति एक अच्छा इंसान होना चाहिए और ऐसा होकर ही वह चाहे पुरुष हो या महिला राष्ट्रपति भवन को संपन्न बना सकेगा। कलाम ने इन सवालों को टाल दिया कि देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि राष्ट्रपति चाहे पुरुष आए या महिला वह नैसर्गिक आत्मविश्वास के साथ आएगा और राष्ट्रपति भवन को संपन्न बनाएगा। कलाम ने कहा कि पूर्व के सभी राष्ट्रपतियों को देखें तो पाएंगे कि हर एक की अलग-अलग क्षेत्रों में क्षमता थी। एक दार्शनिक था तो एक शिक्षक कोई महान राजनेता था तो कोई न्यायपालिका में महत्वपूर्ण योगदान कर चुका था। यह पूछने पर कि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने दो प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया दोनों के साथ उनके राजनीतिक समीकरण कैसे थे, कलाम ने कहा कि दोनों प्रधानमंत्रियों की अपनी-अपनी नैसर्गिक क्षमता है। एक निर्णय लेने की प्रक्रिया का महारथी था तो एक विशेषज्ञ है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी एक व्यक्ति के पास निर्णय लेने की क्षमता होती है तो दूसरे में विशेषज्ञता। दोनों का मेल बेहतरीन होगा। कलाम ने सुझाव दिया कि भारत को त्रि-आयामी रणनीति के जरिये सौर ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा तथा जैव ईधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए ऊर्जा सुरक्षा के बजाय ऊर्जा आत्मनिर्भरता का सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि सौर ऊर्जा बहुतायत में है, जबकि सौर सेल्स की दक्षता फिलहाल 15 प्रतिशत ही है। लेकिन उन्होंने उम्मीद जताई कि नैनो टेक्नालाजीज के जरिये पांच साल में इसे बढ़ाकर 45 प्रतिशत किया जा सकेगा। परमाणु ऊर्जा के बारे में कलाम ने कहा भारत में यूरेनियम के भंडार सीमित हैं और इसीलिए इसकी आपूर्ति के लिए हमें तमाम तरह के लोगों से समझौते करने पड़ते हैं। उन्होंने कि भारत में थोरियम के भंडार विश्व में सबसे अधिक है और हमें थोरियम आधारित ऊर्जा पर अधिक ध्यान देना चाहिए। पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए जैव ईधनों के मिश्रण को बढ़ाने की बात की। फिलहाल पेट्रोल में दस प्रतिशत एथेनाल मिलाने की प्रक्रिया शुरू की गई है, जबकि डीजल में अखाद्य तेल का मिश्रण करने के प्रयोग चल रहे हैं। राष्ट्रपति ने महिलाओं की जबर्दस्त हिमायत करते हुए कहा कि आज महिलाएं संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं और आप सब उसमें मदद कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने खुद देखा है कि जिन पंचायतों में सरपंच महिला है, वह बढि़या काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि जब पंचायतों में महिला बेहतर काम कर सकती हैं तो विधानसभाओं और संसद में क्यों नहीं। कलाम ने राष्ट्रपति पद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उनकी योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर कहा कि वह देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों को पढ़ाएंगे। यह पूछने पर कि क्या वह चेन्नई जाकर पढ़ाएंगे, उन्होंने कहा कि चेन्नई ही क्यों-मैं कई जगहों पर जाऊंगा-ग्रामीण विश्वविद्यालयों, प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालयों अंतरिक्ष एवं अनुसंधान विश्वविद्यालयों तथा नालंदा विश्वविद्यालय में भी। सकल घरेलू उत्पाद की नौ प्रतिशत विकास दर पर बहुत उत्साह नहीं दिखाते हुए कलाम ने कहा कि केवल जीडीपी के आकलन को आर्थिक विकास का संकेतक नहीं माना जाना चाहिए। मैं राष्ट्रीय संपन्नता इंडेक्स की सलाह देता हूं। उन्होंने कहा कि एनपीआई में जीडीपी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में कटौती और सामाजिक मूल्य शामिल हैं। सामाजिक मूल्य की अवधारणा संयुक्त भारतीय परिवार की प्राचीन संस्थान से निकली है। कलाम ने यह बात इस सवाल के जवाब में कही कि क्या तेज आर्थिक विकास के फायदे समाज के अत्यंत गरीब लोगों तक पहुंच रहे हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि जीडीपी का फायदा उनकी पसंदीदा परियोजना पूरा (ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी इलाकों जैसे सुविधाएं मुहैया कराना) के जरिए जनता तक पहुंचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वह कार्यकाल पूरा होने के बाद पूरा परियोजना के लिए काम करेंगे। शहरी क्षेत्र के लोगों को मिलने वाली सुविधाएं ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को क्यों नहीं दी जा सकतीं। कलाम ने मीडिया से कृषि क्षेत्र के विकास में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए कहा और कृषि क्षेत्र को देश के 65 करोड़ लोगों की जीवनरेखा बताया।
खतरे में राष्ट्रपति पद की गरिमा !

देश में राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर जैसा राजनीतिक माहौल बना दिया गया है और विभिन्न राजनीतिक समूह जिस प्रकार टकराव की स्थिति में आ खड़े हुए हैं वह भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं। देश के प्रथम नागरिक के रूप में राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए राजनीतिक दलों और खासकर सत्तापक्ष को जिस तरह कार्य करना चाहिए वैसा बिल्कुल भी नहीं किया गया। परिणाम यह हुआ कि एक असमंजस का माहौल कायम हो गया। मौजूदा राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की ओर से दूसरे कार्यकाल के लिए अपनी दावेदारी पेश करने का संकेत देने और ऐसी स्थिति में उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत द्वारा उनका समर्थन किए जाने की घोषणा से राजनीतिक माहौल में जो गर्मी आई थी वह तो समाप्त हो गई, लेकिन बेहद अप्रिय तरीके से। संप्रग और वामदलों के नेताओं ने अब्दुल कलाम के खिलाफ तीखी टिप्पणियां करके जिस तरह उनके प्रति असम्मान प्रदर्शित किया उसकी कहीं कोई आवश्यकता नहीं थी। राष्ट्रपति को यह नसीहत देना राजनीतिक शिष्टाचार के बिल्कुल खिलाफ है कि वह दूसरी पारी का ख्वाब न देखें। शरद पवार जैसे मंझे राजनेता ने जिस तरह क्रिकेट की भाषा में राष्ट्रपति कलाम की पारी खत्म होने की बात कही उससे इस पद की गरिमा गिरी। आखिर मौजूदा राष्ट्रपति को कोई इस तरह की सलाह कैसे दे सकता है? शरद पवार और साथ ही लालू यादव की टिप्पणियों से यह साफ हो गया कि आज के राजनेता राष्ट्रपति पद के प्रत्याशियों अर्थात भावी राष्ट्र प्रमुख के प्रति कैसा भाव रखते हैं और उनकी कितनी कद्र करते हैं? हमें यह नहीं भूलना चाहिए राष्ट्रपति पद के लिए जो गंभीर प्रत्याशी सामने आए है उनमें से ही कोई एक राष्ट्र प्रमुख बनेगा। राष्ट्रपति पद पर आसीन होने के उपरांत उसके प्रति सभी को राजनीतिक शिष्टाचार का प्रदर्शन करना होगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मौजूदा समय इस शिष्टाचार का प्रदर्शन करने के बजाय उसकी धज्जिायां उड़ाई जा रही है। एक ओर जहां संप्रग के घटकों के नेताओं ने राष्ट्रपति कलाम पर कटाक्ष करने में संकोच नहीं बरता वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने इस पद की अपनी उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल को यह हिदायत देने में देर नहीं की कि वह सार्वजनिक मंचों से ऐसा कुछ न कहे जिससे संप्रग का चुनावी एजेंडा प्रभावित हो। उन्हे यह हिदायत महिलाओं में पर्दा प्रथा संबंधी उनके एक बयान के संदर्भ में दी गई। इस सबसे समाज में यही संदेश गया कि प्रतिभा पाटिल कांग्रेस के नेतृत्व वाले संप्रग शासन की कठपुतली बनकर राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करेंगी। यदि वह राष्ट्रपति बनने में सफल होती है, जैसा कि आज के दिन नजर भी आ रहा है तो उनके लिए इस संवैधानिक पद की गरिमा बरकरार रखना कठिन कार्य होगा। उन पर पहले दिन से यह दबाव होगा कि वह स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने में सक्षम राष्ट्र प्रमुख दिखें। वर्तमान में तो ऐसा दिख रहा है कि उन्हे सार्वजनिक मंचों से अपना भाषण कांग्रेस से अनुमति लेकर देना होगा। भविष्य में जो भी हो, यह तथ्य है कि अतीत में कांग्रेस के कई कठपुतली नेता राष्ट्रपति पद पर आसीन हो चुके हैं। राष्ट्रपति चुनाव की गहमागहमी के बीच प्रतिभा पाटिल पर एक के बाद एक जैसे आरोप लगे वे हतप्रभ करने वाले है। ये आरोप उनकी दावेदारी को कमजोर करते है। उन पर एक आरोप यह है कि उन्होंने हत्या के मामले में फंसे अपने भाई को बचाने के लिए अपने पद का इस्तेमाल किया। उन पर दूसरा आरोप अपने स्वामित्व वाली चीनी मिल के लिए बैंक से हासिल किए गए करोड़ों रुपये के ऋण को न लौटाने का है। फिलहाल ये आरोप राजनीति से प्रेरित नजर आते हैं, लेकिन आम जनता के मन में यह सवाल तो उठेगा ही कि इन आरोपों में कोई सच्चाई तो नहीं है? चीनी मिल के लिए प्राप्त ऋण को न लौटाने का मामला तो मिल और बैंक के बीच का वाणिज्यिक प्रकरण नजर आता है और इसका प्रतिभा पाटिल के राजनीतिक जीवन से कोई लेना-देना नहीं भी हो सकता, लेकिन हत्या के आरोपी अपने भाई को बचाने का मामला गंभीर रूप ले सकता है। ध्यान रहे कि प्रतिभा पाटिल पर ऐसा आरोप लगाने वाली महिला हत्या का शिकार बने जलगांव कांग्रेस जिलाध्यक्ष की विधवा हैं। वह अपने आरोपों के सिलसिले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर पहले भी गुहार लगा चुकी है। कुछ केंद्रीय मंत्रियों ने प्रतिभा पाटिल पर लगाए गए आरोपों को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है, लेकिन क्या यह महत्वपूर्ण नहींकि इस हत्याकांड के अभियुक्तों को राजनीतिक कारणों से बचाने के आरोपों के चलते ही मुंबई हाईकोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई से कराने के आदेश दिए थे? प्रतिभा पाटिल पर लगे आरोपों की सच्चाई कुछ भी हो, ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद के लिए उन्हे उम्मीदवार बनाने का फैसला जल्दबाजी में या किसी मजबूरी में किया और इसके पूर्व वह उनके राजनीतिक जीवन का सही तरह से आकलन भी नहीं कर सकी। भले ही आज कांग्रेस प्रतिभा पाटिल पर लगे आरोपों को विरोधियों की साजिश बता कर खारिज कर रही हो, लेकिन यह कांग्रेस के रणनीतिकारों की भूल का नतीजा है कि पार्टी को बचाव की मुद्रा अपनानी पड़ रही है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने प्रतिभा पाटिल का राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में नामांकन तो करा दिया है, लेकिन यदि किसी कारण उनकी दावेदारी कमजोर पड़ती है या फिर उनसे जुड़े विवादों का दौर नहीं समाप्त होता तो यह उनके साथ-साथ संप्रग के लिए भी शर्मनाक होगा। प्रतिभा पाटिल पर लगे आरोपों को लेकर पक्ष-विपक्ष के नेताओं के बयान यही संकेत देते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक दांव-पेंच का दौर जारी रहेगा। इससे यदि किसी की क्षति होगी तो राष्ट्रपति पद की गरिमा की, जबकि राजनेताओं की पहली कोशिश इस पद की गरिमा बरकरार रखने की होनी चाहिए। राष्ट्रपति की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल पर लगे आरोपों ने यह साबित कर दिया कि आज के दौर में ऐसे राजनेता मिलना मुश्किल हैं जो किसी तरह के आरोपों के घेरे में न हों। इसका एक अर्थ यह भी है कि राष्ट्रपति पद के लिए स्वच्छ छवि के उम्मीदवार को खोज निकालना कठिन है। यह स्थिति भारतीय राजनीति की विडंबना को ही उजागर करती है। इस संदर्भ में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम एक अपवाद कहे जाएंगे। यह दु:खद है कि बेहद साफ-सुथरी छवि और लोकप्रिय होने के बाद भी कलाम के नाम पर आम सहमति बनाना तो दूर की बात रही, उलटे उन पर कटाक्ष किए गए और वह भी केंद्रीय मंत्रियों की ओर से। बावजूद इस सबके अब्दुल कलाम ने जिस तरह राष्ट्रपति पद और भवन को विवादों से दूर रखने के उद्देश्य से दोबारा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया उससे उनकी शालीनता और हृदय की विशालता का पता चलता है। इसमें संदेह नहीं कि उन्होंने राष्ट्रपति की गरिमा को बढ़ाने के साथ-साथ इस पद को लोकप्रिय भी बनाया। अब यह समय ही बताएगा कि आगामी राष्ट्रपति ऐसा करने में सफल रहते हैं या नहीं? यह सवाल इसलिए, क्योंकि फिलहाल राजनीतिक दल राष्ट्रपति पद की गरिमा की परवाह करते नहींदिखते।
कलाम को ठेस पहुंचाने की मंशा नहीं थी: दासमुंशी
सरकार ने कहा कि तीसरे मोर्चे द्वारा दूसरे कार्यकाल के लिए चलाए जा रहे अभियान को लेकर राष्ट्रपति कलाम को ठेस पहुंचाने का उसका कोई इरादा नहीं था, लेकिन यह दुर्भाग्यजनक है कि उनका नाम विवाद में घसीटा गया। संसदीय कार्यमंत्री प्रियरंजन दासमुंशी ने शनिवार को कहा कि राष्ट्रपति तब तक राष्ट्रपति हैं जब तक वह पद पर हैं। हम उनके पद का सम्मान करते हैं और कलाम बहुत ही सम्मानित हैं। दासमुंशी का यह बयान तीसरे मोर्चे की उस टिप्पणी पर आया, जिसमें कहा गया था कि कलाम कुछ केंद्रीय मंत्रियों के बयानों से आहत हैं। दासमुंशी ने कहा कि मैंने जो कुछ भी कहा वह यह था कि यदि कोई यह घोषणा कर चुका हो कि वह चेन्नई चला जाएगा और अध्यापन शुरू करेगा, अचानक कुछ नेताओं से मिलने के बाद वह यह कहता है कि यदि जीत सुनिश्चित हो तो वह चुनाव लड़ सकता है।
प्रतिभा पाटिल ने पर्चा भरा
भारत में राष्ट्रपति पद के लिए सत्तारुढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) और वामपंथी दलों की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल ने शनिवार को अपना नामांकन पत्र दाख़िल कर दिया. नामांकन के समय राजस्थान की पूर्व राज्यपाल प्रतिभा पाटिल के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी थी. प्रतिभा पाटिल ने लोकसभा सचिवालय में जाकर अपना नामांकन भरा.राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाख़िल करने की आख़िरी तारीख़ 30 जून है. ज़रूरी हुआ तो मतदान 19 जुलाई को होगा और मतगणना 21 जुलाई को होगी.मौजूदा राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने शुक्रवार को स्पष्ट कर दिया था कि वे दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव नहीं लड़ेंगे. हालाँकि कुछ दिन पहले तीसरे मोर्चे के नेताओं के साथ बैठक में उन्होंने कहा था कि अगर जीत सुनिश्चित हो तो वे चुनाव लड़ सकते हैं.लेकिन तीसरे मोर्चा उनके नाम पर आम सहमति नहीं जुटा पाया. उम्मीद है कि अब प्रतिभा पाटिल के सामने मुख्य प्रतिद्वंद्वी होंगे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उप राष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत.राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) ने तो शेखावत को समर्थन देने की घोषणा कर रखी है लेकिन तीसरे मोर्चे ने अभी अपना रुख़ स्पष्ट नहीं किया है. शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी ने अपील की थी कि राष्ट्रपति कलाम के इनकार के बाद तीसरे मोर्चे को भैरोसिंह शेखावत का समर्थन करना चाहिए. लेकिन अभी तक तीसरे मोर्चे की ओर से इस बारे में कोई बयान नहीं आया है.नामांकनइस बीच सत्तारुढ़ यूपीए और वामपंथी दलों के कई शीर्ष नेताओं की मौजूदगी में प्रतिभा पाटिल ने अपना नामांकन दाख़िल कर दिया. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के अलावा उनके साथ लालू प्रसाद यादव, शरद पवार, रामविलास पासवान, टीआर बालू और रामदास अठावले भी थे.नामांकन के समय वामपंथी नेता सीताराम येचुरी, गुरुदास दास गुप्ता और अबनी रॉय भी थे. इसके अलावा गृह मंत्री शिवराज पाटिल, विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी सहित मौजूदा सरकार के कई मंत्री भी वहाँ मौजूद थे.नामांकन पत्र दाखिल करने से पहले प्रतिभा पाटिल अपने परिवारजनों के साथ राजघाट गईं और महात्मा गांधी की समाधि पर फूल चढ़ाए.
उपराष्ट्रपति पद की मांग नहीं की: करुणानिधि
द्रमुक अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने शनिवार को उन खबरों को खारिज कर दिया, जिनमें पार्टी द्वारा उपराष्ट्रपति पद की मांग का जिक्र किया गया है। संवाददाताओं ने उनसे पूछा था कि क्या पार्टी ने उपराष्ट्रपति पद प्राप्त करने की योजना बनाई है। करुणानिधि ने कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि एक महिला को राष्ट्रपति बनाने की मुहिम में उन्होंने अपना योगदान दिया। तीसरे मोर्चे के बारे में उन्होंने कहा कि उन लोगों ने खुद को यह नाम भर दे दिया है। अभी तक किसी को यह नहीं पता कि उनका नेता कौन है। कावेरी जल विवाद के बारे में उन्होंने कहा कि उन्हें इस मुद्दे के बातचीत से सुलझ जाने का विश्वास है। उन्होंने कहा कि इस बारे में सभी कदम उठाए जा रहे हैं। करुणानिधि ने कहा कि कावेरी के जल को लेकर लड़ाई 1968 में शुरू हुई और न्यायाधिकरण का अंतिम फैसला आने के बाद यह संघर्ष मील का पत्थर अर्जित कर चुका है। मदुरै विधानसभा उपचुनाव तय कार्यक्रम के मुताबिक 26 जून को नहीं कराने के लिए निर्वाचन आयोग पर दबाव डालने के बारे आई खबरों का भी उन्होंने खंडन किया। उन्होंने अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता के इन आरोपों को भी खारिज कर दिया कि राज्य में बिजली कटौती हो रही है। उन्होंने कहा कि राज्य के पास अतिरिक्त बिजली है और यह बिजली पंजाब और महाराष्ट्र को दी जा रही है।
शेखावत 25 को दाखिल करेंगे नामांकन

उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत आगामी 25 जून को राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करेंगे। राजग प्रवक्ता सुषमा स्वराज ने शनिवार को प्रेस कांफ्रेंस में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि राजग की बैठक में शेखावत के नामांकन पत्र दाखिल करनेके बारे में फैसला किया गया। बैठक में राजग संयोजक जार्ज फर्नाडीस एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित विभिन्न नेताओं ने भाग लिया।

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